गण+तंत्र, अर्थात लोगो द्वारा निर्मित लोगो के लिए एक ऐसा तंत्र जिसमें लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति इतने जागरूक और सक्षम हों के न कोई उनका शोषण कर सके और न ही उन्हे उनके अधिकरो से वंचित कर सके । पर क्या भारत में ऐसा कोई गणतंत्र है?

अभी हाल ही में दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर जो आंकड़े निकल कर आये उनके अनुसार भारत में मात्र एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 55 प्रतिशत है और 10 प्रतिशत लोगो के पास 77•5 प्रतिशत। क्या यही गणतंत्र की परिभाषा है ? कौन हैं ये 1 प्रतिशत या 10 प्रतिशत लोग? मेरे अपने दृष्टिकोण में शायद यही असल भारतीय गण हैं और इन्हीं का है ये तंत्र। यही तय करते हैं भारत की दशा और दिशा और सरकार। इन्हीं को ध्यान में रखकर बनती हैं भारत में नीतियां। प्रभावित करते हैं ये भारत में गरीब,किसान, मजदूर, छात्र, मध्य वर्ग के जीवन को। सरकार किसी भी दल की हो पर इनके तंत्र पे कोई आंच नही आती, क्योंकि आज भारतीय राजनीति में इतनी अविश्वसनीयता आ गयी है और एक षड्यंत्र के तहत भारतीय राजनीति को इतना खर्चीला बना दिया गया है के सिर्फ नारों और वादों से चुनाव जीतना असंभव सा है। ऐसा नही है के भारत में नारों और वादों के दम पे राजनीतिक दल कभी चुनाव नही जीते, लेकिन हमारे देश के नेताओं ने देश के लोगों से इतनी वादाखिलाफी की है और इतने झूठे नारे दे चुके हैं के भारतीयगणों को अब उनपे विश्वास नही रहा इसलिए अब चुनाव इन्ही 1 प्रतिशत विशिष्ट गणों के बल पर जीते जाते हैं और सरकार बनने के बाद दलों को इन्ही के द्वारा विकसित तंत्र को आगे बढ़ाना पड़ता है। और वही तंत्र बन जाता है भारत का गणतंत्र। गलती से अगर किसी नेता या दल ने आम गणों के हित में कोई तंत्र बना भी दिया तो ये विशेष गण उस तंत्र को धरातल पर नही उतरने देते ।

अब मैं जो कहने जा रहा हूँ वो मेरे अपने विचार हैं और उन विचारों से किसी की भावनाएं आहत हों तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। मैं सोचता हूँ कि क्या वाकई ये संभव है के भारत जैसे विशाल जनसमूह में मात्र 1 प्रतिशत लोग 99 प्रतिशत लोगो के अधिकारों और उनके संसाधनों पर कब्जा कर लें? इस सवाल के जवाब में मेरे विचार में ये आता है कि भारतीय परिदृश्य में जहां 70 प्रतिशत आबादी को अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता हो , वहां ये संभव है और मैं कहीं न कहीं इसके लिए भारतीय समाज को ही जिम्मेदार मानता हूं । मुझे कही न कही भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता और दूरदर्शिता में शून्यता नजर आती है और ये शून्यता हमें विरासत में मिली है। हममें कल भी राजनीतिक जागरूकता और दूरदर्शिता की कमी थी और आज भी है। अगर हम अपने इतिहास पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि हमारे लोगो ने अपने लोगो को ही हराने के लिए बाहरी लोगों का सहारा लिया और उस अदूरदर्शिता का परिणाम ये हुआ कि हमारा इतिहास गुलामी के काले पन्नों से भरा पड़ा है।

हमारे समाज ने अतीत से लेकर आज तक अपना एक दायरा निश्चित किया हुआ है जिसमें हमारी बीवी, हमारे बच्चे, हमारा परिवार आता है अगर दायरा थोड़ा और बड़ा हुआ तो हमारी जाति, हमारा धर्म, हमारा प्रान्त तक आ जाता है , लेकिन हमारा देश तक हम सिर्फ स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर ही पहुंचते है । मसलन हम अपनी जाति के किसी नेता को सिर्फ इसलिए वोट दे देते हैं क्योंकि वो अपनी जाति का है, हम इस पर विचार ही नही करते के उसमें देश का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता है या नही परिणाम स्वरूप आज हमारी राजनीति से राष्ट्र और राष्ट्रीयता की जगह जाति, धर्म,प्रान्त की राजनीति की प्रधानता है। अगर हम भारत की उस आबादी को छोड़ भी दें जिसका पूरा जीवन दो वक्त की रोटी की चिंता में बीत जाता है तो भी हमारे पास एक विशाल जनसमूह बचता है जो इस बढ़ती असमानता को रोक सकता है, जो नीति नियंताओं से पूछ सकता है के चुनाव में जो वादा उन्होंने किया था वो पूरा क्यों नही हुआ, लेकिन वो ऐसा नहीं करते और सिमटे रहते हैं अपने द्वारा विकसित उस दायरे में और प्रयास में रहते भारतीय गणतंत्र के उस अनैतिक तंत्र का हिस्सा बनने को । मैंने बहुतों के मुँह से सुना है के सरकार किसी की बने, हमें राजनीति के चक्कर में नही पड़ना है हमें तो अपना काम ही करना है , लेकिन शायद ऐसा कहते समय वो भूल जाते हैं के उनके जीवन की पहली सांस से लेकर अंतिम सांस तक राजनीति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें प्रभावित करती है। हमारी राजनैतिक जागरूकता की कमी का फायदा उठाते हैं ये विशिष्ट गण और कब्जा करते हैं पूरे देश के संसाधनों पर, और हम विवश होते हैं उनके द्वारा विकसित तंत्र को गणतंत्र मानने पर।

मैं इस लेख के माध्यम से सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि हमें गणतंत्र का सही अर्थ समझना होगा। हमें राजनीतिक रूप से जागरूक होना होगा, हमें अपने को सिर्फ वोट देने तक सीमित न रखकर अपने नीति नियंताओं से पूछना होगा कि आजादी के 70 सालों बाद भी हमारा स्थान भूखे, अशिक्षित और बेरोजगार देशों की श्रेणी में शीर्ष पर क्यों है जबकि हमारे पास विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है, कि हमारी गिनती शीर्ष भ्रष्ट देशो में क्यों होती है, कि हम आज भी अपनी 70 प्रतिशत आबादी को मूलभूत सुविधाएं मुहैया क्यों नहीं करा पाए हैं, कि ऐसा क्यों है कि सिर्फ 1 प्रतिशत लोगो का देश के 90 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा है, की सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 55 प्रतिशत संपत्ति क्यों है, कि संविधान में वर्णित शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में सभी लोगों को समान अवसर प्रदान करने का क्या हुआ?

ऐसे तमाम प्रश्न है, जब तक इनका जवाब प्रत्येक भारतीय अपना प्रतिनिधित्व करने वाले नेता से निरंतर नहीं करेगा, तब तक हम गणतंत्र को असल स्वरूप में नहीं देख पाएंगे ।

श्याम मौर्या
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