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सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की कमी बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सबसे बड़ी बाधाः क्राई

सार्वजनिक शिक्षा देश के समग्र विकास के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, लेकिन फिर भी गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा की उपलब्धता आज भी देश में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सेंटर फाॅर बजट एण्ड गवर्नमेन्ट अकाउन्टेबिलिटी तथा क्राई-चाइल्ड राइट्स एण्ड यू द्वारा किए एक संयुक्त अध्ययन के तहत छह राज्यों में स्कूली शिक्षा के लिए आवंटित बजट का अध्ययन किया गया, अध्ययन में पता चला है कि हालांकि 14वें वित्तीय आयोग की अवधि में स्कूली शिक्षा पर बजट बढ़ाया गया है, किंतु स्कूलों ने इस बजट का इस्तेमाल पूरी तरह से स्कूली शिक्षा के स्तर में बदलाव लाने के लिए खर्च नहीं किया है। जिसके चलते उचित संसाधनों की कमी, पेशेवर शिक्षित अध्यापकों की कमी तथा बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बाधक बन रहे हैं। भारत में 60 फीसदी से अधिक छात्र अपनी प्राथमिक एवं सैकण्डरी शिक्षा के लिए सार्वजनिक स्कूलों पर ही निर्भर हैं, ऐसे में सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र राज्य एवं केन्द्र दोनों सरकारों के लिए महत्वपूर्ण है। ‘‘स्कूलों में बेहतर वातावरण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र पर व्यय करना ज़रूरी है। स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश अति अनिवार्य है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं और अध्यापकों की कमी को देखते हुए राज्य एवं केन्द्र सरकारों को एक साथ मिलकर प्रयास करने होंगे तथा मौजूदा सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए व्यय बढ़ाना होगा।’’ प्रीति महारा, डायरेक्टर, पाॅलिसी रीसर्च एण्ड एडवोकेसी, क्राई- चाइल्ड राइट्स एण्ड यू ने कहा।‘‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उपलब्धता कई कारकों पर निर्भर करती है। सिर्फशिक्षा पर व्यय बढ़ाकर ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं लाया जा सकता, शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कई और कारकों पर ध्यान देना ज़रूरी है।’’ उन्होंने कहा। अध्ययन में पाया गया है कि कुछ राज्यों ने 14वें वित्तीय आयोग की अवधि में बेहतर काम किया है, पिछले तीन सालों में स्कूली शिक्षा पर बजट काफी बढ़ा है। 2017-18 में तमिलनाडू ने रु 23464 खर्च किया, जबकि महाराष्ट्र ने रु 21000 खर्च किए, वहीं छत्तीसगढ़ ने रु 20,320 खर्च किए गए। इसी तरह बिहार और छत्तीसगढ़ में भी खासतौर पर सैकण्डरी स्तर पर हर बच्चे पर किया जाने वाला व्यय बढ़ाया गया है। अध्ययन में पाया गया कि स्कूली शिक्षा बजट में अध्यापकों के वेतन का मुख्य योगदान होता है, जो छत्तीसगढ़ में 60 फीसदी से लेकर महाराष्ट्र में 82 फीसदी तक पाया गया। ‘‘तमिलनाडू के अलावा 14वें वित्तीय आयोग की अवधि में शेष पांचों राज्यों में अध्यापकों के वेतन का योगदान बढ़ा है।’’ रिपोर्ट में पता चला। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि इस बढ़ोतरी के बावजूद अध्यापकों के वेतन का आवंटन उचित नहीं है। पेशेवर अध्यापकों की कमी को देखते हुए यह मौजूदा स्थिति से अधिक होना चाहिए।

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