लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।2014 के लोकसभा चुनाव में यह नारा आम हो गया था कि अच्छे दिन आएँगे इस नारा का किसी के पास कोई जवाब नही था जैसा 2019 की चुनावी फ़िज़ाओं में नारा गूँज रहा है कि चौकीदार चोर है राफ़ेल विमान पर मोदी सरकार बुरी तरह घिर गई है यह बात अलग है कि सरकार इसे झूटलाने की कोशिश कर रही है अब ये सच है या झूट यह तो जाँच के बाद ही साफ हो पाएगा जिसके लिए मोदी सरकार तैयार नही है सरकार का यही अड़ियल रूख उसकी मनसा पर सवालिया निशान लगा रहा है सुप्रीम कोर्ट को बहाना बना कर उससे बचने के तरीक़े तलाश रही सरकार सीधा सा सवाल है जब हम इमानदार है तो घबराना किस बात का जेपीसी कराओ या कुछ और कराओ जैसे भी विपक्ष या देश की जनता संतुष्ट होती हो हमें उस पर काम करना चाहिए लेकिन हम जो कह रहे है कि चौकीदार इमानदार है उसी को मानो यह कहाँ तक उचित है कि सामने वाले की सुनोगे नही अपनी-अपनी कहोगे उसी का परिणाम है राफ़ेल विवाद।सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को क्लीनचिट नही दी कोर्ट का कहना है कि हम 36 राफ़ेल विमान ख़रीद पर सवाल खड़े नही कर सकते यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है संविधान की अनुच्छेद 32 के सीमित दायरे है।रक्षा ख़रीदारी पर कोर्ट सवाल नही खड़े कर सकता देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला होने की वजह से अन्य जाँचो की तरह इसकी जाँच नही हो सकती है इस लिए सरकार ने जो दलीलें दी वही सन्तोषजनक मान ली लेकिन कोर्ट ने ये कही नही कहा कि इसकी जेपीसी नही होनी चाहिए।राफ़ेल पर कुछ ऐसे तथ्य है 13 मार्च 2015 को डसाल्ट और HAL (हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड) ने मिलकर विमान बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर किये 25 मार्च 2015 को बेंगलूरू में HAL के चेयरमैन भारतीय वायुसेना के प्रमुख और फ़्रांस के राजदूत की मौजूदगी में प्रेस कॉन्फ़्रेंस में डसाल्ट के सीईओ इरिक ट्रेपियर ने घोषणा की राफ़ेल पर हमारे बीच 95 फ़ीसदी सहमति बन गई है बाक़ी 5 % हो जाएगी जिसकी हम जल्द ही घोषणा करेगे।अगर मोदी सरकार की यह दलील मान ली जाए कि डसाल्ट और HAL के बीच कुछ समस्याएँ थी तो क्या डसाल्ट के सीईओ झूठी प्रेस कांन्फ्रेस की थी जिसमें उन्होंने 95% सहमति बन जाने की बात कही थी।इसके बाद HAL के चेयरमैन का बयान आया कि डसाल्ट और एचएएल के बीच कोई समस्या नही थी इस बात की पुष्टी फ़ाइल पर नोटिंग से हो सकती है बशर्ते वह जनता के सामने लाई जाए यह भी सच है कि पुराना समझौता डसाल्ट और एचएएल की बीच हुआ था और अब दो सरकारों के बीच हुआ है।यानी इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट आईजीए है।न कि दो कंपनियों के बीच हुआ हो।आईजीए में साफ लिखा है कि इसके माप दण्डों का निर्धारण उस समिति को करना चाहिए जिसे कॉन्ट्रैक्ट निगोशिएटिंग कमैटी और प्राइस निगोशिएटिंग कमैटी कहते है फिर इन समितियों की रिपोर्टस के लिए पहले रक्षा सलाहकार परिषद डिफ़ेंस एडवाइज़री काउन्सिल और फिर कैबिनेट की रक्षा समिति की सहमतियां हासिल करना ज़रूरी है।लेकिन इनमें से कोई भी प्रक्रिया पूरी नही होती है 10 अप्रैल 2015 को देश के चौकीदार ने 36 राफ़ेल विमानों के ख़रीदने का ऐलान कर दिया यही से शुरू होता है चौकीदार की चोरी का खेल या यू कहे कि चोरी करवाने का खेल ? सरकार का यह कहना है कि रिलायन्स डिफ़ेंस कंपनी से बातचीत का सिलसिला 2012 से चल रहा था जो किसी भी सूरत में सच नही है जिस अनिल अंबानी की कंपनी का उदय ही 24 अप्रैल 2015 में हुआ उससे 2012 में बात कैसे हो सकती है।आगे भी जारी रहेगा आज बस इतना ही।