जॉर्ज फ़र्नान्डिस (जन्म 3 जून 1930) भारतीय राजनेता हैं। वे श्रमिक संगठन के भूतपूर्व नेता, तथा पत्रकार थे वे राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। उन्होने समता पार्टी की स्थापना की। वे भारत के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रक्षामंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री आदि के रूप में कार्य कर चुके हैं। आजकल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वे एकाकी जीवन जी रहे हैं। चौदहवीं लोकसभा में वे मुजफ़्फ़रपुर से जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर सांसद चुने गए। वे 1998 से 2004 तक की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केन्द्रीय सरकार में रक्षा मंत्री थे।

1977 में, आपातकाल हटा दिए जाने के बाद, फर्नांडीस ने अनुपस्थिति में बिहार में मुजफ्फरपुर सीट जीती और उन्हें इंडस्ट्रीज के केंद्रीय मंत्री नियुक्त किया गया। केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने निवेश के उल्लंघन के कारण, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने का आदेश दिया। वह 1989 से 1990 तक रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कोंकण रेलवे परियोजना के पीछे प्रेरणा शक्ति थीं। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री थे, जब कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान और भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किए एक अनुभवी समाजवादी, फर्नांडीस को बराक मिसाइल घोटाले और तहलका मामले सहित कई विवादों से डर लगता है। जॉर्ज फर्नांडीस ने 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीते।

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म जॉन जोसफ फर्नांडिस और एलीस मार्था फर्नांडिस के यहां मैंगलोर में 3 जून 1930 को हुआ। उनकी मां किंग जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं, जिनका जन्म भी 3 जून को हुआ था। इस कारण उन्होंने इनका नाम जॉर्ज रखा। उन्होंने अपना सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट मैंगलोर के एलॉयसिस से पूरा किया। स्कूल की पढ़ाई के बाद परिवार की रूढि़वादी परंपरा के चलते बड़े पुत्र होने के नाते उन्हें धर्म की शिक्षा के लिए बैंगलोर में सेंट पीटर सेमिनेरी भेज दिया गया। 16 वर्ष की उम्र में उन्हें 1946-1948 तक रोमन कैथोलिक पादरी का प्रशिक्षण दिया गया। 19 वर्ष की आयु में उन्होंने हताशा के कारण धार्मिक विद्यालय छोड़ दिया, क्योंकि स्कूल में फादर्स उंची टेबलों पर बैठकर अच्छा भोजन करते थे, जबकि प्रशिक्षणार्थियों को ऐसी सुविधा नहीं मिलती थी। उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने 19 वर्ष की आयु में ही काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने मैंगलोर के सड़क परिवहन उद्योग, रेस्टोरेंट और होटल में कार्यरत श्रमिकों को एकजुट किया।

1973 में फर्नांडिस ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए. इंडियन रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम किया करते थे. यानी भारत कुल संगठित क्षेत्र के करीब सात फीसदी. रेलवे कामगार कई सालों से सरकार से कुछ जरूरी मांगें कर रहे थे. पर सरकार उन पर ध्यान नहीं दे रही थी. ऐसे में जॉर्ज ने आठ मई, 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया. रेल का चक्का जाम हो गया. कई दिनों तक रेलवे का सारा काम ठप्प रहा. न तो कोई आदमी कहीं जा पा रहा था और न ही सामान.

पहले तो सरकार ने इस ध्यान नहीं दिया. लेकिन यह यूनियनों का स्वर्णिम दौर था. कुछ ही वक्त में इस हड़ताल में रेलवे कर्मचारियों के साथ इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स, ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और टैक्सी चलाने वाले भी जुड़ गए तो सरकार की जान सांसत में आ गई.

ऐसे में उसने पूरी कड़ाई के साथ आंदोलन को कुचलते हुए 30 हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इनमें जॉर्ज फर्नांडिस भी शामिल थे. इस दौरान हजारों को नौकरी और रेलवे की सरकारी कॉलोनियों से बेदखल कर दिया गया. कई जगह तो आर्मी तक बुलानी पड़ी. इस निर्ममता का असर दिखा और तीन हफ्ते के अंदर हड़ताल खत्म हो गई. लेकिन इंदिरा गांधी को इसका हर्जाना भी भुगतना पड़ा और फिर वे जीते-जी कभी मजदूरों-कामगारों के वोट नहीं पा सकीं. हालांकि इंदिरा गांधी ने गरीबी और देश में बढ़ती मंहगाई का हवाला देकर अपने इस कदम के बचाव का प्रयास किया. उन्होंने हड़ताल को देश में बढ़ती हिंसा और अनुशासनहीनता का उदाहरण बताया. बाद में आपातकाल को सही ठहराने के लिए भी वे इस हड़ताल का उदाहरण दिया करती थीं