लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।सैकड़ों साल से चले आ रहे बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि विवाद पर देश की सर्वोच्च अदालत के द्वारा दिए गए फ़ैसला कम (सेटलमेंट ज़्यादा) को बाबरी मस्जिद के पक्षकारों ने रिव्यू पिटीशन दाखिल करने का फ़ैसला किया है।जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने हमारे से फ़ोन पर बात करते हुए कहा कि जमीअत की राष्ट्रीय कार्यसमिति के ज़्यादातर सदस्य इस बात के हामी थे कि इस मामले में रिव्यू पिटीशन दाखिल करनी चाहिए उनकी राय के मुताबिक़ हमने यें फ़ैसल किया था कि रिव्यू पिटीशन दाखिल किया जाना चाहिए या नहीं इसके लिए एक कमेटी बनाई गई थी उसकी रिपोर्ट आ गई है कि रिव्यू पिटीशन दाखिल करनी चाहिए इस लिए हम रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं।जमीअत के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि हमें मालूम है कि कुछ नहीं होगा लेकिन जब लोगों की राय यही है इस लिए ऐसा करने जा रहे हैं अब सवाल यह खड़ा होता है कि जब रिव्यू पिटीशन करने से कुछ नहीं होगा तो क्यों किया जा रहा है सिर्फ़ लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है।मुसलमान की सबसे बड़ी परेशानी इसको लेकर है कि उसके रहनुमा सरकार के हाथों का खिलौना बन गए हैं जो सरकार चाहती है उतना ही बोलते हैं जितनी चाबी भरी सरकार ने उतना ही चलेंगे हमारे स्वयंभू रहनुमा बाक़ी मुसलमान की क्या ज़रूरत है उसकी किसी को कोई चिन्ता नहीं है।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक से महमूद मोदनी बैठक को बीच में ही छोड़कर चले गए इस पर कोई कुछ बताने या बोलने को तैयार नहीं है हा तरह-तरह की बातें की जा रही है कोई कुछ कह रहा है तो कोई कुछ।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक लखनऊ के मुमताज़ कॉलेज में आयोजित की गई बैठक में मुस्लिम रहनुमाओं ने मुसलमानों के दबाव के चलते न चाहते हुए भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को या सेटलमेंट पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फ़ैसला करना पड़ा।ग़ौरतलब हो कि नौ नवम्बर को आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद देश और दुनिया का न्याय पसंद इंसान संतुष्ट नहीं था लेकिन देश में अमन शांति रहे इसको लेकर भी सतर्क था यही वजह रही कि फ़ैसला क़ानून और सबूतों के विरूद्ध होने की बात मानने वालों ने देश का अमन चैन नहीं बिगड़ने दिया।वैसे देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में ये बात कह रहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मन्दिर तोड़ कर नहीं किया गया था वहाँ नमाज़ होने की बात भी स्वीकार रहा है वहाँ मूर्तियाँ रखने को सही नहीं मान रहा , मस्जिद को शहीद करने वालों को ग़लत मान रहा है जब यह सब ग़लत , सही है तो फिर कोर्ट कहता है कि यहाँ मन्दिर बनाया जाए क्या यही इंसाफ़ होता है इसको लेकर मुसलमान हैरान और परेशान हैं और उसके स्वयंभू रहनुमा जो सरकार और आरएसएस के हाथों का खिलौना बने हुए थे या है उनको मजबूरन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले या सेटलमेंट के विरूद्ध रिव्यू पिटीशन दाखिल करने जा रहे हैं।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक बैठक आज लखनऊ के मुमताज़ कॉलेज में बोर्ड के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद मौहम्मद राबें हसनी नदवी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसमें बाबरी मस्जिद से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर चर्चा की गई।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में कहा गया कि मुसलमानों के द्वारा दिए गए साक्ष्यों के आधार पर यह साबित हुआ है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के कमांडर मीर बाक़ी के द्वारा सन 1528 में किया गया था जैसा कि मुक़दमा नंबर 5 के वादी ने अपने पत्र में स्वयं माना है।दूसरा सन 1857 से सन 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुम्बद वाला भवन तथा मस्जिद का अंदरूनी सहन मुसलमानों के क़ब्ज़े में व प्रयोग में रहा यानी (नमाज़ अदा) होती रही इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने माना है।तीसरा बात बाबरी मस्जिद में अंतिम नमाज़ 16 दिसम्बर 1949 तक अदा की गई इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने माना है। 22-23 दिसम्बर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे असंवैधानिक तरीक़े से रामचंद्रजी की मूर्ति रख दी गई इसी भी सुप्रीम कोर्ट ने ग़लत माना है।बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे की भूमि पर जन्म स्थान के रूप में पूजा अर्चना किया जाना साबित नहीं हुआ।मुसलमानों के द्वारा दायर वाद संख्या 4 मियाद LIMITATION के अंदर है तथा आंशिक रूप से डिक्री किए जाने योग्य है।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद का शहीद किया जाना भारत के संविधान के विरूद्ध था।यह कि विवादित भवन में चूँकि हिन्दू भी सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं इसलिए पूरे विवादित भवन की भूमि वाद संख्या 5 के वादी नंबर एक (भगवान श्री राम लला ) को दी जाती हैं। विवादित भूमि वाद संख्या 5 के वादी संख्या एक को दी गई है इसलिए मुसलमानों को पाँच एकड़ ज़मीन केंद्र सरकार द्वारा या तो एक्वायरड लैण्ड या राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में किसी अन्य प्रमुख स्थान पर दी जाए जिस पर वह मस्जिद बना सके यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए दिया है उपरोक्त पाँच एकड़ भूमि सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड को दिए जाने की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1528 में बनी बाबरी मस्जिद किसी मन्दिर को तोड़ कर नहीं बनाई गई थी।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि असंवैधानिक तरीक़े से 22-23 दिसम्बर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद में रखी गई मूर्तियाँ रखे जाने के संबंध में दर्ज FIR और उत्तर प्रदेश सरकार व DM एवं SSP फ़ैज़ाबाद के द्वारा वाद संख्या एक व दो में दाखिल जवाब दावे में यह स्वीकार किया जा चुका है कि उपरोक्त मूर्तियाँ चोरी से तथा ज़बरदस्ती रखी गई थी और हाई कोर्ट इलाहाबाद की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर 2010 के निर्णय में भी उपरोक्त मूर्तियों को DEITY नहीं माना था।इन सभी परिस्थितियों में आज की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में यह महसूस किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में कई बिन्दुओं पर विरोधाभास है बल्कि कई बिन्दुओं पर यह फ़ैसला समझ से परे हैं प्रथम दृष्टया में अनुचित प्रतीत होता है। बैठक में सभी सदस्यों की आम राय थी कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला न्याय के अनुकूल नहीं हैं।जब 22-23 दिसम्बर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में रखी गई मूर्तियाँ असंवैधानिक था तो इस प्रकार अवैधानिक तरीक़े से रखी गई मूर्तियों को DEITY कैसे मान लिया गया है ? जो हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार भी DEITY नहीं हो सकती हैं। जब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का नमाज़ अदा करना साबित हुआ है तो मस्जिद की ज़मीन को वाद संख्या के 5 के वादी संख्या एक को किस आधार पर दे दिया गया ? संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय फ़ैसला देने वालों ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक़्फ़ एक्ट 1995 की धारा 104-A तथा 51 (1) के अन्तर्गत मस्जिद की ज़मीन EXCHANGE या TRANSFER को पूर्णतया बाधित किया गया है तो STATUE के विरूद्ध तथा उपरोक्त वैधानिक रोक पाबन्दी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की ज़मीन के बदले में दूसरी ज़मीन कैसे दी जा सकती हैं ? जबकि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूसरे फ़ैसलों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं है।फ़ैसले में इतनी ख़ामियाँ होने के बाद भी मुसलमानों के रहनुमाओं ने अपील न कर रिव्यू पिटीशन दाखिल करने का ही फ़ैसला क्यों लिया है ? असल में इस रिव्यू पिटीशन दायर करने का मक़सद सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने पर ज़ोर दिया जाएगा जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों को मस्जिद की ज़मीन के बदले पाँच एकड़ ज़मीन देने का आदेश दिया है। मस्जिद की ज़मीन के बदले में मुसलमान कोई अन्य ज़मीन नहीं ले सकते इस लिए मुसलमानों को बाबरी मस्जिद की ज़मीन ही दी जाए मुसलमान किसी दूसरी ज़मीन पर अपना हक़ लेने सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे बल्कि मस्जिद की ज़मीन पर असंवैधानिक तरीक़े से क़ब्ज़ाईं गई ज़मीन को मुक्त कराने सुप्रीम कोर्ट गए थे।रिव्यू पिटीशन तो एक बहाना है मक़सद मुसलमानों का बेवकूफ बनाना है।मुसलमानों के साथ हमेशा से ही उनके स्वयंभू रहनुमाओं ने छलकपट किया है।