नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को भी केरल के बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति दे दी है. हालांकि सबरीमाला मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश को लेकर तनाव लगातार जारी है. तेलंगाना की एक ऑनलाइन पत्रकार और एक अन्य महिला श्रद्धालु ने सबरीमाला में प्रवेश की कोशिश की लेकिन भारी विरोध के कारण वे नाकाम रहीं. आईजी पुलिस श्रीजीत की अगुवाई में 150 पुलिसकर्मियों ने उन्हें सुरक्षा दी लेकिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने मंदिर के मुख्य कपाट पर उन्हें रोक लिया. यही नहीं, मुख्य पुजारी ने कहा कि अगर कोई भी महिला प्रवेश करती है तो वे मंदिर बंद कर देंगे.

लेकिन इससे दो दशक पहले ही एक महिला मंदिर में प्रवेश कर चुकी हैं. वो भी चोरी-छिपे नहीं बल्कि बाकायदा कोर्ट से आदेश लेकर. ये महिला हैं केबी वत्सला, जिन्होंने 1994-95 में सबरीमाला मंदिर में प्रवेश किया था. उस वक्त उनकी उम्र 41 साल थी. दरअसल केबी वत्सला उस वक्त पथानमथिट्टा की कलेक्टर हुआ करती थीं. और कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश को लेकर बहुत सी धमकियां मिली थीं.

पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर में दुर्गम सफर तय करके जाते हैं. इस मंदिर और उसके आस-पास होने वाले बहुत से कामों के लिए राज्य की संस्थाएं भी जिम्मेदार होती हैं. ऐसे में किसी सरकारी काम से केबी वत्सला का मंदिर के अंदर जाना आवश्यक था. लेकिन जब उनके जाने की बात सामने आई तो लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए केरल हाईकोर्ट से बाकायदा अनुमति लेनी पड़ी.

इस दौरान केरल में लोग अफवाह फैलाते थे कि एक दिन के लिए इस महिला को पुरूष माना जाएगा लेकिन कोर्ट ने मंदिर में जाने की अलग वजहें बताई थीं. हालांकि केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि केबी वत्सला का मंदिर में जाना बिल्कुल ऑफिशियल ड्यूटी की तरह होगा, जिसे एक डिस्ट्रिक कलेक्टर को निभाना है. साथ ही केबी वत्सला को मंदिर में स्थित 18वीं सोने की सीढ़ी (पथीनेट्टम पदी) चढ़ने को भी मना किया गया था. जिसके जरिए मंदिर के गर्भगृह में जाया जाता है.

हालांकि मंदिर से लौटकर आने के बाद उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, "कोर्ट के आदेश का शुक्रिया कि मैं उस उम्र में सबरीमाला जा सकी."

कुमारी जो अब रिटायर हो चुकी हैं, बताती हैं कि 50 साल की होने के बाद वे मंदिर की 18वीं सोने की सीढ़ी (पथीनेट्टम पदी) चढ़ चुकी हैं और भगवान अयप्पा की पूजा कर चुकी हैं.

वह अधिकारी भी केबी वत्सला ही हैं, जिन्हें सबरीमाला के कठिन रास्ते में प्रकृति के अनुकूल जल निकासी का सिस्टम बनाने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने पास की पंबा नदी को साफ कराने का भी काम किया था. साथ ही दुर्गम रास्ते और मंदिर के पास साफ पीने के पानी की व्यवस्था भी सुनिश्चित कराई थी.

तो यह नहीं है सबरीमाला मंदिर में महिलाओं पर रोक की वजह
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद बुधवार से केरल के बहुचर्चित सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी उम्र की महिलाओं के लिए खुल चुके हैं. इस फैसले को लेकर केरल में सियासी घमासान मचा हुआ है. कई संगठन और राजनीतिक दल मंदिर में महिलाओं की एंट्री के विरोध में हैं. बीजेपी ने मार्च निकालकर केरल सरकार का विरोध भी किया है. ऐसे में राज्य में तनाव का माहौल है. हालांकि, पुलिस-प्रशासन ने महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा दिया है.

दरअसल, बीते बुधवार को 5 दिन की मासिक पूजा के लिए सबरीमाला मंदिर के कपाट खोले गए. इसके लिए महिलाओं ने भी पूरी तैयारी शुरू कर दी है. खास बात यह है कि महिलाएं पहली बार इस मंदिर में प्रवेश करेंगी. विरोध को देखते हुए त्राणवकोर देवसोम बोर्ड ने तांत्री (प्रमुख पुरोहित) परिवार, पंडलाम राजपरिवार और अयप्पा सेवा संघम समेत अलग-अलग संगठनों के साथ मंगलवार को बैठक भी की, लेकिन फिलहाल इस बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला.

इस बीच भगवान अयप्पा की सैकड़ों महिला श्रद्धालुओं ने मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पर उन महिलाओं को मंदिर से करीब 20 किलोमीटर पहले रोकने की कोशिश की, जिनकी उम्र 10 से 50 साल के बीच है.

‘स्वामीया शरणम् अयप्पा’ के नारों के साथ भगवान अयप्पा भक्तों ने इस उम्र की लड़कियों और महिलाओं की बसें और निजी वाहन रोक दिए. उन्हें यात्रा नहीं करने के लिए मजबूर किया. पुलिस ने बाधा ड़ालने वालों पर कार्रवाई करते हुए अभी तक कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया है.

वैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले 10 से 50 साल तक की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक थी. परंपरा अनुसार लोग इसका कारण महिलाओं के पीरियड्स यानि मासिक धर्म को बताते हैं क्योंकि मंदिर में प्रवेश से 40 दिन पहले हर व्यक्ति को तमाम तरह से खुद को पवित्र रखना होता है और मंदिर बोर्ड के अनुसार पीरियड्स महिलाओं को अपवित्र कर देते हैं. ऐसे में लगातार 40 दिन खुद को पवित्र रखना संभव नहीं है. लेकिन महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर रोक की शुरुआत जब हुई तो उसका कारण यह नहीं था.

वेबसाइट 'फर्स्टपोस्ट' के लिए लिखे एक लेख में एमए देवैया इस आख्यान के बारे में बताते हैं. वे लिखते हैं कि मैं पिछले 25 सालों से सबरीमाला मंदिर जा रहा हूं. और लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध किसने लगाया है. मैं छोटा सा जवाब देता हूं, "खुद अयप्पा (मंदिर में स्थापित देवता) ने. आख्यानों (पुरानी कथाओं) के अनुसार, अयप्पा अविवाहित हैं. और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं. साथ ही उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते." और महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक की बात का पीरियड्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है.

देवैया लिखते हैं कि पुराणों के अनुसार अयप्पा विष्णु और शिव के पुत्र हैं. यह किस्सा उनके अंदर की शक्तियों के मिलन को दिखाता है न कि दोनों के शारीरिक मिलन को. इसके अनुसार देवता अयप्पा में दोनों ही देवताओं का अंश है. जिसकी वजह से भक्तों के बीच उनका महत्व और बढ़ जाता है.

परंपरावादी कहते हैं कि अगर इस पूर्व कहानी पर लोगों का विश्वास नहीं, तो फिर मंदिर में श्रृद्धा के साथ दर्शन कर क्या फायदा होगा? इसीलिए वे कह रहे हैं कि जज के फैसले से इसपर क्या फर्क पड़ेगा क्योंकि पूर्व कहानी में श्रृद्धा के बिना उन्हें दर्शन से पुण्य नहीं मिलेगा.