नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, हालांकि आधार पर आए ज्यादातर फैसले में कहा गया है कि मेटाडेटा को छह महीने से ज्यादा स्टोर नहीं रखा जा सकता. आधार एक्ट में इस डेटा को 5 साल के लिए सुरक्षित रखने का प्रावधान था.

सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट के सेक्शन 2(डी) को खारिज कर दिया है. इस तरह सरकारी अथॉरिटीज़ को ट्रांज़ैक्शन्स के मेटामेडा को स्टोर करने से दूर रखा गया है. कोर्ट ने सरकार से तुरंत ही मजबूत डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाने के लिए कहा है.

सुप्रीम कोर्ट 5 जजों की संवैधानिक बेंच में से 4 जजों ने व्यवस्था दी कि बैंक अकाउंट्स और मोबाइल फोन्स को आधार कार्ड से लिंक कराने की कोई जरूरत नहीं है. हालांकि, उन्होंने कहा कि आधार को मनी बिल के तौर पर पास किया जा सकता है.

कोर्ट ने आगे कहा कि स्कूल्स आधार के लिए जोर नहीं दे सकते. आधार एक्ट के सेक्शन 57 को खारिज करते हुए इन्फॉर्मेशन को कॉरपोरेट बॉडीज़ के साथ साझा किए जाने पर रोक लगा दी है. हालांकि, सरकार से अलग राय रखते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार पूरी तरह से 'असंवैधानिक' है और इसे मनी बिल के तौर पर पास नहीं किया जा सकता.

आधार एक्ट की वैधता पर सुनवाई के वक्त कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आधार को अब आईआरसीटीसी के हर ट्रेन टिकट के अलावा हर एयर ट्रैवल के साथ भी अनिवार्य रूप से लिंक कराया जा रहा है. इस लिंक के चलते एक व्यक्ति के पूरे जीवन को ट्रैक किया जा सकता है.

एक अन्य दलील में सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने यूआईडीएआई की तरफ से कहा, याचिकाकर्ता मेटाडेटा की अवधारणा को गलत समझ रहे हैं. यूआईडीएआई सीमित टेक्निकल मेटाडेटा कलेक्ट कर रहा है, जिससे इसकी मांग करने वाली उन संस्थाओं को नियंत्रित किया जा सके, जो अपनी सर्विसेज़ और सुविधाओं के लिए आधार वेरिफिकेशन मांगती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार समाज के हाशिये पर जी रहे लोगों तक सुविधाओं को पहुंचाने के लिए है. यह निजी और सामुदायिक नज़रिए से लोगों की प्रतिष्ठा का ध्यान रखता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार बड़े पैमाने पर सार्वजनिक हितों को पूरा कर रहा है. आधार का मतलब यूनीक है, यूनीक होना बेस्ट होने से बेहतर है.