तीन दिवसीय माइटोकॉन्फ़-2018 में साझा हुए माइटोकॉन्ड्रियल रोगों के संबंध में रिसर्च के लिए नये दृष्टिकोण एवं नये रास्ते

लखनऊ: सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई), लखनऊ द्वारा आयोजित किए रहे माइटोकॉन्ड्रियल रिसर्च एंड मेडिसिन (एसएमआरएम) सोसाइटी के तीन दिवसीय 7 वें वार्षिक सम्मेलन का समापन आज माइटोकॉन्ड्रियल रोगों के संबंध में रिसर्च के लिए नये दृष्टिकोण एवं नये रास्तों पर चर्चा के साथ हुआ। इस संगोष्ठी ने विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में माइटोकॉन्ड्रिया में विकार हो जाने से होने वाले दुष्परिणामों पर चर्चा करने के लिए चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को एक साझा मंच प्रदान किया।

अपने विचार और शोध को साझा करते हुए, टीआईएफआर मुंबई की डॉ संध्या पी कौशिक ने बताया कि कैसे उनकी टीम ने नियंत्रित माइटोकॉन्ड्रियल पोजीशनिंग जो माइटोकॉन्ड्रिया के विकास से संबंधित अध्ययन के लिए आवश्यक है, के लिए दीर्घकालिक इमेजिंग हेतु एक माइक्रोफ्लुइडिक डिवाइस विकसित किया है।

कोपेनहेगन विश्वविद्यालय, डेनमार्क के प्रोफेसर लेन रसमुसेन ने बताया कि माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन में विकार हो जाने के कारण उत्पन्न हुए मेटाबोलिक स्ट्रेस कि लिए रेव-1 किस प्रकार जिम्मेदार है।

ओस्लो विश्वविद्यालय, नॉर्वे की प्रोफेसर लिंडा एच बर्गर्सन ने के लैक्टेट रिसेप्टर (एचसीएआर 1) के बारे में चर्चा की, जो न्यूरॉन्स और मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालने के साथ साथ व्यायाम के कारण होने वाले रक्त वाहिकाओं के विकास में भी मध्यस्थता करता है।

निमहान्स बैंगलोर के डॉ पी गोविंदराज ने माइटोकॉन्ड्रियल ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन विकारों के बारे में बताया जो बच्चों और वयस्क दोनों को प्रभावित करते हैं एवं हर 5000 में से 1 व्यक्ति में इनके होने की संभावना होती है।

सीसीएमबी हैदराबाद के डॉ के थांगराज ने कहा कि 90% माइटोकॉन्ड्रियल विकार उन जींस में म्यूटेशन होने के कारण होते हैं जो माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन को नियंत्रित करते हैं। उन्होंने कुछ ऐसे जींस में म्यूटेशन की पहचान की है जो माइटोकॉन्ड्रियल डिसऑर्डर के विशिष्ट फेनोटाइप से जुड़े हुए हैं।
सम्मेलन पोस्टर सेशन के विजेताओं को सम्मानित करने के साथ सम्पन्न हुआ।