लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनावी गठबंधन पर कुछ समय के लिए विराम लगा दिया है। बसपा सुप्रीमो ने समाजवादी पार्टी के कोर वोट के गठबंधन के उम्मीदवार को ट्रांसफर नहीं होने का आरोप लगाया। मायावती ने कहा कि यादवों और जाटों ने गठबंधन प्रत्याशियों को वोट नहीं दिया। इसलिए कुछ समय के लिए गठबंधन पर विराम लगाना जरूरी हो गया है। अगर सपा नेता आगे कुछ कर पाते हैं, तो गठबंधन पर फिर से विचार किया जा सकता है। अगले 6 महीने में उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इसमें से आठ सीटें भाजपा के पास हैं, एक सीट बसपा के खाते की है। एक सीट समाजवादी पार्टी की है। वहीं, एक सीट अपना दल की है। अब सबकी निगाहें इसी उपचुनाव पर लगी हुई हैं।

बसपा ने पिछले लोकसभा उपचुनाव में भाग नहीं लिया था, जहां से गठबंधन की नींव पड़ी थी। लेकिन इस चुनाव में गठबंधन के बल पर बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई है। जिससे बसपा को जीवनदान मिल गया। पिछले चुनाव में तो बसपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। उसके बाद विधानसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। उसको महज 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था।

बसपा अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए और उत्तर प्रदेश में भाजपा की मजबूती को रोकने के लिए सपा के साथ अपनी वर्षों पुरानी दुश्मनी को भुलाकर गठबंधन किया। लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजे गठबंधन के लिए काफी निराशजनक रहे। उत्तर प्रदेश में गठबंधन को भारी हार का सामना करना पड़ा। सपा को केवल पांच और बसपा को दस सीटों पर जीत मिली। लेकिन बसपा दस सीटें जीतकर फिर से जीवित हो गई। वहीं, सपा अपनी परंपरागत सीटें भी हार गई।

दोनों पार्टियों के एक साथ आने के बाद किसी को भी यह विश्वास नहीं हो रहा था कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन हार भी सकता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के माइक्रो मैनेजमेंट और जातीय केमिस्ट्री ने गठबंधन के गणित को बिगाड़ करके रख दिया। सपा के अपने गढ़ में हार के बाद लोगों को यह महसूस हुआ कि सपा का कोर वोट बैंक उससे दूर हो गया।

अब समीक्षा के दौरान इस बात पर चिंतन होना भी जरूरी है। बसपा सुप्रीमो ने इस पर विचार किया कि समाजवादी पार्टी के नेताओं में अगर इतना दम नहीं है कि वो अपने कोर वोट बैंक को अपने साथ रख सकें, तो इस गठबंधन को आगे बढ़ाने से बेहतर है कि हम अपनी राहें अलग कर लें। अगर दोबारा जरूरत पड़ेगी, तो गठबंधन कर लेंगे। इसमें किसी को धोखा देने जैसी कोई बात नहीं है। उन्होंने गठबंधन खत्म नहीं किया है, बल्कि उपचुनावों तक के लिए विराम दिया है। एक तरह से अखिलेश यादव को खुद को मजबूती से खड़ा करने के लिए एक मौका दिया है।

मायावती ने कहा कि अखिलेश और उनकी पत्नी डिंपल ने उनको बहुत अधिक सम्मान दिया है। जिसकी वजह से वो भी उन दोनों का बहुत सम्मान करती है। हमारा उनके साथ व्यक्तिगत संबंध भविष्य में जारी रहेंगे, लेकिन राजनीतिक संबंधों पर थोड़े समय के लिए विराम देना जरूरी हो गया था।

बसपा के उपचुनावों में अकेले लड़ने के ऐलान के बाद सपाध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अकले लड़ने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर गठबंधन टूटता है तो हम उस पर चिंतन करेंगे। जहां तक उपचुनावों में अकेले लड़ने की बात है, तो हम भी उसकी तैयारी शुरू करेंगे।