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धार्मिक धूर्तता और पाखण्ड

‘‘भय, दहशत, हिंसा,पाखंड एवं धूर्तता का त्याग तथा परसेवा व परोपकार धर्म है।’

हमारा भारतीय समाज धार्मिक पाखण्डों के मकड़जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है। देव-स्थलों पर रखे पत्थर (प्रतिमाएं) मानव के लिए अति पूज्यनीय हैं। धार्मिक प्रवचन से वशीभूत मानव कुर्बान होते हैं। जेहाद के नाम पर नरसंहार होता है। कर्मकाण्डों में जीव बलि दी जाती है। पाखण्डी स्वयंभू ईश्वर के रूप में प्रतिष्ठित होकर भोग विलास में लिप्त हो रहे हैं। तांडव नृत्य से साम्प्रदायिक स्वरूप देकर देश, समाज, व्यक्ति एवं व्यवस्थाओं को हिंसात्मक चिता में झोंका जाता है।

मानव और ईश्वर के स्वरूपों पर विचारोपरान्त यह सिद्ध होता है कि मानव पत्थर को ईश्वर मानकर पूजता है परन्तु मानव मानव की पहचान नहीं कर पा रहा है। यद्यपि इसकी छाया से भगवान रूप और रंग पा सका है। देव-स्थलों पर स्थापित पत्थर और उनसे बनीं प्रतिमाओं को घी, दूध और गंगाजल से नहलाया जाता है जबकि भूखी-भिखमांगिन का बेटा बूँद-बूँद दूध के लिए तरसता रहता है। प्रतिदिन हजारों शव बिना कफन मुर्दाखानों में जा रहे हैं परन्तु देवालयों की प्रतिमाओं के श्रंृगार कीमती परिधानों एवं आभूषणों से भी पूरे नहीं होे पा रहे हैं। पुजारियों के ठाठ-बाट एवं घन-वैभव देखते बनते हैं। ढ़ोंगी मंदिर क्षेत्र में सोने की खदान के सपने बयान कर जनता एवं सरकार पर जबरदस्त दबाव बना विज्ञान एवं समाज व्यवस्था को पंगु बना रहे है। देवस्थल तस्करी व आतंकवादियों के अड्डे बन गए है। यहाँ से अफवाहें फैला कर व्यक्ति-समाज को भय, दहशत, अराजकता एवं अन्धानुकृत वातावरण में रहने को मजबूर किया जाता है।

यदि हम अपने समाज सेवियों, संत-महात्माओं एवं धार्मिक नेताओं की गतिविधियों पर गहनता से विचार करें तो ज्ञात होता है कि इन लोगों का उद्देश्य ‘ऐन केन प्रकारेण’ जन समाज को भ्रमित कर उनकी स्वतंत्रता एवं अधिकारों पर बलात् हरण कर अपनी प्रतिष्ठा एवं सत्ता स्थापित करना रहता है। यह लोग अनेक प्रकार के प्रपंच कर अफवाहें फैलाते रहते हैं। इनके गुर्गे बस्तियों में घूम-घूम कर भ्रामक प्रचार प्रसार करके व्यक्तियों की कमजोरियां संग्रहित कर संगीन घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। घटनाओं के विरूद्ध पुलिस कार्यवाही में निर्दोषों को फंसाते हैं और उनके विरूद्ध झूठी गवाही देकर समाज की क्राँतिकारी प्रतिभावओं को नष्ट कर देते हैं। यह लोग सार्वजनिक विकास योजनाओं पर जबरदस्त कब्जा कर सरकारी धन-सम्पत्ति हड़प लेते हैं। राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यक्तियों को आमंत्रित कर मनमानी रिपोर्ट प्रकाशित कराकर जनता पर जबरदस्त दबाव बनाते हैं। विवाह-संस्कारों के अवसर पर धन-व्यवहार का दिखावा कर परोपकारी बनने का ढ़ोंग रचते हैं। देव-स्थलों पर मेले, कीर्तन, उर्स रास एवं नौटंकी मंचों पर भाषणबाजी करते हैं। श्रद्धालु-तीर्थयात्रियों से जबरदस्त धन उगाही कर उनके सामान को हड़प लेते हैं। देव-स्थलों पर चढ़ावा एवं चन्दें मे मिली रकम अपने निजी कार्यों में व्यय करते हैं। सरकारी टैक्स से बचने एवं सार्वजनिक धन-सम्पत्ति को हड़पने के उद्देश्य से देव-स्थलों की प्रतिमाओं के वस्त्र तथा आभूषण चोरी कराते हैं।

हमारे व्यक्ति-समाज की धार्मिक आस्थाओं, अन्धविश्वासों एवं अन्धानुकरण का दुरूपयोग करने में पंडे, पाखंडी, राजनीतिज्ञ, व्यापारी ठग नेता सबसे आगे रहते है। यह लोग अनेक तरह के स्वांग रचते हैं। अफवाहंे फैलाकर धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाकर समर्थन माँगते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघरों पर राजनीति कर बलात् कब्जा करते हैं। मठाधीश बनते हैं। सार्वजनिक भूमि, चारागाहों, मकानों, शिक्षालयों, मार्गों में ईंट-पत्थर रखकर और उनमें कंठीमाला, चन्दन, सिंदूर, भभूत, कर्मकांड तथा रंगीन झंडे लगाकर कब्जा कर लेते हैं। विरोधी एवं प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए अफवाहें फैलाकर हिंसा कराते हैं। मोक्ष के लिए दान का ढोंगी संकल्प से धन, सम्पत्ति, कन्या एवं गौ हरण करते हैं, वेश्यागृह एवं बूचरखानें चलवाते हैं।

उक्त परिस्थितियाँ हमारे देश, समाज एवं व्यक्ति के लिए अत्यन्त दुुःखद एवं घातक है। यदि पंडा और पाखंडियों को ईश्वर की ठेकेदारी है तो समझ लीजिए कि सारी दुनियाँ हत्यारी है। इसलिए इन्सान उठो! घातक परम्परा का त्याग करो। मानव को पहचानों और उसका पूजन करो। स्वर्ग और नरक का ठेका नीलाम मत होने दो। जीवन के लिए अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन सोच-समझकर करो। धार्मिक और राजनीतिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ दो। पाखंडियों की व्यवस्था ध्वस्त करो। मानकीय शिक्षा एवं मानवीय व्यवस्था को स्वीकार करो। अफवाहों को समूल नष्ट कर दो। जिस तरह बीमारी की जड खांसी है उसी तरह झगडों की मूल जड़ उपहास है। अतः संयम, विवेक और आपसी भाईचारा की भावनाएं विकसित करो। इस प्रकार वैज्ञानिक-आघ्यात्मिक पद्धति से हम भू पर स्वर्ग उतार सकेंगे और पाखण्डियों की चुनौती का सामना करके अपने देश-समाज की सुख, समृद्धि, शाँति और विश्वास को स्थायित्व प्रदान कर सकेंगे।

(डाॅ.नीतू सिंह सेंगर)

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