-रविश अहमद

जनपद सहारनपुर जहां साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में बाबा लाल दास और हाजी शाह कमाल की दोस्ती की परम्परा को दिल से निभाता है वहीं इस शहर को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई है यहां की विशेष फलपट्टी क्षेत्र के आम और लकड़ी की कारीगरी ने। यह दोनो ही जनपद सहारनपुर के विश्वस्तरीय व्यापार रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से जनपद सहारनपुर के तीनों प्रतीकों को नज़र सी लगी महसूस होती है। जहां एक ओर असामाजिक तत्वों और गन्दी राजनीति ने बार बार यहां का अमन खराब करने की कोशिशें की हैं वहीं बड़ी संख्या में सरकारी उपेक्षा के चलते फलपट्टी क्षेत्र से बाग़ों के कटान ने आम के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। लकड़ी की कारीगरी भी अब चाईना बाज़ार के आने के चलते बुरे दौर का पूर्वाभास करा रही है।

हालांकि लकड़ी के मज़बूत कारोबार को पहला झटका गत वर्ष तब लगा था जब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यहां स्थापित सीज़निंग प्लान्ट को निजी सैक्टर के हाथों ठेके पर दे दिया था उसमें भी बड़ी परेशानी स्थानीय कारोबारियों को इस बात से हुई थी कि यह प्लान्ट ठेके पर नही दिया जाना चाहिये था फिर उसपर भी यह प्रदेश से बाहर की कम्पनी को दिया गया। इससे जहां एक ओर कारोबारियों को सब्सीडी और सरकारी सुविधाएं मिलने में अवरोध उत्पन्न हुआ वहीं निजीकरण के तमाम दुष्प्रभाव इस उद्योग पर पड़े।

चाईना का माल बाज़ार में आ जाने से स्थानीय कारोबारियों की कमर तो टूटी ही, सबसे बड़ी सीधी चोट ग़रीब कारीगर के पेट पर पड़ी। सहारनपुर के हस्तशिल्पियों की बड़ी तादाद इस कार्य से दशकों से जुड़ी है। एक आंकलन के अनुसार करीब 36 लाख की आबादी वाले इस जनपद सहारनपुर के लगभग 5 लाख लोग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में लकड़ी उद्योग से जुड़े हैं जिनमें खासी तादाद लकड़ी की नक्काशी करने वाले कारीगरों और व्यवसाईयों की है। देशभर में लकड़ी की नक्काशी के लिये सहारनपुर की कारीगरी सर्वाधिक लोकप्रिय रही है वहीं विदेशों में भी काफी निर्यात होता रहा है किन्तु चीन के बाज़ार की आमद ने अब इनकी राह मुश्किल कर दी है।

चीन से आया लकड़ी का नक्काशी वाला सामान मशीनों से होता है जिसके कारण अधिक आकर्षक दिखाई पड़ता है साथ ही साथ औसतन यहां के सामान से सस्ता भी है लिहाज़ा ऐसे में ग्राहकों का चाईना के आईटम की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है।

सरकार के लचीले रवैये के चलते सहारनपुर में खनन उद्योग से जुड़े लाखों मज़दूरों को भुखमरी की कगार तक पंहुचना पड़ा था तो अब विश्व में सहारनपुर का नाम चमकाने वाले लकड़ी उद्योग से जुड़े शिल्पकारों के समक्ष समस्या खड़ी होने के आसार नज़र आ रहे हैं।