नई दिल्ली: रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच मतभेद आ गया है। दोनों के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा है। टीओआई के मुताबिक अब ये तनाव चरम पर पहुंच गया है और सरकार और रिजर्व बैंक में संचार खत्म हो गया है। ये तनाव रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के एक बयान से एकदम स्पष्ट हो गया। विरल को न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से खुद उर्जित पटेल लाए थे।

विरल के बयान से रिजर्व बैंक के कामकाज में सरकार के दखल के संकेत मिले। इससे उर्जित पटेल के भविष्य पर भी सवाल उठे लगे हैं। अब ऐसा लग रहा है कि उनका कार्यकाल अगले साल सितंबर से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। पटेल का 3 साल का कार्यकाल सितंबर 2019 में खत्म हो रहा है। पटेल इन इस खबर पर टीओआई के संदेश का कोई जवाब नहीं दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक NDA सरकार के कुछ लोग कह रहे हैं कि 'इससे तो रघुराम राजन ही अच्छे थे।' पटेल को जानने वाले लोगों का मानना है कि ये रिजर्व बैंक गवर्नर को भी पता है कि उनका कार्यकाल अब नहीं बढ़ेगा इसलिए वो अब इसकी ज्यादा चिंता नहीं कर रहे हैं।

2018 में करीब 6 मुद्दों पर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की अलग-अलग राय रही है। दोनों के बीच ब्याज दर को घटाना और बढ़ाना प्रमुख मुद्दा है। सरकार ब्याज दरें बढ़ाने के कारण RBI से खुश नहीं है। इसके बाद रिजर्व बैंक का NPA को लेकर एक सर्कुलर भी तनाव का कारण बना। इस बीच नीरव मोदी घोटाला सामने आ गया। सरकार ने रिजर्व बैंक को देखरेख के लिए लताड़ा तो पटेल ने RBI के लिए और शक्तियों की मांग कर डाली। इसके बाद IL&FS मुद्दा और एनबीएफसी को राहत को लेकर भी दोनों के बीच तनाव बढ़ा।

इसके अलावा रिजर्व बैंक के बोर्ड ने नचिकेत मोर की छुट्टी से भी संकेत मिले। मोर ने रिजर्व बैंक की तरफ से सरकार को ज्यादा डिविडेंड दिए जाने का विरोध किया था। सरकार में मौजूद कुछ लोगों के मुताबिक इस तनाव को सरकार और रेगुलेटर के बीच लड़ाई के चश्मे से नहीं देखना चाहिए।