लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ।आगामी लोकसभा चुनावी संग्राम के चलते आजकल हमारे देश की सियासी फ़िज़ाओं में धर्म के नाम पर ज़हर बोने की खेती हो रही है और वह बहुत तेज़ी से फल-फूल रही है बढ़िया फ़सले भी उगाई जा रही है अब इसका दोषी कौन है क्या हम इस प्रकार की सियासत करने वालों को तर्जी नही दे रहे है ? क्या हम इसके लिए गुनाहगार नही है? ऐसे बहुत से सवाल है जो जनता की आईडियोलोजी पर प्रश्न चिन्ह लगाते है ? क्या हमें ऐसी सियासत करने वालों को नकारना नही चाहिए ? पर नही हम उनको सराह रहे है जो देश को धर्म के नाम पर जाति के नाम पर और क्या-क्या नहीं कर रहे और हम उनके पीछे क़दमताल मिलाकर चल रहे है माना हमारी आस्थाएँ हमारी सोच को कुंद कर लेती है लेकिन फिर भी हमें अपने मुल्क की एकता एवं अखण्डता के लिए भी सोचना होगा आस्था अपनी जगह है उसका भी ध्यान रखना ज़रूरी है पर ऐसा भी नही होना चाहिए कि हम यही भूल जाए कि हमारा देश किस रास्ते पर जा रहा है जहाँ तक सियासी लोगों का सवाल है वह तो किसी भी धर्म या जाति का हो उसकी पहली प्राथमिकता सियासी चक्रव्यूह को अपने पक्ष में करने का षड्यंत्र रचना होता है और वह रचते भी है उनका दोष कम हमारा ज़्यादा हम उनके इस चक्रव्यूह में फँसते क्यों है ? जबकि यह भी सच्चाई है कि हम उनकी मनसा को भलीभाँति जानते और समझते है कहते भी है पर फिर भी षड्यंत्र का शिकार हो जाते है।क्या हमारी कोई आईडियोलोजी नही है ? आगामी चार महीने बाद सियासी फ़िज़ाओं में चुनावी माहोल शुरू हो जाएगा।चुनावी माहौल पर नज़र रखने वालों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में महासंग्राम होने की तैयारी अभी से फ़िज़ाओं में गुंजने लगी है सियासत की फ़िज़ाओं में जयश्रीराम के नारे बुलंद होने शुरू हो गए है कही संतों का सम्मेलन हो रहे है तो कही संघ परिवार का मंथन तो कही विशाल काय राम की मूर्ति स्थापित करने की बातें हो रही है तो कही 1992 जैसा आन्दोलन करने की चेतावनी दी जा रही है इन सबके बीच मोदी सरकार पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि सरकार अध्यादेश लाकर राम मन्दिर निर्माण के अपने वायदे को पूरा करें मोदी सरकार के पास सिर्फ़ चार महीने बचे है जिसमें वह यह सबकुछ कर सकती है क्या मोदी सरकार राम मन्दिर पर अध्यादेश लाकर अपने चुनावी तरकश से यह आख़री तीर चला कर मिशन 2019 को जीतने का चाल चलेगी क्या संघ परिवार राम मन्दिर के हवाई सफ़र से एक बार फिर मोदी सरकार को दोबारा सत्ता में बैठा पाएगा? आगामी चार महीने इस दीपावली से 2019 की होली तक हमारे देश की सियासी फ़िज़ाओं में बहुत अहम रहने की उम्मीद की जा रही है राम मन्दिर को लेकर विवाद काफ़ी लम्बा है परन्तु पिछले ढाई दशक से यह मामला हमारी सियासी फ़िज़ाओं की सीडी बना हुआ है बहुत लोगों ने इसी के बलबूते पर अपनी सियासत को चमकाया और आगे बढ़े है।मोदी सरकार का हाल इस समय ऐसा हो गया है कि डूबते को तिनके का सहारा ही काफ़ी होता है पर लगता नही कि राम मन्दिर वाली काठ की हांडी दोबारा चुनावी फ़िज़ाओं के चूल्हे पर चढ़ेगी चुनाव से पूर्व ही राम क्यों याद आते है।मोदी की सरकार चारों और से घिर गई है संकटों के बादल हर रोज़ नई मुसीबत लेकर आ रहे है अब तो सिर्फ़ राम मन्दिर ही है जो मोदी सरकार के लिए सहारा बन सकता है जिसे लेकर एक बार फिर जनता को बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश हो सकती है अब यह बात देखने की है कि क्या जनता बेवक़ूफ़ बन पाएगी या नही ? जहाँ तक मोदी सरकार की साख की बात करे तो वह अप्रत्याशित रूप से गिरी है नही तो सरकार बनने के बाद मोदी को ग़लत नज़र से देखना भारी काम था लेकिन अब ये स्थिति नही है।सियासी जानकारों का मानना है कि सीबीआई रिज़र्व बैंक व सुप्रीम कोर्ट जैसी घटनाओं ने सरकार को परेशानी में डाला है अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर यह सरकार विफल रही डॉलर के मुक़ाबले रूपया कमज़ोर हो रहा है जिसकी मज़बूती के लिए सरकार के पास कोई ठोंस उपाय नही है पेट्रोल डीज़ल गैस के दामों में बढ़ोतरी , सेंसेक्स का लगातार गिरना , बेरोज़गारी का व महँगाई का बढ़ना सरकार के फ़ेल होने की दलील है। इन सभी हालातों का अगर कोई सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है तो वह नरेन्द्र मोदी खुद ही है और कोई इसके लिए दोषी नही है क्योंकि सरकार में किसी अन्य की कोई हैसियत नही है।अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत में आई कमी से सरकार ने भविष्य निधि को मज़बूत करने के बजाय घाटे को पूरा करने में लगाया अब जब पैसों की ज़रूरत है तो सरकार का ख़ज़ाना ख़ाली है।रात के अंधेरे में की गई नोटबंदी से बेरोज़गारी तो बढ़ी ही साथ ही पूरे देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी धक्का लगा उसके बाद जीएसटी को बिना सोचे समझे लागू कर देना भी बचे-खुचे काम धन्धे को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया।सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच हो रही तू-तू मैं-मैं भी इसी कड़ी का हिस्सा है सरकार के पास पैसा न होने की वजह से सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनाने की एवज़ में बैंक के मालखाने से एक मोटी रक़म सरकार के ख़ाली हुए ख़ज़ाने में डाल दे नियम-क़ानून को ताख पर रखकर यह उर्जित पटेल को मंज़ूर नही है सरकार इस पैसे को रिज़र्व बैंक से लेकर अपने पूँजीपति मित्रों को देना चाहती है लोन के तौर पर।गवर्नर उर्जित पटेल नोटबंदी के वक़्त सरकार का मोहरा बन अपनी साख पहले ही गँवा चुके है उसे और न गँवाए इसी लिए सरकार के सामने खड़े हो गए है सूत्रों का कहना है कि उर्जित पटेल 18 नवंबर तक इस्तीफ़ा दे सकते है?। सवाल उठता है कि सरकार के द्वारा नामित किए गए अफ़सर सरकार के ख़िलाफ़ क्यों खड़े हुए है जब ऐसे हालात बनने लगे तो समझ लेना चाहिए कि सब कुछ ठीक नही चल रहा है सरकार की नीतियाँ देश हित में नही है सीबीआई के निदेशक का मामला भी यही इसारा कर रहा है आलोक वर्मा व राकेश अस्थाना का विवाद तो एक बहाना है असलियत में पीएम हाउस व सीबीआई निदेशक के बीच मनमुटाव चल रहे थे बेहद गंभीर मुद्दे पर।मोदी सरकार की पसंद से नियुक्ति पाने में सफल रहे आलोक वर्मा से यह उम्मीद थी कि वह पालतू की तरह काम करेगे पर कुछ मामलों को छोड़ दे तो वह मोदी सरकार के इशारों पर काम करने को तैयार नही है इस लिए यह सब हुआ हद से पार हो जाने की वजह से आलोक वर्मा ने भी उर्जित पटेल की तरह हाथ खड़े कर दिए और उसके बाद जो हुआ वो सब हमारे आपके सामने है चुनाव से पूर्व सीबीआई का इस्तेमाल कर अपने विरोधियों को निशाने पर लेकर चुनावी गंणित अपने पक्ष में करने का मामला जो ठहरा जैसे बिहार में नीतीश कुमार को सृजन कांड के बेदाग़ कर अपने पाले में लिया उसके बाद मुलायम सिंह यादव , मायावती , जगन रेड्डी आदि नेताओं को अपनी जेब में रखने के लिए सीबीआई पर क़ब्ज़ा ज़रूरी था लेकिन अब मोदी सरकार का गंणित बिगड़ता जा रहा है मोदी सरकार का वह खेल भी खतम हो गया है जिसमें आलोक वर्मा पर कुछ भी आरोप लगा कर उनकी छुट्टी कर देगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने निदेशक आलोक वर्मा पर लगे आरोपी की जाँच की निगरानी निर्भीक इमानदार रहे जस्टिस पटनायक जज की देख रेख में करने का आदेश देकर सरकार को मजबूर कर दिया कि वह कोई उलटा सीधा फ़ैसला न थोप सकें।इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट आलोक वर्मा को निदेशक के पद पर बहाल कर दे तब उनके पास ऐसी फ़ाइलों पर फ़ैसला लेने का भरपूर मौक़ा होगा जिन मामलों में भ्रष्ट्राचार की शिकायतों की जाँच करनी है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की जाँच भी होनी है जिस लिए यह सब किया गया था अब सब कुछ बदल गया है इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के दिल की धड़कने बढ़ सकती है। राफ़ेल के जिन्न ने भी मोदी रातों की नींद हराम कर रक्खी है।बहुत बुलंद हवा में तेरी पतंग सही मगर ये सोच कभी डोर किसके हाथ में है।