पवन सिंह

भारतीय लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य की बात कही गई है लेकिन 2020 का यह बजट इस अवधारणा को सीधे तौर पर झुठलाता है। दो घंटे 41 मिनट के बजट भाषण को हर व्यक्ति अपनी-अपनी आस्था/सुविधानुसार विश्लेषित करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं लेकिन मेरा मानना है कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था लगभग मरणासन्न अवस्था में पहुंच जाती है तो उस देश के बजट का चेहरा कमोबेश ऐसा ही होता है जैसा कि इस बजट का है। इस सरकार का मार्केटिंग और नारे गढ़ने के मामले में पूरे विश्व में कोई सानी नहीं है। तीन साल पहले‌ एक नारा गढ़ा गया था "मेक इन इंडिया" का….इस नारे के गठन के बाद हुआ यह कि पूरे देश से साढ़े तीन करोड़ नौकरियां चली गईं अब 2020 के वित्तीय वर्ष के लिए दो नये शिगूफे बाजार में उतारे गये हैं-"एसेंबल इन इंडिया" और "स्किल इंडिया"…..यह नारे रोजगार व अर्थव्यवस्था के सृजन में कितनी भूमिका निभायेंगे या यह भी "अच्छे दिन" टाइप का जुमला साबित होंगे,यह वक्त बताएगा। पूरे बजट भाषण से नये रोजगार व बेरोज़गारी पर एक शब्द भी नहीं बोला गया। जबकि इसी सदन में इसी सरकार ने पूर्व के बजट में एक करोड़ नये रोजगार के सृजन की बात कही थी? इसका हुआ क्या?….जबकि साढ़े तीन करोड़ नौकरियां चली गईं…..सरकार ने यह नहीं बताया कि विगत 6 सालों में करीब 40 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे गिरे हैं उनके लिए क्या योजना है? सरकार ने बड़ी खूबसूरती से शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में से अपने हाथ खींचे हैं, उसने PPT माडल अपनाने का रास्ता निकाला है….जबकि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत अच्छा होता कि सरकार देश के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों, सरकारी मेडिकल संस्थानों में बड़ी संख्या में चिकित्सकों की भर्तियां करती, नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे अस्पतालों में नौकरियों का सृजन करती और नये उपकरणों से इन्हें सुसज्जित करती….लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बड़ी चालाकियों के साथ इसे प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने की मंशा जाहिर कर दी गई है। देश के सभी अस्पतालों में 24 लाख नर्सिंग स्टाफ के पद रिक्त हैं और एम्स सहित उच्च स्तरीय संस्थानों में 21,740 पद खाली हैं। यही हाल शिक्षा का है और सरकार इस दिशा में भी पीपीटी मोड पर है….आप कल्पना कर सकते हैं कि भविष्य में एक गरीब व्यक्ति या परिवार मंहगी शिक्षा व चिकित्सा का खर्च कैसे वहन करेगा। रेलवे के 100 रूट्स पर 150 निजी ट्रेन चलाने का खर्च हमारी-आपकी जेब से ही निकलेगा। लखनऊ-दिल्ली तेजस इसका उदाहरण है….इसके मंहगे किराए के कारण पहले यात्री सरकारी ट्रेन में टिकट तलाशता है और न मिलने पर फिर तेजस की ओर देखता है। अकेला यात्री है तो ठीक है यदि परिवार के साथ है तो लखनऊ से दिल्ली तक एक तरफ का उसका खर्च 10 हजार के आजू-बाजू बैठता है। इसके कर्मचारियों का दर्द भी मीडिया में सामने आ चुका है कि कितनी बुरी वर्किंग कंडीशन में वो कार्यरत हैं…..नौकरी की गारंटी तक नहीं है।

वित्तमंत्री जी ने इस बजट में एक बार भी टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज का जिक्र नहीं किया कि विगत बजट में इस इंडस्ट्री को जो 6 हजार करोड़ का पैकेज दिया गया था उसका क्या हुआ? मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ निगेटिव है उस पर चुप्पी साध ली गई जबकि आटो सेक्टर में लगभग 40% की गिरावट है….टैक्स कलेक्शन कम है और‌ जीएसटी कलेक्शन भी कम है ….यह कम इस लिए है कि लोग अब खर्चा नहीं कर रहे हैं। जब मांग नहीं है तो बिक्री नहीं है और जब बिक्री नहीं है तो टैक्स नहीं है….. हाउसिंग सेक्टर अभी भी उठने की हालत में नजर नहीं आ रहा है…..ऐसी स्थिति में सरकार ने वेलफेयर स्कीमों से हाथ खींच लिया है और पूंजी सरकारी उपक्रमों को बेचकर जुटाने का रास्ता अख्तियार किया है। हर‌ साल किसान फ्रेंड्ली बनने या दिखने-दिखाने का बजटीय नाटक होता है लेकिन धरातल का सच यह है कि विगत छह सालों में 12 हजार किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। यह सरकार 2014 में जब आई थी तो कोल्ड स्टोरेज की बड़ी बड़ी बातें करती थी लेकिन विगत छह सालों में इस दिशा में कितनी प्रगति हुई उस पर खामोशी है…… निस्संदेह पर्यटन की दिशा पर‌ सरकार ने इस बजट में कुछ नया करने का सोचा है…. अच्छा है इस ओर ही कुछ बेहतर हो। …..विगत बजट के वो 100 स्मार्ट सिटी इस बजट के आते-आते तैयार हो गये हैं और 2020 के बजट में 5 और नये स्मार्ट सिटी बनेंगे…….तिकल्लेबाजी में इस सरकार का कोई जवाब नहीं है….इनकम टैक्स में क्या गजब की छूट दी है कि दिल खुश हो गया…वैसे चर्चा यह भी है कि पीएफ और पीपीएफ की रकम पर भी टैक्स लगाने का विचार चल रहा है।…