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आरटीआई कानून को बाधा के रूप में देख रही है मोदी सरकार : सोनिया गांधी

नई दिल्ली : यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने सूचना का अधिकार (आटीआई) कानून में बदलाव करने की मोदी सरकार के प्रयास की आलोचना की है। सोनिया ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा है कि मोदी सरकार आरटीआई कानून में संशोधन कर इसे खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है। बता दें कि मोदी सरकार ने गत शुक्रवार को लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक (2019) पेश किया जिसे निम्न सदन ने सोमवार को पारित कर दिया। सरकार के इस कदम का विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया है। विपक्षी दलों का कहना है कि संशोधन के जरिए सरकार इस कानून को कमजोर करना चाहती है। जबकि सरकार का तर्क है कि 2005 में इस कानून को जल्दबाजी में पारित किया गया और इसमें कुछ खामियां रह गईं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है।

यूपीए चेयरपर्सन ने अपने बयान में कहा, 'यह अत्यंत चिंता की बात है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना का अधिकार (आरटीआई) को पूरी तरह से खत्म करने पर तुली हुई है। इस कानून को काफी विचार-विमर्श करने के बाद तैयार किया गया और संसद ने इसे एकमत होकर पारित किया। अब यह कानून खत्म होने के कगार पर है।' विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस कानून में संशोधन कर सूचना आयुक्तों को 'दंतहीन बाघ' बनाना चाहती है।

सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक (2019) सरकार को विभिन्न सरकारी संस्थाओं में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के नियम एवं शर्तों, उनके कार्यकाल एवं वेतन-भत्ते पर निर्णय करने का अधिकार देता है। जबकि सूचना का अधिकार 2005 में मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों का वेतन, नियुक्ति शर्तें एवं भत्ते मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के समान है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार संशोधन विधेयक के जरिए सूचना आयुक्तों को उनके अधिकार से 'वंचित' करना चाहती है।

उन्होंने आगे कहा, 'जाहिर है कि मौजूदा सरकार को आरटीआई कानून को एक बाधा के रूप में देखती है। केंद्रीय सूचना आयोग जिसे मुख्य चुनाव आयोग एवं केंद्रीय सतर्कता आयोग के समान दर्जा दिया गया है, सरकार उसकी इस आजादी एवं दर्जे को खत्म करना चाहती है। सरकार सदन में अपने संख्या बल के आधार पर इस लक्ष्य को पा सकती है लेकिन यह देश के प्रत्येक नागरिक को कमजोर बनाएगा।'
लोकसभा में सोमवार को कांग्रेस के अलावा टीएमसी, बहुजन समाज पार्टी और डीएमके ने संशोधन विधेयक का विरोध किया। जबिक सरकार ने विपक्ष के आरोपों एवं दावों को खारिज किया। सरकार ने कहा कि वह संस्थाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बनाए रखने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि 2005 में तत्कालीन सरकार ने आरटीआई को जल्दबाजी में पारित कराया। उस समय इस विधेयक में कुछ खामियां रह गईं जिन्हें अब ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है। लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक के पक्ष में 218 वोट जबकि इसके खिलाफ 79 वोट पड़े।

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