नई दिल्ली: सुस्त अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए सरकार हर स्तर पर प्रयास कर रही है। बीते दिनों कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती जैसे बड़े कदम उठाए गए। तमाम कोशिशों के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने शुक्रवार को रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की। रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। इसमें कमी आने से बैंकों को सस्ता कर्ज मिलेगा तो उन पर ब्याज दरें घटाने का दबाव बढ़ेगा। रेपो रेट 5.40% से घटकर 5.15 कर दी गई है जो कि पिछले 9 साल में सबसे कम है।

इस साल ये पांचवीं बार है जब रेपो रेट में कटौती हुई है। ‘द क्विंट’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक शीर्ष बैंक रेपो रेट में 110 प्वाइंट की कटौती कर चुका है लेकिन बैंकों ने इसके विपरीत ब्याज दरों में सिर्फ 35 बेसिस प्वाइंट की ही कटौती की है।

मंदी को दूर करने के लिए उठाए गए आरबीआई के इस कदम का फायदा ग्राहकों को तभी मिलेगा जब बैंक भी ज्यादा से ज्यादा प्वाइंट्स की कटौती करें। लेकिन 110 के मुकाबले 35 प्वाइंट्स की कटौती से ग्राहकों की जेब पर ज्याद असर नहीं पड़ेगा। बैंक 75 प्वाइंट्स को निगल गए हैं या फिर ये कहें कि ग्राहकों को इतने प्वाइंट्स की कटौती न मिलने से सस्ता कर्ज नहीं मिल रहा। माना जा रहा है कि आरबीआई का यह फैसला मंदी की रफ्तार रोकने में नाकाम रहेगा।

उम्मीद जताई जा रही थी कि इस रेट कटौती से ग्राहकों को फायदा पहुंचेगा लेकिन बैंकों ने जिस तरह बेसिस प्वाइंट्स पर कटौती में कंजूसी दिखाई है उससे न तो पुराने लोन पर ब्याज दर में ज्यादा कमी आई है और न ही नए लोन पर। आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती के साथ ही यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर आने वाले समय में रेपो रेट में और कटौती की जा सकती है। ऐसे में आरबीआई के इस संकेत से ग्राहक एक और कटौती का इंतजार कर अभी कर्ज लेने से खुद को रोक रहे हैं।

वहीं केंद्र का लोन मेला का आइडिया पूरी तरह से कारगर नजर नहीं आ रहा है। मेला लोन लेने के लिए लोगों को आकर्षित करने के अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो रहा है।