नई दिल्ली: पत्रकारिता को देश में संविधान का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन हाल ही में लोकसभा में पेश हुई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट देखें तो पता चल जाएगा कि देश में पत्रकारों के लिए हालात माकूल नहीं है। आज तक की एक खबर में बताया गया है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2013 से अब तक देश में पत्रकारों पर हमले के 190 मामले सामने आए हैं। वहीं राज्यों की बात करें तो पत्रकारों के लिए उत्तर प्रदेश के हालात सबसे ज्यादा खराब हैं, जहां पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले की खबरें आयीं। रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से अब तक उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले के 67 केस दर्ज हुए।

वहीं दूसरे और तीसरे नंबर पर भी हिंदी पट्टी के राज्यों का ही स्थान है। बता दें कि मध्य प्रदेश 50 मामलों के साथ दूसरे और बिहार 22 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में साल 2014 में पत्रकारों पर हमले के 63, साल 2015 में 1 और साल 2016 में 3 मामले दर्ज हुए। गौरतलब है कि पत्रकारों पर हमले के साथ ही आरोपियों की गिरफ्तारी के मामले में भी कोई बहुत ज्यादा अच्छे हालात नहीं है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2014 में पत्रकारों पर हमले के मामले में सिर्फ 4, 2015 में एक भी नहीं और साल 2016 में सिर्फ 3 लोगों की गिरफ्तारियां हुई।

साल 2017 में द इंडियन प्रेस फ्रीडम की रिपोर्ट आयी। उस रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में देशभर में पत्रकारों पर हमले की 46 घटनाएं घटी। हैरानी की बात ये है कि इन घटनाओं में से 13 मामलों में पुलिसकर्मियों पर आरोप लगे। इसके बाद 10 हमले नेताओं और राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने किए। हाल ही में यूपी के शामली में भी पुलिसकर्मियों द्वारा एक पत्रकार को बुरी तरह से पीटने का मामला सामने आया था। जिसकी मीडिया में खूब चर्चा हुई थी। पीटने के साथ ही पत्रकार के साथ अमानवीय व्यवहार करने के आरोप भी पुलिसकर्मियों पर लगे हैं। दुनियाभर में प्रेस की आजादी की बात करें तो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2019 में भी भारत की स्थिति को चिंताजनक बताया गया है। मेक्सिको पत्रकारों के काम करने के लिए सबसे खतरनाक जगह है। वहीं नॉर्वे को पत्रकारों के काम करने के लिए सबसे सुरक्षित देश माना गया है।