नई दिल्ली: साल 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है और इन दिनों केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा पिछले साढ़े चार सालों के दौरान किए गए कामकाज का विश्लेषण किया जा रहा है। विपक्षी पार्टियां केन्द्र सरकार को जिस मुद्दे पर घेरने की योजना बना रही हैं, उनमें बेरोजगारी का मुद्दे टॉप पर है। दरअसल मोदी सरकार पर आरोप है कि अपने कार्यकाल के दौरान सरकार उम्मीद के मुताबिक रोजगार पैदा करने में नाकामयाब रही है। अब लाइव मिंट की एक रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में पिछली यूपीए सरकार से पीछे है। मिंट ने सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के ProwessIQ डाटाबेस का अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस डाटाबेस में विभिन्न कंपनियों द्वारा दी गईं वार्षिक रिपोर्ट्स हैं, जिनके आधार पर यह पता चला है कि केन्द्र की मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में पहले की मनमोहन सिंह सरकार से काफी पीछे है।

साल 2015-16 में जहां मोदी सरकार के कार्यकाल में रोजगार की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई, वहीं साल 2017 में इसमें 4% का उछाल आया, हालांकि साल 2018 में यह घटकर 3% पर आ गया है। इस तरह भाजपा सरकार के कुल 4 सालों पर नजर दौड़ाई जाए तो यह औसत प्रगति सिर्फ 1.9% रह जाती है। वहीं दूसरी तरफ यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार में साल 2006 से 2009 तक औसत जॉब ग्रोथ 3.5% थी। साल 2010 से 2014 के यूपीए कार्यकाल में भी औसत जॉब ग्रोथ 2.6% रही, जो कि मौजूदा सरकार से बेहतर है।

रिपोर्ट के अनुसार, मध्यम वर्ग की कंपनियों में जॉब ग्रोथ में कमी देखी गई है। मोदी सरकार में मजदूरी वृद्धि काफी कम रही है। वित्तीय वर्ष 2006-2009 के बीच जहां देश में मजदूरी वृद्धि 21% रही, वहीं पिछले 4 सालों के दौरान यह घटकर 8% पर आ गई है। विभिन्न जॉब सेक्टर्स की बात करें तो मैन्यूफैक्चरिंग में पिछले एक दशक के दौरान उछाल आया है। वहीं माइनिंग के क्षेत्र में जबरदस्त गिरावट आयी है। इसी तरह विनिर्माण के फील्ड में ग्रोथ देखी गई है, तो सेवा क्षेत्र में खास ग्रोथ नहीं हुई है। इस तरह कह सकते हैं कि पिछले कुछ सालों में कॉरपोरेट सेक्टर में मिली-जुली ग्रोथ हुई है।