लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।सियासत भी बडी अजीबोग़रीब होती है बड़ों-बड़ों को वो सबकुछ करने को मजबूर कर देती है जिसकी किसी को उम्मीद नही होती वैसे तो यूपी में बसपा-सपा और रालोद के गठबंधन ने मोदी की भाजपा को अर्श से फ़र्श पर आने को मजबूर कर दिया है लेकिन अगर हम देश की बात करे तो कांग्रेस फ़्रंटफुट पर खेलती दिखाई दे रही है मोदी की भाजपा को उसकी सही जगह पर लाने के लिए बहुत तेज़ी से बढ़ रही है ऐसे क़यास लगाए जाने लगे कि कांग्रेस 200 के आँकड़े को छू रही है और मोदी की भाजपा 100 के अंदर रह सकती है। क्या देश परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है ? क्या मोदी की भाजपा सत्ता से बाहर हो रही है ? क्या NDA घबराया हुआ है ? इन पेचीदा सवालों के जवाब देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र लखनऊ में दिया है जब वो मुस्लिम धर्मगुरुओं के घरों का तवाफ करने यानी चक्कर लगाने में लगे है।परिणाम क्या रहेगा यह कहना तो मुश्किल है मगर वोटरों के मिज़ाज ने हार का ख़ौफ़ पैदा कर दिया है। देश के मतदाता का रूझान क्या है ये भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बेहतर कौन जान सकता है क्योंकि उनके पास तमाम सरकारी एजेंसियाँ है जो पल-पल की जानकारियाँ देती रहती है क्या उन्हें IB ने पूरे देश का रूझान बता दिया है इसी लिए राजनाथ सिंह अपनी हार को टालने के लिए मुस्लिमों के धर्मगुरुओं के घरों के चक्कर काट रहे है और अपनी हार को टालने का प्रयास कर रहे है।गृहमंत्री राजनाथ सिंह की इस सियासी उछलकूद से पता चलता है कि क्या देश का सियासी मिज़ाज मोदी की भाजपा के खिलाफ जा रहा है? मोदी की भाजपा की सरकार में गृहमंत्री पर नज़र रखिए जो मोदी की भाजपा की हार का पैरा मीटर बन गए है। वो लखनऊ से पिछले पाँच साल से सांसद है मगर अचानक उमड़े इस प्यार के बहुत कुछ मायने है जब वो प्रचार के लिए निकलते है तो उनके साथ एक तरफ़ उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस छोड़कर मोदी की भाजपा का सहयोग करने आए अम्मार रिज़वी रहते है। कभी उनकी गाड़ी नदवा की तरफ़ दौड़ती है तो कभी डाक्टर क़ल्बे सादिक़ और कभी मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली के घर की तरफ़ आखिर इस उछलकूद के क्या मायने है।यही हाल मेनका गांधी का भी हो रहा कभी वह मुसलमानों को धमकाने जैसी भाषा का प्रयोग करती है तो कभी नाक रगड़ती नज़र आती है एक बात तो सच है कि सियासत में नेता किसी से नही डरता हाँ अगर डरते है तो सिर्फ़ हार से उसी से बचने के लिए ये सब हो रहा है राजनाथ सिंह और मेनका गांधी यही संदेश देने की कोशिश कर रहे है कि मोदी को हराए लेकिन हम पर रहम करिए हमें मत हराओ क्या लखनऊ से राजनाथ सिंह और सुल्तानपुर से मेनका गांधी को मोदी हराओ सूनामी हरा पाने में कामयाब हो जाएगी या राजनाथ सिंह का बनावटी प्यार हार को टालने में कामयाब हो जाएँगे ख़ैर ये तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा कि मोदी हराओ सूनामी किस किस को सांसद पहुँचने से महरूम रखती है या नेताओं का ये बनावटी प्यार इस सूनामी को भी मजबूर कर संसद पहुँचने में मदद करता है जहाँ तक राजनाथ सिंह का व्यक्तिगत मामला है उनका मुसलमानों में उस स्तर का विरोध नही है कि वह क़सम खाकर उनका विरोध करेगा ऐसा नही लगता लेकिन उनको वोट मिलेगा या नही मिलेगा ये कहना जल्दबाज़ी होगी हा मेनका गांधी के लिए कहा जा सकता है कि उनकी राह आसान नही है अब देखना होगा कि इन दोनों की सियासी EVM का बटन दबता है या उसमें भी जैसा अन्य जगह हो रहा है वैसा ही होगा ये देखने वाली बात होगी।2014 के बाद से भारतीय जनता पार्टी में एक बहुत बड़ा बदलाव आया जिसने भाजपा को मोदी की भाजपा में बदल दिया आज की मोदी की भाजपा में किसी नेता की कोई हैसियत नहीं है हर कोई अपने आपको बँधवा मज़दूर समझ रहा है वहाँ से जो फ़ैसला होता है वही मान्य होता है इसी प्रणाली से आहत नेता मोदी की भाजपा को हारता तो देखना चाहते है लेकिन उस हार में ख़ुद बलि नहीं देना चाहते है बस यही प्रयास हो रहे है कि मोदी की भाजपा तो हार जाए लेकिन मैं जीत जाऊँ देखते है कितने नेता यूपी में चल रही मोदी हराओ सूनामी से बचने में कामयाब होते है।