– डा0 जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) अंतरिक्ष तकनीक मानव जाति का मार्गदर्शक है :-

वर्ल्ड स्पेस वीक एसोसिऐशन द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से प्रतिवर्ष 4 से 10 अक्टूबर तक विश्व अन्तर्राष्ट्रीय सप्ताह सारे विश्व में आयोजित किया जाता है। विश्व अंतरिक्ष सप्ताह में उपग्रह नेविगेशन करने के लिए मानव जाति को होने वाले लाभों पर प्रकाश डाला जाता है। हम कई सुधार और ब्रांड के नए वैश्विक नेवीगेशन उपग्रह सिस्टम तीसरी पीढ़ी जीपीएस और गैलीलियो के अन्वेषण को साकार होते देख रहे हैं। प्रणालियों में वृद्धि के साथ हम उपग्रह नेविगेशन अनुप्रयोगों, सड़क नेविगेशन में बल्कि एविएशन, शिपिंग, कृषि, आपदा और कई अन्य क्षेत्रों में समाज में वृद्धि के रूप में देख रहे हैं। साथ ही अपने ही स्मार्टफोन में जीपीएस रिसीवर की मदद से आप अपना रास्ते तथा स्थानों को स्वयं खोज सकते हैं। इस विषय के साथ विश्व अंतरिक्ष सप्ताह में समाज के लिए उपग्रह नेविगेशन से मानव जाति को होने वाले पर प्रकाश डाला जाएगा।

(2) आईएसएस अब तक बनाया गया सबसे बड़ा मानव निर्मित उपग्रह है :-

अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन या केन्द्र (संक्षेप में आईएसएस) बाहरी अन्तरिक्ष में अनुसंधान सुविधा या शोध स्थल है जिसे पृथ्वी की निकटवर्ती कक्षा में स्थापित किया गया है। वर्तमान समय तक आईएसएस अब तक बनाया गया सबसे बड़ा मानव निर्मित उपग्रह है। आईएसएस कार्यक्रम विश्व की कई स्पेस एजेंसियों का संयुक्त उपक्रम है। इसे बनाने में संयुक्त राज्य की नासा के साथ रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (आरकेए), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए), कनाडा की कनेडियन स्पेस एजेंसी (सीएसए) और यूरोपीय देशों की संयुक्त यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ईएसए) काम कर रही हैं। इनके अतिरिक्त ब्राजीलियन स्पेस एजेंसी (एईबी) भी कुछ अनुबंधों के साथ नासा के साथ कार्यरत है। इसी तरह इटालियन स्पेस एजेंसी (एएसआई) भी कुछ अलग अनुबंधों के साथ कार्यरत है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में स्थित एक वेधशाला के तौर पर कार्य करता है। अन्य अंतरिक्ष यानों के मुकाबले इसके कई फायदे हैं जिसमें इसमें रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स को अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहकर काम करने का मौका मिलता है।

(3) अन्तरिक्ष विज्ञान क्षेत्र की उपलब्धियों से सारी मानव जाति अत्यधिक लाभान्वित हो रही हैं :-

विश्व में आज अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है, उसमें हमारा देश भारत भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं है। हमारे देश ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। अंतरिक्ष में विज्ञान के आविष्कार के लिए छोड़े गए उपग्रह विश्व को चकित करने वाले रहे हैं। विश्व में अंतरिक्ष यात्रा की शुरूआत रूस ने 4 अक्टूबर 1957 को ‘स्पुतनिक-1’ कृत्रिम उपग्रह छोड़कर की थी। यह अंतरिक्ष में तीन महीने तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा। इसके एक माह बाद रूस ने ‘स्पुतनिक-2’ छोड़ा। अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में पदार्पण किया और उसने 21 जनवरी 1958 को अपना पहला उपग्रह ‘एक्सप्लोरर-।’ छोड़ा। इसके करीब दो माह बाद रूस ने 17 मार्च 1958 को ‘बैनगार्ड-।’ उपग्रह छोड़ा, जो अंतरिक्ष में पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है। भारत ने सर्वप्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ ही वर्षा बाद थुम्बा से अपना प्रथम साउंडिंग राकेट छोड़कर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पदार्पण किया था। 1974 में भारत में अंतरिक्ष में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट स्थापित किया था।

(4) अन्तरिक्ष विज्ञान क्षेत्र की अमेरिका की नासा की उपलब्धियाँ :-

नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन राष्ट्रीय वैमानिकी और अन्तरिक्ष प्रशासन या जिसे संक्षेप में नासा कहते है। संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो देश के सार्वजनिक अंतरिक्ष कार्यक्रमों व एरोनॉटिक्स व एरोस्पेस संशोधन के लिए जिम्मेदार है। फरवरी २००६ से नासा का लक्ष्य वाक्य भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण, वैज्ञानिक खोज और एरोनॉटिक्स संशोधन को बढ़ाना है।, नासा ने १४ सितंबर २०११ में घोषणा की कि उन्होंने एक नए स्पेस लॉन्च सिस्टम के डिजाइन का चुनाव किया है जिसके चलते संस्था के अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में और दूर तक सफर करने में सक्षम होंगे और अमेरिका द्वारा मानव अंतरिक्ष अन्वेषण में एक नया कदम साबित होंगा।

(5) अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम :-

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। वे वैज्ञानिक कल्पना एवं राष्ट्र-नायक के रूप में जाने गए। १९५७ में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भापा। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास को अहम् भाग माना, १९६१ में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा। परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा, जो कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, १९६२ में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डॉ. साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया।
(6) अन्तरिक्ष क्षेत्र में रूचि रखने वाले छात्रों के लिए भारत सरकार की योजना :-

भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान भारत एवं एशिया का प्रथम अंतरिक्ष विश्वविद्यालय है। यह तिरुवनंतपुरम शहर के वलियमला क्षेत्र में स्थित है। इसकी स्थापना १४ सितम्बर २००७ को हुई थी यह संस्थान इसरो एवं भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग द्वारा प्रायोजित है। संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से समविश्वविद्यालय की मान्यता प्राप्त है। अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में कुशल लोगों की कमी को पूरा करने के लिए इस संस्थान की स्थापना की गई है। अधिक से अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए यहाँ छात्रों का समस्त शैक्षिक, आवास एवं भोजन शुल्क भारत सरकार वहन करती है। इसके साथ-साथ छात्रों को प्रति सेमेस्टर ३,०००/- रुपए पुस्तक अनुदान के रूप में मिलते हैं। यह भारत का एकमात्र संस्थान है जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बी. टेक. कोर्स उपलब्ध कराता है। हमारे विद्यालय के अनेक छात्र भारत सरकार की इस योजना का लाभ उठा रहे हैं।

(7) अन्तरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में भारत भी बड़ी सफलता के साथ लगा हैं :-

भारत का अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत सराहनीय प्रयास है। क्योंकि यह एक उपग्रह से संतुष्ट न होकर एक साथ या लगातार कई उपग्रहों के द्वारा अंतरिक्ष में गंभीर तथ्यों की खोज में आज और बड़ी जिज्ञासा और पक्की धुन के साथ लगा हुआ है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान की अनुसंधान प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इससे वायुमंडल संबंधी ऊर्जा प्रकाश आदि का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय होता जा रहा हैं। भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में प्रगति अब भी जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगी। जहाँ भारत को अब अपने दूर संवेदी उपग्रहों को छोड़ने के लिए विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। एक अतिविकसित संचार उपग्रह को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजकर भारत उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है जो उपग्रह प्रक्षेपण में विशेषज्ञ माने जाते हैं।

(7) यह युग संचार क्रान्ति का युग है :-

वर्तमान संचार युग में अन्तरिक्ष विज्ञान के योगदान को किसी भी तरह कम करके आँका नहीं जा सकता। अंतरिक्ष प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों और तकनीशियनों के अथक प्रयास ने भारत को यह महारत हासिल करवाई है। इसके लिए दूसरों और उसके सभी कार्यकर्ता साधुवाद के पात्र हैं। शुरू में विदेशी भूमि से और बाद में अपने यहां से सफल प्रक्षेपित उपग्रहों ने साबित कर दिया है कि भारतीय वैज्ञानिक और तकनीशियनों की प्रतिभा दुनिया में किसी से कम नहीं है। भारत ने २२ अक्तूबर २००८ को चन्द्रयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। भारत ने अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में 24 सितम्बर 2014 को स्थापित करके इतिहास रच दिया है। इस ऐतिहासिक सफलता के लिए हम सभी विश्ववासियों सहित भारतीय वैज्ञानिकां को हार्दिक बधाइयाँ देते हैंं। कुल 450 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना पर बीते 31 मार्च तक भारत 349 करोड़ रूपये खर्च कर चुका है। मंगलयान पांच नवंबर 2013 को छोड़ा गया था। भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बना। मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला विश्व का चौथा देश बना।

(8) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की अभूतपूर्व प्रगति :-

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान की उपलब्धियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत जल्द ही इस क्षेत्र के शीर्षस्थ देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि राजनैतिक नेतृत्व सहयोग का अपना यही रवैया भविष्य में भी बनाये रखे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान की प्रगति से भारतीय वैज्ञानिकों की अद्भुत प्रतिभा, साहस, धैर्य, क्षमता और जिज्ञासा की भावना प्रकट होती है। इसके साथ ही हमारे देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों का महत्व प्रकट होता है। इसके साथ ही साथ विश्व में भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी भूमिका भी प्रस्तुत होती है। हमें अपने देश के इस अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपूर्व योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को पाकर अत्यंत गर्व और स्वाभिमान होता है।

(9) रिमोट सेन्सिग तकनीक द्वारा उत्तर प्रदेश का चहुँमुखी विकास :-

भारतीय स्पेस प्रोग्राम एवं रिमोट सेन्सिंग तकनीकी के जनक डा0 विक्रम साराभाई के जन्म दिवस 12 अगस्त को पूरा देश नेशनल रिमोट सेन्सिग डे के रूप में मनाता है। विगत लगभग साढ़े तीन दशक पूर्व उपग्रहीय रिमोट सेन्सिग टेक्नोलॉजी के प्रादुर्भाव के पश्चात वर्ष 1981 में उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्पूर्ण देश में अग्रणी स्थान प्राप्त करते हुए प्रदेश स्तर का प्रथम रिमोट सेन्सिग एप्लीकेशन्स सेन्टर, लखनऊ में 14 मई 1982 को एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में स्थापित किया। प्रारम्भ से ही वायुवीय तथा उपग्रहीय रिमोट सेन्सिग तकनीक एवं पारम्परिक तकनीकों के समन्वय से इस केन्द्र प्रदेश के विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धी अध्ययन किये जाते रहे हैं। वर्तमान में उपरोक्त के साथ-साथ जी0आई0एस0, जी0पी0एस0 एवं लीडार तकनीकों के उपयोग द्वारा प्रदेश के चहुँमुखी विकास में योगदान देने हेतु इस केन्द्र द्वारा भू-सम्पदा, जल संसाधन, वन एवं कृषि सम्पदा, मृदा, भूमि उपयोगिता/भूमि अच्छादन तथा नगरीय संरचना सम्बन्धी कोष्ठों में अनेक बहुमूल्य आंकड़े सृजित किये गये हैं। प्रदेश सरकार के उपयोगकर्ता विभागों में शनैः-शनैः रिमोट सेन्सिग की क्षमता एवं उपयोगिता के प्रति जागरूकता बढ़ी है तथा उनके द्वारा पोषित परियोजना कार्यो में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है।

(10) भारतीय मूल की कल्पना चावला तथा सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष विज्ञानी के रूप में यात्रा की :-

लोगों को अंतरिक्ष में भेजने की उपलब्धि अब तक अमेरिका और रूस के नाम ही रही है, लेकिन इन दोनों ही देशों के साथ इस उपलब्धि में कहीं न कहीं भारत का नाम भी जुड़ा है। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में दोबारा जाने वाली पहली महिला बन गई हैं। गुजरात से ताल्लुक रखने वाली सुनीता विलियम्स दूसरी भारतीय महिला हैं जिन्होंने बतौर अंतरिक्ष विज्ञानी अंतरिक्ष की यात्रा की। सुनीता विलियम्स से पहले नासा की ओर से भारतीय मूल की कल्पना चावला ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी, लेकिन वापसी में एक दुखद दुर्घटना में उनकी और उनके दल के सभी सदस्यों की मौत ने दुनिया को झकझोर डाला था। सुनीता विलियम्स ने 1987 में अमेरिकी नेवल अकादमी से शिक्षा ग्रहण करने के बाद नेवी में विभिन्न पदों पर काम किया। 1998 में वह नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरिका) द्वारा चुनी गईं और अंतरिक्ष विज्ञानी बन गई। सुनीता विलियम्स डिस्कवरी में सवार होकर नौ दिसंबर, 2006 को आईएसएस गईं और 22 जून 2007 को धरती पर लौटी। रूस ने अपने अंतरिक्ष मिशन में वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को शामिल किया तो अमेरिका ने भारत में जन्मी कल्पना चावला और भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स को लेकर भारतीयों की प्रतिभा का लोहा माना। सुनीता के नाम बतौर महिला अंतरिक्ष यात्री कुछ रिकार्डस दर्ज हो चुके हैं, जैसे – सर्वाधिक समय अंतरिक्ष में बिताने का रिकॉर्ड, सर्वाधिक स्पेस वॉक तथा स्पेस वॉक का सबसे ज्यादा समय।

(11) अन्तरिक्ष तकनीक का दुरूपयोग मानव जाति के विनाश के लिए खतरा :-

अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग एक ओर मानव जाति के हित में हो रहा है उसी के विपरीत इस तकनीक का दुरूपयोग मानव जाति के समूल विनाश के लिए हो रहा है। युद्धोन्माद में शक्तिशाली देशों ने अंतरिक्ष को मिसाइलों से भर दिया है। स्टार वार की योजना, जो अंतरिक्ष में तीसरी पीढ़ी के परमाणु हथियारों के प्रयोग की योजना है। इस योजना को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रीगन ने 23 मार्च 1983 को सामने रखी थी, जिसके निर्माता हाइड्रोजन बम के जनक अमेरिका के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. एडवर्ड टेलर हैं। आरंभ में टेलर ने कहा था कि यदि अंतरिक्ष में पृथ्वी की कुछ कक्षाओं में लेजर उपकरणों के अनेक प्लेटफॉर्म स्थापित किए जाए, तो वहाँ दर्पण स्थापित करके रूस के सभी परमाणु जखीरों को पलक झपकते ही नष्ट किया जा सकता है। इस तरह स्पष्ट है कि अमेरिका अपने देशवासियों को विश्वास दिला रहा है कि इन परमाणु प्रक्षेपास्त्रों का एकमात्र सफल बचाव अंतरिक्ष युद्ध की उनकी योजना है। ज्ञात हुआ है कि रूस प्रत्युत्तर में अंतरिक्ष में एक ऐसे भू-उपग्रह को स्थापित करने में लगा है, जहाँ लेजर किरण से जल, थल और नभ पर सुगमतापूर्वक आक्रमण किया जा सकता है। अमेरिका की स्टार वार की योजना से हिन्द महासागर, दक्षिण एशिया के देशों तथा भारत के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। इस योजना के दो उद्देश्य हैं -रूसी उपग्रहों को नष्ट करना तथा रूसी परमाणु प्रक्षेपास्त्रों का नष्ट करना। युद्धों पर तथा सुरक्षा के नाम पर युद्धों की तैयारी पर होने वाले व्यय को बचाकर उस धनराशि, नवीनतम वैज्ञानिक ज्ञान, तकनीकी तथा मानव संसाधन से विश्व के प्रत्येक नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वस्थ तथा सुरक्षा से परिपूर्ण जीवन प्रदान किया जा सकता है। आहत विश्व की वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ही एकमात्र ‘दवा’ है।