नई दिल्ली: 2019 की गर्मियां किसानों के लिए चुनौती भरा रहने वाली हैं। देश का 42 फीसदी हिस्सा अभी से सूखे की चपेट में है। इनमें से 6% वो हिस्सा है जो कई सालों से सूखे की मार झेल रहा है। इस संबंध में सूखे की पहले ही जानकारी देने वाला सिस्टम DEWS (Drought Early Warning System) ने 26 मार्च तक का एक आंकड़ा दिया। आंकड़ों के मुताबिक भविष्य में यह चुनौती और भी विकराल रूप धारण कर सकती है। हालांकि, चुनावी वर्ष होने के चलते इस ओर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है। चुनाव-प्रचार में किसान की तो काफी चर्चा है, मगर उनकी फजीहतों को दूर करने के लिए तात्कालिक रूप से प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

सूखे की सबसे ज्यादा मार आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में पड़ी है। गौरतलब है कि इन राज्यों में देश की करीब 40 फीसदी आबादी रहती है। हालांकि, अभी तक केंद्र सरकार ने किसी भी क्षेत्र को सूखा प्रभावित घोषित नहीं किया है। हालांकि, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने अपने यहां कई जिलों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया है।

इस संबंध में जानकार आने वाले दिनों को और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बता रहे हैं। ‘इंडियास्पेंड’ के मुताबिक मानसून के पहले अभी तीन-चार महीनों तक स्थिति काफी खराब रहने वाली है। मानसूनी बारिश में कमी की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कतें पेश आ रही हैं। पोस्ट मानसून (अक्टूबर- दिसंबर) से भी 10 से 20 फीसदी बारिश भारत में हो जाती है। लेकिन, 2018 में इसमें भी 44 फीसदी की कमी देखी गई। विशेषज्ञों का मानना है कि 2017 को छोड़ 2015 से ही लगातार भारत सूखे के चुनौतीपूर्ण अनुभव से गुजर रहा है। मार्च से मई महीने के बीच होने वाली बारिश में काफी कमी देखी गई है।

बारिश कम होने की वजह से धरती के भीतर पानी का लेवल भी कम हो चुका है। पानी का लेवल नीचे जाने से सिंचाई के दूसरे संसाधन भी ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं।