सुलतानपुर। मुसाफिरखाना पुलिस की झूठी कहानी की पोल खुल गई और
मुसाफिरखाना पुलिस अपने ही बने जाल में उलझकर रह गई । मसलन मुसाफिरखाना
पुलिस ने तो अधिवक्ता को जेल भेजने के लिए जाल बिछाया था लेकिन हाई
कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में मुसाफिरखाना पुलिस खुद उसी जाल में फंस
गई। अब मुसाफिरखाना इंस्पेक्टर सहित 8 पुलिस कर्मियों को जेल जाना पड़
सकता है ।

पुलिस अभिरक्षा में हुई अधिवक्ता की पिटाई मामले में हाईकोर्ट के निर्देश
पर प्रकरण की जांच करने वाले मानवाधिकार आयोग ने मुसाफिरखाना कोतवाल समेत
आठ पुलिसकर्मियों को प्रथम दृष्टया दोषी बताया है। यह रिपोर्ट आयोग ने
हाईकोर्ट को सौंप भी दी है। जिस पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने दोषी
पुलिस कर्मियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले में सुनवाई के
लिए आगामी 28 मई की तिथि तय की गयी है। मानवाधिकार आयोग की जांच में
पुलिस की सारी करतूत सामने आ गयी है। जिससे पुलिस की कार्यशैली पर उठा
संदेह अब लगभग यकीन में बदल गया है। यूपी पुलिस अपने मतलब व अपनी मनमानी
करने के लिए किसी भी स्तर पर उतारू हो जाती है। जिसके लिए कई बार खाकी पर
सवाल भी उठा और उच्चाधिकारियों ने सुधार के लिए ऐसे अधिकारियों को नसीहत
भी दी। लेकिन पुलिस है कि मानती ही नहीं। ऐसा ही एक मामला मुसाफिरखाना
पुलिस से जुड़ा हुआ सामने आया है। जिससे वहां के कोतवाल व उनके सहयोगी
पुलिस कर्मी हाईकोर्ट के निर्देश पर मानवाधिकार आयोग के जरिए की गयी जांच
में प्रथमदृष्टया दोषी पाये जाने के बाद खुद ही अपने जाल में फंस गये
हैं। बताते चलें कि स्थानीय कोतवाली के ऊंच गांव में बीते 24 फरवरी को
पुलिस के जरिए खनन को लेकर अवैध वसूली का मामला सामने आया था। जिसमें
ग्रामीणों व पुलिस के बीच विवाद भी हुआ। इस मामले में पुलिस ने अधिवक्ता
राघवेन्द्र द्विवेदी सहित अन्य के खिलाफ पुलिस पर हमला समेत अन्य आरोपों
में मुकदमा दर्ज किया। जिसके बाद नाटकीय ढंग से अधिवक्ता राघवेन्द्र की
कुड़वार नाका के पास से गिरफ्तारी की गयी। इस दौरान अधिवक्ता को बाजार
शुकुल व मुसाफिरखाना थाने ले जाकर मारने-पीटने व उनके कीमती सामान भी ले
लेने का आरोप पुलिस पर लगा। गम्भीर हालत में पुलिस उन्हें रिमांड के लिए
बीते 27 फरवरी को कोर्ट लेकर आयी, लेकिन कोर्ट में पेश किया गया अधिवक्ता
का मेडिकल पुलिस ने सामान्य दर्शाते हुए पेश किया। जिस पर वकीलों ने
विरोध जताते हुए कोर्ट से पुनः मेडिकल कराने की मांग की। इस बात पर
संज्ञान लेते हुए तत्कालीन सीजेएम सपना शुक्ला ने घायल अधिवक्ता का पुनः
मेडिकल कराने का आदेश दिया। जिसके क्रम में अधिवक्ता का पुनः मेडिकल हुआ
और मेकिडल परीक्षण में उन्हें कई चोटें भी पायी गयी एवं स्थिति भी
सामान्य नहीं मिली। नतीजतन उन्हें इलाज के लिए लखनऊ ट्रामा सेंटर रेफर कर
दिया गया। जहां पर उनका इलाज कई दिनों तक चला। पुलिस की झूठी कहानी का
नतीजा भी यह रहा कि इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने के दौरान ही
अधिवक्ता को बगैर जेल गये ही कोर्ट से जमानत भी मिल गयी थी। इसी बीच
मुसाफिरखाना पुलिस की नई कहानी भी सामने आयी। जिसमें मुसाफिरखाना कोतवाल
पारसनाथ सिंह के जरिए बीते 27 फरवरी को रिमांड के दौरान हुई घटना की बात
कहते हुए अपनी ही कोतवाली में अधिवक्ता राघवेन्द्र द्विवेदी व उनके
सैकड़ों समर्थकों एवं अज्ञात अधिवक्ताओं के खिलाफ बल्बा व मुल्जिम को
पुलिस अभिरक्षा से भगाने के प्रयास समेत अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज
करायी गयी। पुलिस की इसी मनमानी को लेकर अधिवक्ता राघवेंद्र द्विवेदी की
पत्नी ने हाईकोर्ट की शरण ली। जिस पर सुनवाई के पश्चात हाईकोर्ट ने
प्रकरण की जांच मानवाधिकार आयोग को सौंपते हुए 28 अप्रैल के लिए रिपोर्ट
तलब की थी। जिसके क्रम में आयोग ने क्रमवार पूरे घटना की जांच की तो
पुलिस की काली करतूत परत दर परत खुलती चली गयी। आयोग की जांच में
मुसाफिरखाना कोतवाल पारसनाथ सिंह, उप निरीक्षक दिनेश कुमार सिंह, आरक्षी
सूर्य प्रकाश, देवेश कुमार, पुष्पराज, ऋषिराज, बाजार शुकुल थानाध्यक्ष
अरविंद तिवारी, उप निरीक्षक क्राइम ब्रांच शिवाकांत प्रथम दृष्टया
अधिवक्ता राघवेंद्र द्विवेदी को पुलिस अभिरक्षा में चोट पहुंचाने के दोषी
पाये गये हैं। तत्कालीन नगर कोतवाल अजय कुमार सिंह ने भी आयोग की जांच
में मुसाफिरखाना कोतवाल के आरोपों को गलत ठहराया है। वहीं बगैर कोई लिखा
पढ़ी किये ही मुसाफिरखाना पुलिस की मिलीभगत से अधिवक्ता को बाजार शुकुल
थाने में लाये जाने व रात्रि में रोके जाने को लेकर भी पुलिस के खिलाफ
अहम सबूत मिले हैं। जबकि थानाध्यक्ष अरविंद तिवारी ने अपने बयान में
अधिवक्ता को अपने थाने में आने की बात से ही साफ इंकार कर दिया था। ऐसे
में मुसाफिरखाना व बाजार शुकुल थानाध्यक्ष की कार्यशैली पूर्णरूप से
संदेहो से घिरी हुई है। वहीं आयोग ने सैकड़ो पन्नो में तैयार की गयी अपनी
जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंप दिया है। जिस पर संज्ञान लेते हुए
प्रथमदृष्टया आयोग की जांच में दोषी पाये गये आठो पुलिसकर्मियों को नोटिस
जारी कर जवाब मागंते हुए हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए आगामी 28 मई की तिथि
तय की है। यही नहीं आयोग ने अधिवक्ता व उनके समर्थकों के खिलाफ दर्ज किये
गये मुकदमों की जांच कर रहे अधिकारियों पर ही सवाल खड़ा किया है और प्रकरण
की जांच अमेठी व सुलतानपुर के बाहर किसी अन्य जांच एजेंसी से अथवा उनकी
निगरानी में कराया जाना उचित बताया है।