लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।पाँच राज्यों में मोदी के झूट की नय्या डूब जाने के बाद गोदी मीडिया के सहारे राफ़ेल सौदे पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को इस तरह प्रस्तुतीकरण करा रही है जैसे कोर्ट ने नरेन्द्र मोदी सरकार के सभी ग़लत और सही कार्यों पर प्रमाण पत्र दे दिया है असल में लोकसभा संग्राम की बेला में जाने की वजह से यह सब हो रहा है ताकि जनता को एक बार फिर गुमराह किया जा सके। सवाल यह उठता है कि जब सरकार ने कुछ ग़लत नही किया है तो फिर मोदी जेपीसी की माँग से क्यों भाग रहे है ? फ़ैसले को पक्ष और विपक्ष अपनी मन मर्ज़ी से प्रस्तुत कर रहे है चाहे कांग्रेस हो या मोदी की भाजपा और गोदी मीडिया भी बड़ा उछल रहा है सभी सवालों के घेरे में है कांग्रेस का कहना है कि अफ़वाह फैलाने माहिर आरएसएस और उसके चिन्टू मिन्टू फ़ैसले को बिना पढ़े ही स्वयंभू मियां मिठ्ठू बनकर अपनी पीठ थपथपा रहे है अगर फ़ैसले को पढ़ा जाए तो सब समझ में आ जाएगा और तस्वीर साफ हो जाएगी।कोर्ट ने यह कहते हुए राफ़ेल सौदे के मामले में दाख़िल सभी याचिकाओं को यह कहते हुए ख़ारिज की है कि इस मामले में जाँच करना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है बस इतना सुनते ही सरकार और उसकी पिछलग्गू गोदी मीडिया तो लग गया राग अलापने व मोदी की भाजपा तो बल्लियों उछल रही है तो विपक्ष इसे सामान्य निर्णय बताकर राफ़ेल सौदे को पाक साफ मानने को तैयार नही है और इसकी जेपीसी से जाँच कराने पर अडिग दिख रहा है माना यह जा रहा था कि जिस तरह से मोदी की भाजपा ने और गोदी मीडिया ने इस फ़ैसले का प्रस्तुतीकरण किया उससे लगा कि कांग्रेस बैकफ़ुट पर आ जाएगी लेकिन राहुल गांधी ने जिस मज़बूती से प्रेस वार्ता कर अपनी बातें रखी तो लगा कि कांग्रेस राफ़ेल सौदे में हुई गड़बड़ी पर चुप नही होने वाली है और माँग और तेज़ कर दी कि इस मामले की जेपीसी होनी ही चाहिए इससे कम पर हम कोई समझौता नही करेंगे। मोदी के चरणों की धूल के पत्रकारों का हाल देखने लायक था जब वह इस ख़बर का झूट पर आधारित प्रस्तुतीकरण कर रहे थे तो लग रहा था कि यह अब टीवी स्क्रीन से बाहर ही निकलने वाले है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएँ ख़ारिज करते हुए कहा कि राफ़ेल विमान हासिल करने वाली प्रक्रिया से वह संतुष्ट है कि इसमें नियमों का पालन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया इस पीठ में जस्टिस संजय किशन क़ौल और जस्टिस के एम जोसेफ़ भी थे फ़ैसला देते वक़्त पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि सुप्रीम कोर्ट 126 की जगह मात्र 36 विमानों की ख़रीद के फ़ैसले को ज़्यादा दिनों तक लटका नही सकता यह सत्य है कि पहले 126 विमानों की ख़रीद का मामला था जिसे बदलकर मात्र 36 राफ़ेल विमानों का सौदा किया गया लेकिन इससे कोई फ़र्क़ नही पड़ता राफ़ेल विमानों की क़ीमत पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारा काम नही है कि वह किसी विमान की क़ीमत या वित्तीय मामलों की जाँच करे इस सौदे में अनिल अंबानी को अॉफसेट पार्टनर बनाना केन्द्र का या विमान बनाने वाली कंपनी का अधिकार है हम इसमें कुछ नही कर सकते अब सवाल उठता है कि क्या कोर्ट के इस फ़ैसले और मौखिक टिप्पणियों को मोदी सरकार के द्वारा की गई बंदर बाँट को कोर्ट का प्रमाण पत्र मान कर मांफ कर दिया जाए जो काम कोर्ट का है ही नही उस पर कोर्ट क्या कहेगा ? वरिष्ठ वक़ील प्रशांत भूषण ने इस फ़ैसले को ग़लत माना है उनका कहना है कि यह एक सीमित राहत कही जा सकती है लेकिन राफ़ेल पर सरकार पाक साफ हो गई यह बिलकुल ग़लत है इस मामले में पुनरीक्षण याचिका की ज़रूरत है या नही इस पर फ़ैसला बाद में लिया जाएगा। आश्चर्य की बात है कि मोदी की भाजपा मोदी सरकार के मंत्री सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर तालियाँ पीट रहे है जिसे वह सबरीमाला मंदिर मुद्दे पर पानी पी-पी कर गालियाँ दे रहे थे। गोदी मीडिया और मोदी की भाजपा व उनके मंत्री सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को अगर सही तरह से पढ़ ले तो समझ में आ जाएगा लेकिन नागपुरिया आईडियोलोजी गुमराह करने के अलावा कुछ जानती ही नही न वह जानने की कोशिश करती राफ़ेल घोटाले में विमान की क़ीमत , ख़रीद की प्रक्रिया में गड़बड़ी और मापदंडों से छेड़छाड़ की जाँच अदालत के दायरे में नही आती।इसी लिए कांग्रेस पहले दिन से ही इस मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से करने पर अड़ी है और सरकार व चौकीदार इसका सामना करने से भाग रही रहा है। राफ़ेल पर उठ रही उँगलियाँ सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद भी उठ ही रही है राहुल की आवाज़ में दम था जिस तरीक़े से उसने दोहराया कि चौकीदार ने अनिल अंबानी को चोरी करने का मौक़ा देकर उसकी जेब में देश की जनता की गाढ़ी कमाई के तीस हज़ार करोड़ डाले है। क्या राफ़ेल सौदे में किए गए कथित भ्रष्टाचार को सिर्फ़ इस लिए छोड दिया जाना चाहिए कि यह मामला नरेंद्र मोदी ने किया है क्योंकि वह हिन्दुत्व का चोला पहने है ? क्या इस सौदे में कुछ भी ग़लत नही हुआ है ? क्या 126 विमान की जगह मात्र 36 विमान ख़रीद को देशहित में मान लिया जाए ? क्या विमानों की क़ीमत को कई गुना बढ़ा कर लेने को देशहित में मान लेना चाहिए ? क्या हमारे देश की विमान बनाने वाली कंपनी एचएएल को न देकर मोदी के चाटुकार अनिल अंबानी को यह ठेका देना देशहित में मान लेना चाहिए ? यह वह सवाल है जो यह चीख़ चीख़ कर कह रहे है कि जो हमें पूछे ज़ोर सोर से मोदी सरकार से जिसने हमें पूछने के लिए मजबूर किया है अगर हम न होते तो मोदी की सरकार जेपीसी से भागती नही वह कहती आओ बैठे जाँच होगी अगर इन सवालों में दम नही होता तो ? पर गोदी मीडिया तो पूछेगी नही वह तो पिछले साढ़े चार साल से मोदी का राग अलाप रही है ग़लत हो या सही जो मोदी करे वही सही ऐसा तो नही होना चाहिए ग़लत को ग़लत ही कहना चाहिए।अब तक का सफ़र हिन्दु-मुसलमान कर काट लिया किया कुछ नही अगर किया होता तो पाँच राज्यों में हार न हुई होती अभी भी वक़्त है सँभलने का पर सँभलने की नही ऐसा ही लगता है।