नई दिल्ली: महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उठा-पटक पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पीबी सावंत ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को कटघरे में खड़ा किया है। 24 अक्टूबर को चुनावी के परिणाम के ऐलान के बाद से अब तक राज्यपाल की भूमिका पर उन्होंने सवाल खड़े किए हैं और उनकी गतिविधि को असंवैधानिक और संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस ने साझा अनुरोध के तहत सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, इससे पहले पिछले हफ्ते शुक्रवार को तीन दलों ने सरकार बनाने का ऐलान किया था। लेकिन, इनके पहले एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार के समर्थन से बीजेपी ने शनिवार सुबह पौने 8 बजे ही सरकार बना लिया।

महाराष्ट्र के पूरे घटनाक्रम पर जस्टिस (रिटायर्ड) बीपी सावंत ने कहा,”महाराष्ट्र में वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है वह बहुत असंवैधानिक है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति से लेकर सरकार बनाने तक का सफर संवैधानिक नहीं रहा है। यहां तक कि जब विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, तब कार्यवाहक मुख्यमंत्री की नियुक्ति भी असंवैधानिक थी। राज्यपाल को इन सारी गैर-संवैधानिक प्रक्रियाओं का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। पहले विधायकों को शपथ लेनी होती है, उसके बाद ही विधानसभा का जन्म होता है और बाद में सरकार बनती है।”

राज्यपाल द्वारा संविधान की मर्यादा को बनाए रखने वाली शपथ का हवाला देते हुए पूर्व जस्टिस ने कहा, “इस मामले में राज्यपाल ने संविधान और संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों का साफ तौर पर उल्लंघन किया है। वह उच्च कार्यालय की गरिमा को कायम रखने में विफल रहे हैं।” गौरतलब है कि शनिवार को राज्यपाल ने बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को सीएम तथा एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई थी।

इस बाबत एनसीपी का आरोप है कि उनके विधायकों के हस्ताक्षर धोखे से लिए गए और राज्यपाल को सौंपे गए। फिलहाल, अजित पवार की भूमिका को लेकर एनसीपी खेमे में बवाल मचा हुआ है। माना जा रहा है कि अजित को छोड़ अब सभी विधायक अपनी वफादारी पार्टी प्रमुख शरद पवार के प्रति जाहिर की है।

इस पूरे घटनाक्रम पर संविधान विशेषज्ञ उल्हास बापत ने बताया कि एनसीपी के सीएलपी पद से हटाए जाने के बाद बहुमत परीक्षण के दौरान अजित पवार के व्हिप का प्रभाव कायम नहीं रहेगा। उन्होंने कहा, “यह एक सामान्य नियम है कि यदि पहले निर्णय को कोई दूसरा निर्णय समाप्त कर देता है, तो ऐसी स्थिति में दूसरा निर्णय ही मान्य होता है। अब एनसीपी ने जयंत पाटिल को विधायक दल का नेता नियुक्त किया है। लिहाजा, अब नए नेता का व्हिप मान्य होगा।”