भारत में बलात्कार के वाकेयात में दिन बदिन बृधि होती जा रही है। कुछ दिन पुर्व हैदराबाद में हुए शर्मनाक वाकेया ने शरीफ लोगों की नींद हराम करदी जिस में एक महिला डॉक्टर की सामूहिक बलात्कार करके उसे जिंदा जला दिया गया। दूसरी तरफ सम्भल से 10 किलोमीटर की दूरी पर मुरादाबाद रोड पर अवस्थित सिरसी नामक कसबा में एक बालिका का बलात्कार करके उसे भी जिंदा जला दिया गया। 2017 में लखनऊ-चंडीगढ़ ट्रेन में बिजनौर के निकट हुए एक रोजादार मुस्लिम महिला के साथ यौन शोषण की घटना ने तो इंसानियत को ही शर्मसार कर डाला था। 2012 के निर्भया कांड ने भी पूरे भारत के लोगों के सुकून को समाप्त कर दिया था। गिंती के केवल कुछ कांड ही आम लोगों के सामने आते हैं, वरना वर्तमान दौर में रोजाना बेशुमार लड़कियाँ जालिमों की हवस का शिकार बनती हैं जो अपनी और घरवालों की स्मिता की रक्षा जालिमों के विरुद्ध शिकायत दर्ज न करने में समझती हैं। ऐसे मौकों पर पुलिस के रवैये से भी लोग नाराज रहते हैं कि वह समय पर शिकायत दर्ज नहीं करती या कार्रवाई करने में इतनी देर करती है कि मुजरिमों को फरार हो जाने का मौका मिल जाता है। वस्तुतः अब भारत के कानूनों के अनुसार ऐसे अभियुक्तों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए परंतु न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त पेचीदगियों के कारण अभियुक्त या तो छूट जाता है या सजा का निर्णय इतना विलंब से आता है कि उससे इबरत हासिल नहीं होती। एक बार फिर लोग विशेष कर महिलाएं बी जे पी सरकार से अपनी सुरक्षा की मांग करने के लिए सड़कों पर आकर जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। और यह बात भी पक्की है कि मात्र कुछ अभियुक्तों को फांसी देकर इस जघन्य रोग पर नियंत्रण पाना आसान नहीं है। इस्लाम में निर्धारित सजा ही असल में इस बड़े अपराध का निदान है। आइए क़ुरान व ह़दीस़ की रोशनी में समझें कि बलात्कार क्या है? बलात्कार के कारण क्या है? बलात्कार कितने प्रकार के है? इस घृणित अपराध से कैसे बचा जाए? और इस्लाम में बलात्कार करने वालों की क्या सज़ा है?

निकाह के बिना किसी पुरुष और महिला का शारीरिक संबंध बनाना यानी संभोग करना (Intercourse) व्यभिचार (ज़िना) कहलाता है, चाहे वह दोनों ओर की अनुमति से ही क्यों न हो, असल में व्यभिचार (ज़िना) निकाह के बिना पुरुष के गुप्तांगों का महिला के गुप्तांगों में प्रवेश (दाख़िल) होने का नाम है, लेकिन जीवन साथी (पति व पत्नी) के अलावा किसी भी पुरुष और महिला का एक दूसरे को काम-वासना की नज़र से देखना, एक दूसरे से कामुक (सेक्सी) बातचीत करना, या एक दूसरे का अकेले में मिलना, या एक दूसरे को छूना या चुंबन लेना भी ह़राम है, इन सब कार्यों को सारे नबियों के सरदार ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने व्यभिचार (ज़िना) की एक क़िस्म क़रार दिया है, हालांकि इन कार्यों की वे कठोर सज़ा नहीं है जो अस़ल व्यभिचार (ज़िना) की है।

क़त्ल, ज़ुल्म, झूठ, धोखाधड़ी और चोरी की तरह व्यभिचार (ज़िना) भी एक ऐसा घिनौना अपराध है कि सभी धर्म में न सिर्फ सख़्ती के इस घिनौने अपराध से साथ मना किया गया है, बल्कि व्यभिचार करने वाले मर्द व औरत के लिए कठोर से कठोर सज़ा भी निर्धारित की गई है, न केवल इस्लाम में बल्कि इसाई और यहूदी धर्म में भी इस घिनौने अपराध के अपराधियों की सज़ा रजम (पत्थरबाज़ी) है, यह ऐसा जुर्म है कि दुनिया में इस से ज़्यादा बड़ी सज़ा किसी दूसरे जुर्म की निर्धारित नहीं की गई, क्यूंकि दुनिया के अस्तित्व (वुजूद) से लेकर आज तक सभी मानव समाज ने इस अपराध पर न केवल लानत भेजी है, बल्कि ऐसे कार्यों से बचने की शिक्षा (तालीम) भी दी है, जो व्यभिचार (ज़िना) की तरफ़ ले जाने वाले हों।
इंसानी प्रकृति (फ़ित़रत) भी खुद व्यभिचार (ज़िना) की ह़ुरमत की मांग करती है, अन्यथा इन्सान जिसे अल्लाह तआला ने अशरफ़-उल-मख़लूक़ात बनाया है वह जानवरों की लाइन में खड़ा हो जाएगा, दुनिया की सलामती भी इसी में है कि व्यभिचार (ज़िना) को ह़राम क़रार दिया जाए और इसके अपराधियों को इबरतनाक सज़ा दी जाए, सभी पक्षियों, चरिन्दों, पशुओं और अल्लाह के अन्य प्राणियों पर शासन करने वाले हज़रत इन्सान केवल सेक्स को पूरा करने के लिए इस सांसारिक जीवन को बिताने लगे कि जब चाहा और जिस से चाहा आनंद लिया तो मानव सभ्यता ही समाप्त हो जाएगा, क्यूंकि मर्द और औरत में निकाह़ के कार्य (अमल) के बाद के परिणाम (नतीजे) में अल्लाह के ह़ुक्म से संतान (औलाद) पैदा होती, माँ बाप उसे अपनी औलाद और भविष्य का सहारा समझ कर उनके लिए सभी समस्याओं और परेशानियों का सामना करते हैं, उनकी शिक्षा (तालीम) और प्रशिक्षण (तरबियत) का इन्तिज़ाम करते हैं, साथ ही दूसरों को यह पता चलता है कि यह किसका बच्चा या बच्ची है तो रिश्तेदरी बनती है और पड़ोस बनता है जिस से एक दूसरे के अधिकार (ह़ूक़ूक़) मालूम होते हैं जिसकी वजह से एक समाज बनता है, अगर इंसानों को भी जानवरों की तरह आज़ाद छोड़ दिया जाता तो मानव सभ्यता समाप्त होकर यह दुनिया बहुत पहले ही ख़त्म हो चुकी होती।

इस्लाम ने केवल व्यभिचार (ज़िना) को ह़राम ही क़रार नहीं दिया बल्कि अल्लाह तआला ने आदेश (ह़ुक्म) दिया कि व्यभिचार (ज़िना) के पास भी न जाओ, वह निश्चित रूप से बड़ी बेह़याई है और बेराह रवी है, (सूरह-ए-इसरा: 32), इस आयत में अल्लाह तआला ने व्यभिचार (ज़िना) को फ़ाह़िशह (बेह़याई) क़रार दिया है। (सूरह-अल-अनाम: 151) में अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि बेह़याई (फ़वाह़िश) के कामों के पास भी न जाओ, चाहे वह बेह़याई खुली हुई हो या छुपी हुई। (सूरह-अल-आराफ़: 33) में फ़वाह़िश (बेह़याई) के कामों को ह़राम क़रार देकर इरशाद फ़रमाता है, “कह दो कि मेरे रब ने तो बेह़याई के कामों को ह़राम क़रार दिया है, चाहे वह बेह़याई खुली हुई हो या छुपी हुई”। (सूरह-अल-फ़ुरक़ान: 67) में ईमान वालों की विशेषताओं को बयान करते हुए अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है, “और वह न ज़िना (व्यभिचार) करते हैं, जो शख़्स़ (व्यक्ति) भी यह काम करेगा उसे अपने गुनाह (जुर्म) के बवाल का सामना करना पड़ेगा, क़यामत के दिन उसका अज़ाब (सज़ा) बढ़ाकर दोगुना कर दिया जाएगा और वह ज़लील होकर उस अज़ाब (सज़ा) में हमेशा हमेशा रहेगा”।

व्यभिचार (ज़िना) बहुत बड़ा गुनाह है: क़ुरआन करीम के बाद सबसे विशुद्ध और विश्वसनीय किताब सही बुख़ारी की ह़दीसों में से कुछ ह़दीसें पेश हैं, ताकि मौजूदा ज़माने में फैले हुए इस गुनाह (जुर्म) से ख़ुद को और दूसरों को बचाना संभव हो सके। ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “क़यामत की शर्तों में से यह है कि इल्म उठ जाएगा, जहालत फैल जाएगी, शराब पी जाने लगेगी और ज़िना (व्यभिचार) फैल जाएगा” (बुख़ारी)। ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “बंदा जब ज़िना (व्यभिचार) करता है तो मोमिन रहते हुए वह ज़िना (व्यभिचार) नहीं करता” (बुख़ारी)। यानि ईमान की नेअ़मत उस समय छीन ली जाती है या ईमान का तक़ाज़ा है की कोई भी व्यक्ति ज़िना (व्यभिचार) न करे, या वह व्यक्ति पूरा मोमिन नहीं जो ज़िना (व्यभिचार) करे।

ज़िना (व्यभिचार) और अश्लीलता के कारण:

1) नामह़रम को बेवजह देखना: ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि आँखों का “ज़िना” बदनज़री है और कानों का “ज़िना” गलत बात सुनना है और ज़बान “ज़िना” गलत बात बोलना है और हाथ का “ज़िना” गलत चीज़ को पकड़ना है और पैर का “ज़िना” बुरे इरादे से चलना है और दिल ख़्वाहिश (इच्छा) और तमन्ना (आकांक्षा) करता है और फिर शर्मगाह (गुप्तांग) इसकी तस़दीक़ (पुष्टि) या तकज़ीब (इंकार) करती है”, (बुख़ारी)।

2) ग़ैरमह़रम से बातें करना: अल्लाह तआला ने क़ुरान-ए-करीम में औरतों को ह़ुक्म दिया कि अगर उन्हें किसी ग़ैरमह़रम से बात करने की ज़रूरत पेश आए तो अपनी आवाज़ में लोच और नरमी पैदा न होने दें और न ही अल्फ़ाज़ (शब्दों) को बना संवार कर बातें करें, इरशाद-ए-बारी है: “और न ही चबाकर बातें करो कि जिसके दिल में रोग (बीमारी) हो वह तमन्ना (आकांक्षा) करने लगे और तुम माक़ूल (उचित) बात करो” (सुरह अल-अह़ज़ाब: 4)। औरत की आवाज़ ह़ालांकि सतर (छुपाने की चीज़) नहीं है, यानि ज़रूरत के मुताबिक़ औरत ग़ैरमह़रम से बात कर सकती है, मगर इस ह़क़ीक़त का इंकार नहीं किया जा सकता कि अल्लाह तआला ने फित़री तौर (स्वाभाविक रूप) से औरत की आवाज में कशिश (आकर्षन) रखी है, इसीलिए औरत को फ़ुक़्हा ने अज़ान देने से मना किया है। नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात से मना किया है मर्द (पति) अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी औरत के सामने नरमी से बातचीत करे जिस से औरत को मर्द में रुचि पैदा हो जाए, (अल-निहाया)। इन दिनों सोशल मीडिया के ज़माने में ग़ैरमह़रमों से चेटिंग करना, कई तरह़ की तस्वीरें शेयर करना और ऑनलाइन बातचीत करना काफी आम हो गया, लेकिन यह बहुत ख़तरनाक बीमारी है, इस से अपने बच्चों और बच्चियों को जहाँ तक हो सके मह़फ़ूज़ रखने की कोशिश करना बहुत ज़रूरी है, क्यूंकि यही वह रास्तें हैं जिनके ज़रिए ऐसी घटनाएं घटती हैं जिनसे न सिर्फ़ घर और ख़ानदान की बदनामी होती है, बल्कि आख़िरत (भविष्य) में भी दर्दनाक अज़ाब होता है।

3) देरी से शादी करना: ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “ऐ नौजवानों! तुम में से जो जिस्मानी और माली इस्तिताअ़त (शारीरिक योग्यता और वित्तीय क्षमता) रखता है तो वह तुरंत शादी करले, क्यूंकि शादी करने से निगाहों और शर्मगाहों (गुप्तांगों) की ह़िफ़ाज़त हो जाती है” (बुख़ारी)। इन दिनों कॉलेज और युनिवर्सिटी में शिक्षा ह़ास़िल करने की वजह से शादी में आमतौर पर देरी हो जाती है, लेकिन फिर भी हम से जहाँ तक हो सके बच्चों और बच्चियों की शादी में ज़्यादा देरी नहीं करनी चाहिए।

4) अजनबी मर्द और औरत का इख़्तिलात़ (मेल जोल): ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जब औरत घर से बाहर निकलती है तो शैतान उसकी ताक में रहता है” (तिरमिज़ी)। इसी तरह ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जब अजनबी मर्द और औरत एक जगह तन्हाई (अकेले) में जमा होते हैं तो इनमें तीसरा शख़्स़ (व्यक्ति) शैतान होता है जो उनको गुनाह पर आमादा (तय्यार) करता है” (मुस़नद अह़मद)। इन दिनों स्कूलों, कॉलेजों और युनिवर्सिटीयों में मुशतरक (एक साथ) तालीम ह़ास़िल करने (यानि शिक्षा पाने) की वजह से अजनबी पुरुष (मर्द) और महिला (औरत) का मेल जोल बहुत आम हो गया है तथा औरतों (महिलाओं) का नौकरी करने का स्वभाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, महिलाएँ बेशक शरई पाबंदियों के साथ क़ुरान और ह़दीस़ की शिक्षा (तालीम) के साथ सांसारिक (दुनयावी) ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं, इसी तरह नौकरियां और कारोबार भी कर सकती हैं, लेकिन अनुभवों (तजरबात) से मालूम होता है की दुनिया में प्रचलित (राइज) वर्तमान (मौजूदा) शिक्षा प्रणाली (तालीमी निज़ाम) और कार्यालयों (दफ़्तरों) में काम करने वाली अनगिनत (बेशुमार) महिलाएँ यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं। मेरे कहने का उद्देश्य यह नहीं कि हम अपनी बच्चियों को उच्च शिक्षा न दिलाएं, या औरतों का नौकरी करना ह़राम है, लेकिन ज़मीनी वास्तविकताओं से हम इनकार नहीं कर सकते। इसीलिए जहाँ तक हो सके बच्चों और बच्चियों की तालीम (शिक्षा) के लिए सुरक्षित संस्थाओं को अपनाएं, क्यूंकि बह़रह़ाल इस दुनिया को अलविदा कह कर एक दिन अल्लाह तआला के सामने खड़े होकर सांसारिक जीवन (दुनयावी ज़िन्दगी) का हिसाब देना है।

ज़िनाकारी (व्यभिचार) से बचने का महत्व (अहमियत): ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: (क़यामत के दिन गर्मी अपने शबाब पर होगी और हर आदमी को मुश्किल से दो क़दम रखने के लिए जगह मिलेगी, मगर इस सख़्त परेशानी के वक़्त भी “सात क़िस्म के लोग हैं जिनको अल्लाह तआला अपनी (रह़मत के) साए में जगह अता फ़रमाएगा और उस दिन उसके साए के अलावा कोई साया न होगा, इन सातों आदमियों में से एक आदमी वह है जिसे ख़ूबसूरत और अच्छे ख़ानदान की लड़की बदकारी (ज़िना) की दावत दे तो वह कहे कि मैं अल्लाह से डरता हूँ” (बुख़ारी)। ह़ुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जिसने मुझे अपने दोनों टांगों के बीच (शर्मगाह) की और अपने दोनों जबड़ों के बीच (ज़बान) की ज़मानत दी यानी ह़िफ़ाज़त की, तो मैं उसे जन्नत की ज़मानत दूंगा” (बुख़ारी)। रिश्ते से पहले लड़के और लड़की का एक दूसरे को अन्य लोगों की मौजूदगी में देखने और ज़रूरत के मुताबिक़ बात करने की शरई तोर पर इजाज़त है, लेकिन रिश्ते के बाद निकाह़ के बिना लड़के और लड़की का साथ सफ़र करना या तन्हाई में मिलना जाइज़ नहीं है, हाँ अगर निकाह़ हो चुका है, लेकिन रुख़सती नहीं हुई, तो दोनों के मिलने और बातचीत करने की शरई तोर पर इजाज़त है।

इस्लाम में बलात्कारी की सजा: सभी नबीयों के सरदार हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी कथनी व करनी के जरिये बयान फरमाया कि कुरआन शरीफ के सूरा नूर (आयत 1 से 9 तक) में उल्लेखित बलात्कार की हद्द उस पुरुष व महिला के लिए है जिसने अभी शादी नहीं की है और बलात्कार का स्वयं स्वीकार किया है या चार गवाहों की कुछ शर्तों के साथ गवाही से बलात्कार का प्रमाण हुआ है, अर्थात् उसको सौ कोड़े मारे जायें। लेकिन अगर बलात्कारी शादीशुदा है तो नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने कौल व अमल से बताया कि उस की सजा रजम (संगसारी) है। सहाबाए कराम ने भी शादीशुदा व्यक्ति के बलात्कार करने पर रजम (संगसारी) ही किया। लेकिन यह जिम्मेदारी केवल इस्लामी हुकूमत की है, किसी व्यक्ति या संस्था को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी को संगसारी की सजा दे। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस्लामी हुकूमत नहीं होने के कारण हद्द जारी नहीं की जा सकती है, हां मुसलमान से ऐसा गुनाह (अपराध) होने पर पहली फुर्सत में उसे तौबा करनी चाहिए और पूरी जिंदगी इस बड़े जुर्म पर अल्लाह तआला के सामने रोना और गिड़गिड़ाना चाहिए, ताकि अल्लाह तआला मुआफ फरमा दे, और भविष्य में बलात्कार के निकट भी नहीं जाना चाहिए, क्योंकि बलात्कारी से अल्लाह तआला बात भी नहीं फरमायेंगे और उसे जहन्नुम में डाल देंगे यदि जेना (बलात्कार) से सच्ची तौबा नहीं की।

डॉ॰ मुहम्मद नजीब क़ासमी संभली