नई दिल्ली: निर्मोही अखाड़े के दस्तावेज और सबूत 1982 में डकैत ले गए. ये बात निर्मोही अखाड़े के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कही. अखाड़े के वकील ने यह बात कोर्ट में तब बताई जब चीफ जस्टिस ने अखाड़ा से कहा कि वह सरकार द्वारा 1949 में ज़मीन का अटैचमेंट करने से पहले के जमीन के मालिकाना हक को दर्शाने वाले दस्तावेज, राजस्व रिकॉर्ड या अन्य कोई सबूत कोर्ट के समक्ष पेश करे.
निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि इस मामले में वे असहाय हैं. वर्ष 1982 में अखाड़े में एक डकैती हुई थी. जिसमें उन्होंने उस समय पैसे के साथ उक्त दस्तावेजों को भी खो दिया था. इस पर चीफ जस्टिस (CJI) ने पूछा- क्या अन्य सबूत जुटाने के लिए केस से जुड़े दस्तावेजों में फेरबदल किया गया था?
इससे पहले जस्टिस बोबड़े ने पूछा- क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत राम जन्म भूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? ऐसा इसलिए क्योंकि निर्मोही अखाड़े ने इस आदेश को क़ानून में तय अवधि समाप्त होने के बाद निचली अदालत में चुनौती दी थी. दरअसल अखाड़ा ने तय अवधि (6 साल) समाप्त होने पर 1959 में आदेश को चुनौती दी थी. इस पर अखाड़ा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 1949 में सरकार का अटैचमेंट ऑर्डर था और उस ऑर्डर के ख़िलाफ़ मामला 1959 तक निचली अदालत में लंबित था. लिहाजा 1959 में निर्मोही अखाड़े ने निचली कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी.
उल्लेखनीय है कि राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में छह अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू हुई है. 18 पक्षकारों में सबसे पहले निर्मोही अखाड़ा अपना पक्ष रख रहा है. इस कड़ी में लगातार दूसरे दिन सुनवाई में निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार की बहस जारी रही.
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