नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट वरिष्ठ न्यायधीशों में शामिल जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि जब न्यायपालिका में न्यायाधीशों की पद्दोन्नती की बात आती है तो हमारे पास कुछ मानदंड होते हैं। कुछ नियम होते हैं। दिक्कत सिर्फ भारत के मुख्य न्यायाधीश को बदलने में है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि भारतीय न्यायपालिका के पास एक सतत नीति होनी चाहिए। दरअसल, इस साल अक्टूबर महीने में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में यह जस्टिस रंजन गोगोई को सीजेआई बनाए जाने की संभावना है। हालांकि, उन्होंने जनवरी माह में जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ मिलकर प्रेस कांफ्रेंस की थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के चार निवर्तमान जजों ने इस तरह से मीडिया के सामने अपनी बात रखी थी। इन लोगों का कहना था कि सीजेआई हमारी बात भी नहीं सुनते। शीर्ष अदालत में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। हम उन्हें समझाने में असफल रहें इसलिए देश के समक्ष पूरी बात रख रहे हैं। इनका आरोप था कि संवेदनशील मामलों को चुनिंदा जजों के पास भेजा जा रहा है। यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। जजाें के इस बयान से उस समय बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। अब ऐसे में रंजन गोगोई का यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण है।

गौर हो कि इससे पहले रंजन गोगोई ने कहा था कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए सुधार नहीं, बल्कि एक क्रांति की जरूरत है। न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय रहना होगा। न्यायपालिका उम्मीद की आखिरी किरण है। उन्होंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में ‘हाउ डेमोक्रेसी डाइज’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख का उल्लेख करते हुए कहा था कि, “स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा करने वाली अग्रिम पंक्ति हैं।”

बता दें कि 18 नवंबर 1954 को असम में पैदा हुए रंजन गोगोई ने 1978 में अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर वकील बने थे। वर्ष 2001 के फरवरी माह में उनका चयन गुवाहाटी हाईकोर्ट में स्थायी जज के तौर हुआ था। इसके बाद 9 सितंबर 2010 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में उनका ट्रांसफर हो गया। वर्ष 2012 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने।