(2 8 फरवरी विज्ञान दिवस पर विशेष )

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर वर्ष 28 फरवरी को मनाया जाता है। विज्ञान दिवस का मूल उददेश्य तरूण विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करने तथा प्रेरित करने तथा जनसाधारण को विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति सजग बनाना है। इस दिन सभी विज्ञान संस्थाओं मंे कालेजों आदि में विभिन्न वैज्ञानिक गतिविधियांे से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं। इस बार मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने विज्ञान दिवस पर व भारतीय वैज्ञानिकों की महान उपलब्धियों पर अपने विचार भी व्यक्त किये हंै। विज्ञान दिवस के माध्यम से बच्चों को विज्ञान को अपने कैरियर को चुनने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। ताकि हमारे देश की आने वाली पीढ़ी विज्ञान के क्षेत्र मंे अपना योगदान दे सके और हमारे देश का विकास तीव्र गति से संभव हो सके । वैसे भी आज का मानव जीवन अब पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित हो चुका है। ऐसा नहीं है कि आज के विज्ञान का जन्म आज की के दौर में हुआ है विज्ञान का जन्म मानव काल के जन्म से ही प्रारम्भ हो गया थातथ यह विज्ञज्ञन समय और काल के हिसाब से बदलता रहता है। मानव जीवन की आवश्यकता के हिसाब से आविष्कार होते रहते है। यहां पर यह बात भी कही जा सकती है कि आवश्यकता ही आविष्कर की जननी है। भारत में 28 फरवरी का ही दिन विज्ञान दिवस के रूप में क्यों चुना गया? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे देश के महान वैज्ञानिक सी वी रमन द्वारा एक खोज की गयी थी। उनके द्वारा की गयी प्रकाश के प्रकीणर्न की खोज ने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया था। उन्होंने यह खोज सन 1928 में कोलकाता में की थी। वहीं इस खोज को रमन प्रभाव के नाम से भी जाना जाता है। वहीं सी वी रमन के जीवन से बच्चे प्रेरणा भी ले सकते हैं।

वैज्ञानिक सी वी रमन का जीवन परिचय – भारत के प्रख्यात वैज्ञानिक चंदशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली मंे हुआ था। रमन के पिता भी एक कालेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। रमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्त्नम में हुई। वहां के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति से रमन विशेष रूप से प्रभावित हुए। रमन ने 12 वर्ष की अवस्था में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उन्हीं दिनों आपको एनी बेंसेट के भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बचपन से ही रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथो का अध्ययन किया। रमन के मन में भारतीय गौरव की अमिट छाप पड़ चुकी थी। रमन की शिक्षा स्वदेश में ही हुई। सन 1903 मे चेन्नई के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश लिया। बी ए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। भौतिकी में स्वर्ण पदक दिया गया। अंग्रेजी निबंध पर भी पुरस्कृत किया गया। 1907 में मद्रास विश्वविद्यालय से गणित में प्रथम श्रेणी में एम ए की डिग्री विशेष योग्यता की डिग्री प्राप्त की। विद्यार्थी जीवन में ही प्रकाश विवर्तन पर पहला शोधपत्र लंदन की फिलसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ।

उन दिनों आपके समान प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भी वैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी । अतः रमन सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठ गये। इस परीक्षा में भी प्रथम श्र्रेणी में पास हुये और अस्टिेंट एकाउंटेट जनरल बनकर कलकत्ता चले गये। एक दिन वह कार्यालय से लौट रहे थे कि उन्होंने एक साइन बोर्ड देखा जिसमें लिखा था कि वैज्ञानिक अध्ययन के लिए वैज्ञानिक परिषद । रमन अपना सारा काम छोड़कर सीधे परिषद के कार्यालयय पहंुचे और परिचय देकर परिषद की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली। तभी रमन का तबादला पहले रंगून फिर नागपुर हुआ। 1911 में रमन का तबादला फिर कलकत्ता में हुआ। यहां पर परिषद की कार्यशाला में उन्हें फिर से शोध करने का अवसर प्रा्रप्त हुआ यहां पर ध्वनि के कम्पन और कार्यो के सिद्धांन्त पर शोध किये। रमन का वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि सन 1927 में जर्मन में प्रकाशित बीस खंडों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवंें खंड के लिए वाद्ययंत्रों का लेख आपसे ही तैयार करवाया गया। रमन ने ही पहली बार तबले और मृदंगम की प्रकृति का पता लगाया था। कलकत्ता विश्वविद्यालय में वस्तुओं मे प्रकाश के चलने का अध्ययन किया। इनमें किरणों का समूह बिलकुल सीधा नहीं चलता है। उसका कुछ भाग अपनी राह बदलकर बिखर जाता है। रमन का ध्यान 1927 में इस बात पर गया कि जब एक्स किरणें प्रतीत होती हैं तो उनकी तरंग लम्बाईयां बदल जाती हैं। तब प्रश्न उठा कि साधारण प्रकाश में भी ऐसा क्यों नही होना चाहिए ?

रमन ने पारद आर्क के प्रकाश का स्पेक्ट्रम स्पेक्ट्रोस्कोप में निर्मित किया। इन दोनों के मध्य विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ रखे तथा पारद आर्क के प्रकाश को उनमंे से गुजारकर स्पेक्ट्रम बनाये। रमन ने देखा कि हर एक स्पेक्ट्रम में अंतर पड़ता है। हर एक पदार्थ अपनी अपनी प्रकार का अंतर डालता है । तब श्रेष्ठ स्पेक्ट्रम चित्र तैयार किये गये उन्हंे मापकर तथा गणित करके उनकी सैद्धान्तिक व्याख्या की गयी। प्रमाणित किया गया कि यह अंतर पारद प्रकाश की तरंग लम्बाइयों में परिवर्तित होने के कारण पड़ता है। रमन की इस खोज की घोषणा 29 फरवरी सन 1928 को गयी।

सन 1924 में अनुसंधानों के लिए रायल सोसायटी लंदन के फैलो बनाये गये। रमन प्रभाव के लिए सन 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। रमन प्रभाव के अनुसंधन के लिये नये क्षेत्र खुल गये। 1948 में रामन शोध संस्थान की बंगलौर में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। 1954 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया। रमन को 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया। 28 फरवरी 1928 को सी वी रमन ने रमन प्रभाव की खोज की थी जिसकी याद में भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

रमन प्रभाव की खोज भारतीय भैातिक शास्त्री रमन द्वारा दुनिया को दिया गया विशिष्ट उपहार है। पूर्व राष्ट्रपति कलाम जहां वीणा वादन करके तनावों से मुक्ति पाते थे वीं रमन की रूचि वाद्ययंत्रों के दूसरे तरीकों की थी। रमन ने पूरे जीवन भर विज्ञान की सेवा की । यही कारण है कि आज भी उनको पूरा देश याद करता है ।

मृत्युंजय दीक्षित

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