लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।एक बार फिर देश के आम चुनावों में गठबंधनों का दौर 2019 में शुरू हो गया है इस बार के गठबंधन की बुनियाद विचारधारा को लेकर बना रहे है एक तरफ़ कहा जा रहा है कि एक ऐसी विचारधारा है जो देश को बाँटने का काम कर रही है तो दूसरी तरफ़ की विचारधारा सबको साथ लेकर चलने का दम भर रही है 2004 में एनडीए को शाइनिंग इंडिया और फ़ीलगुड के नारों की चकाचौंध को फीका कर यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी के नेतृत्व में जीत दर्ज कर एनडीए को सत्ता से बेदख़ल कर लगातार दस साल सरकार चलाई थी। जोड़-तोड़ के इस खेल में कौन बाज़ी मारता है यह तो धीरे-धीरे साफ हो जाएगा कि ज़्यादा मज़बूत गठबंधन कौनसा दल बनाने में कामयाब होता है।2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के नेतृत्व में बन रहे गठबंधन ही तय करेगे कि 2019 के चुनाव में किसकी सरकार बनने जा रही है यूपीए की या एनडीए की।2004 के चुनाव की तरह एनडीए से उसके सहयोगी भाग रहे है और यूपीए के सहयोगी बढ़ रहे है नए चुनावी आँकड़े यही इसारा कर रहे है यूपीए मज़बूत हो रहा है इसी लिए ये क़यास लगाए जाने लगे कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में देश 2004 को दोहराने जा रहा है यूपी में न होने वाले गठबंधन ने भी गठबंधन का रूप ले लिया है बसपा और सपा के एक साथ आ जाने से मोदी की भाजपा के गठबंधन को सबसे ज़्यादा नुक़सान देने वाला माना जा रहा है।वैसे तो बिहार , झारखंड , महाराष्ट्र व तमिलनाडु में हाल ही में हुए सियासी तालमेल से राष्ट्रीय पार्टियों की अंदरूनी हलचल की तफ़सील बयान कर रही है मोदी की भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चाहते है की केन्द्र की सत्ता में बने रहने के लिए छोटे दलो को अपने साथ जोड़ा जाए देखने में आया है कि जब-जब छोटे दल भाजपा और कांग्रेस ने अपने साथ ज़्यादा किए तो उसके परिणाम उसी दल के हक़ में आए जिसने छोटे दल अपने साथ ज़्यादा जुटा लिए 1999 से लेकर 2014 तक के चुनावी परिणाम इसी और इसारा करते है एनडीए के पास 1999 में 19 छोटे दल थे जिनके सहारे एनडीए सत्ता की दहलीज़ पर पहुँचा था जबकि यूपीए 11 पार्टियों को लेकर चुनावी मैदान में गया था परन्तु सरकार अटल के नेतृत्व में एनडीए की बनी थी यूपीए के पास सात छोटे दल कम थे।2004 के आम चुनाव में यूपीए ने बीस छोटे दलो को जोड़ने में कामयाबी हासिल की यही हाल 2009 में भी रहा और दोनों मरतबा यूपीए की ही सरकार बनी मुलायम सिंह यादव और मायावती का बिना माँगे ही समर्थन मिला 2014 के चुनाव में फिर से एनडीए ने मोदी मैजिक के साथ यूपीए के मुक़ाबले अपने साथ ज़्यादा छोटे दलो को जोड़ने में कामयाबी हासिल की और 336 सीटों के साथ मज़बूत सरकार बनाई इस बार एनडीए के दलो की संख्या आठ ज़्यादा थी।छोटे दलो के साथ गठबंधन करना राष्ट्रीय पार्टियों की मजबूरी बन गई है गठबंधन के सहारे 1999 में सरकार बनाने वाला एनडीए शाइनिंग इंडिया और फ़ीलगुड के शानदार नारों के बाद 2004 में चुनाव हार गए 1999 के आम चुनाव में 182 सीटें जीतने वाली तब की भाजपा 2004 में 138 सीटों पर आ गई 2009 में भी भाजपा हार से नही उभरी इसके बाद 2014 भाजपा ने मोदी को चेहरा बनाया और अपने साथ छोटे दलों को जोड़ने में भी कामयाब रही जब की भाजपा आज की मोदी की भाजपा ज़बरदस्त जीत हासिल कर सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई।मोदी की भाजपा को जिस राज्य ने 2014 में सरकार बनाने के लिए सबसे ज़्यादा सीटें दी अब उसी राज्य से मोदी की भाजपा को सबसे कम सीटें मिलने की तैयारी हो गई है क्योंकि वहाँ बसपा और सपा ने आपस में चुनावी गठबंधन कर लिया है यह गठबंधन हो जाने से यूपी के सियासी समीकरण बसपा और सपा के हक़ में लग रहे है 2004 में दस सीटें जीतने वाली तब की भाजपा आज की मोदी की भाजपा शायद ही 2004 के आँकड़े के पास जा सके क्योंकि इन दोनों दलो की मिलकर बहुत बड़ी ताक़त बन जाती है जिस आधार पर इन दोनों दलो को ताक़तवर माना जाता है उसकी वजह दलित , मुस्लिम और यादव को माना जा रहा है इन तीनों की वोटों की संख्या मिलकर 45% के पार हो जाती है जिसकी वजह से ये गठबंधन सभी पर भारी पड़ रहा है यही हाल बिहार में है वहाँ लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ एनडीए के दो दल मिल गए है जिसकी वजह से वहाँ भी महागठबंधन भारी लग रहा है 2004 में लालू कांग्रेस और पासवान ने 40 में से 29 सीटें जीती थी ऐसा ही 2019 में होने की संभावना लग रही रही है मात्र 11 सीटों पर संतोष करना पड़ा था भाजपा और जदयू को।बाक़ी प्रदेशों में भी कांग्रेस यूपीए को मज़बूत करने में लगी है तो वही मोदी की भाजपा भी एनडीए से दल न भागे इस पर काम कर रही है लेकिन उनके प्रयासों के बाद भी एनडीए के दलो को यूपीए के साथ या अन्य विकल्पों पर काम करते देखा जा रहा है यह सब संकेत है जो साफ-साफ इशारा कर रहे है कि 2019 के आम चुनावों में 2004 को दोहराया जा सकता है।