नई दिल्ली: कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की एक्टिव पाॅलिटिकल एंट्री ने पहले ही विरोधियों को परेशानी में डाल दिया था, अब यह संकेत दे कर कि- वे लोस चुनाव नहीं लड़ेंगी, विरोधियों की बेचैनी को और भी बढ़ा दिया है. प्रियंका गांधी ने खुद चुनाव न लड़ने के संकेत देते हुए कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी का मुकाबला उनसे नहीं, राहुल से होगा. राहुल लड़ रहे हैं. वे संगठन के बारे में सीख रही हैं. वे चुनाव नहीं लड़ेंगी.

पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या उनका मुकाबला प्रधानमंत्री मोदी से होगा? उन्होंने कहा- मेरे से नहीं, राहुल से उनका मुकाबला होगा. मैं अभी संगठन के बारे में सीख रही हूं. लोगों की राय सुन रही हूं. आखिर चुनाव कैसे जीता जाए, इस पर ही बात हो रही है?

दरअसल, लंबे समय से राहुल गांधी अकेले दो मोर्चों पर लड़ रहे थे, एक- केन्द्र सरकार के स्तर पर पीएम मोदी से, दो- संगठन के स्तर पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से, लेकिन अब उन्हें दूसरे मोर्चे पर प्रियंका गांधी का साथ मिल गया है. प्रियंका गांधी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वे संगठन को समय दे रही हैं और कांग्रेस की जीत की भूमिका समझ रही हैं. हालांकि, अमित शाह संगठन के मामले में बेहद सक्रिय और प्रभावी नेता हैं, लेकिन प्रियंका गांधी कुछ मामलों में उनसे आगे हैं.

प्रियंका गांधी एक लोकप्रिय और देशभर में जाना-पहचाना नाम है. उनमें कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने की ताकत ज्यादा है. उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि बेहद प्रभावी है और इसीलिए प्रियंका में उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी की छवि देखी जा रही है. प्रियंका गांधी की विभिन्न चुनावी रैलियों, सभाओं में भीड़ जुटाने की क्षमता बहुत अधिक है.उन्हें देशभर में कांग्रेस का आधार तैयार नहीं करना है, कांग्रेस का आधार पहले से ही है, केवल उस उदासीन माहौल में जोश भरने की जरूरत है.

लेकिन, राजनीतिक जोड़तोड़ के मामले में अमित शाह, प्रियंका गांधी से बहुत आगे हैं. यह प्रियंका गांधी के सामने बड़ी चुनौती है. हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजनेताओं की सियासी जोड़तोड़ तो संभव है, किन्तु जनता में राजनीतिक जोड़तोड़ असंभव है, इसलिए चुनाव में जोड़तोड़ का समीकरण कुछ खास असरदार नहीं रहेगा. सियासी संकेत यही हैं कि प्रियंका गांधी यदि केवल कांग्रेस संगठन पर ही फोकस करती हैं तो बीजेपी के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती होगी!