नई दिल्ली: अपराध न्याय प्रणाली में सुधार करने के उद्देश्य से सरकार जांच औैर अभियोजन के विभागों को अलग अलग करने सहित कई प्रस्तावों पर विचार कर रही है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय ने इस संबंध में राज्य सरकारों से राय मश्विरा की प्रक्रिया आरंभ कर दिया है।
अगर राज्यों के साथ सहमति बन गई तो पुलिस का जांच करने का विभाग और अभियोजन का विभाग अलग-अलग हो जाएगा। विचार विमर्श में राज्यों में अभियोजन विभाग के मुखिया के रूप में महानिदेशक स्तर के अधिकारी की नियुक्ति की संभावना भी टटोली जा रही है। गवाहों को अदालत में तलब करने में एसएमएस और ई-सम्मन देने के बारे में भी विचार किया जा रहा है। अपराध में पीड़ित पक्ष को भी तहकीकात की प्रगति के बारे में भी एसएमएस से जानकारी दिए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन है।
गंभीर एवं घृणित अपराधों के मामले में त्वरित एवं प्राथमिकता से मुकदमा निपटाने की व्यवस्था कायम करके जनता में अपराध न्याय प्रणाली के प्रति विश्वसनीयता बढ़ाने के बारे में सोचा जा रहा है। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लाने के बारे में विचार किया जा रहा है।
केंद्र सरकार अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन करके इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को प्राथमिक साक्ष्य बनाने के विचार पर भी मंथन कर रही है। अभी तक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में देखा जाता है जिसे किसी प्राथमिक साक्ष्य के साथ जोड़ कर देखा जाता है। गृह मंत्रालय इस बारे में कानून मंत्रालय से मौजूदा कानून में संशोधन करने वाले विधेयक के मसौदे पर राय मशविरा कर रहा है।
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