ओखला: राजधानी नई दिल्ली को तेज़ी से फैल रहे उपनगर नोएडा से जोड़ने वाले 6-लेन हाईवे पर पिछले 11 दिन से लोग सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ धरना प्रदर्शन पर बैठे हुए हैं।ओखला के इस इलाक़े में लोग कड़ाके की ठंड में रात-दिन भेदभाव वाले और असंवैधानिक नए नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ धरने पर बैठे है। सैकड़ों की संख्या में धरने पर बैठे लोगों में पुरुष, बच्चे और महिलाएं सभी शामिल हैं, लेकिन महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है।

100 से ज़्यादा वॉलिंटीयर रात-दिन नई दिल्ली के इस मुस्लिम बहुल इलाक़े में धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों की सेवा में लगा हुआ है। यह वॉलिंटीयर्स शिफ़्टों में काम करते हैं और खाने से लेकर सुरक्षा तक की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। ताबिश क़मर, एक बैंकर हैं जो दिन में अपने दफ़्तर में काम करते हैं और रात में धरने पर आकर बैठते हैं। वाहिद रज़ा इंजीनियरिंग के स्टूडैंट हैं और वह अपनी टीम के साथ मिलकर क़रीब 300 लोगों के दो वक़्त के खाने की व्यवस्था करते हैं। वह कहते हैं यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि कोई भी शख़्स भूखा न रहे।

19 साल के उमैर ख़ान की धरना स्थल के निकट ही एक क्लिनिक है। वह प्रदर्शनकारियों को मेडिकल सेवा उपलब्ध कराते हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह प्रदर्शन पूर्ण रूप से शांतिपूर्ण है, इसलिए मेडिकल सेवा की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में ज़ूलॉजी की छात्रा हुमेरा सैय्यद, अपनी टीम के साथ महिला प्रदर्शनकारियों की सेवा में लगी हुई हैं। उनका कहना है कि शुरू में उन्होंने महिलाओं से अपील थी कि वे केवल रात को 10 बजे तक धरना स्थल पर रुकें, लेकिन मांगे पूरी होने और सीएए को वापस लिए जाने तक वे यहां से उठना नहीं चाहती हैं।

इस बीच, डिप्टी पुलिस कमिश्नर चिनमौए बिसवाल का कहना है कि वे धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों से बात कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे जल्दी ही हाईवे को ख़ाली कर देंगे। हालांकि अभी तक प्रदर्शनकारियों ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे अपनी मांगे पूरी होने से पहले धरना स्थल छोड़कर चले जायेंगे।

धरना स्थल के बीचो-बीच एक नीले रंग का तिरपाल बिछा हुआ है, और वहां बने स्टेज को भारतीय झंडों से सजाया गया है, और इसके चारो ओर प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इस धरने के मुख्य आयोजक आईआईटी (IIT) प्रशिक्षित दो युवा इंजीनियर हैं, जिनके नाम हैं आसिफ़ मुजतबा और शरजील। सिद्धार्थ सक्सैना, एक एकाउंटेंट हैं, जो स्वेच्छा से फ़ंड्स मैनेज करते हैं।

मुजतबा और शरजील दोनों ही उस जोखिमों से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं, जो वे उठा रहे हैं। इसलिए कि इनके ख़िलाफ़ पुलिस कार्यवाही कर सकती है और उनका कैरियर पटरी से उतर सकता है। लेकिन दोनों ही किसी भी अंजाम का सामना करने के लिए मज़बूत इरादा रखते हैं।

ग़ौरतलब है कि 12 दिसम्बर को बीजेपी मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने के बाद से पूरे देश में इस क़ानून के ख़िलाफ़ व्यापक आंदोलन जारी है। उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा देश के अकसर इलाक़ों में यह आंदोलन शांतिपूर्ण रूप से जारी है। उत्तर प्रदेश में पुलिस कार्यवाही में अब तक 20 से अधिक प्रदर्शनकारियों की मौत की बात कही जा रही है।