रविश अहमद

अभी कोई दो माह पहले तक जो राजपूत समाज राजस्थान की सरकार और भाजपा के ख़िलाफ आनन्दपाल के पुलिस एनकाउन्टर पर नाराज़गी जता रहा था वह मुद्दा सिरे से ग़ायब करने के लिये फिल्म पद्मावती की रिलीज़ तिथि गुजरात चुनाव के वक्त रखी गयी यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि फिल्म का निर्माण भाजपा के नज़दीकी उद्योगपति की कम्पनी वायाकॉम 18 ने किया है!

अब अगर यही तथ्य है तो इसमें कोई शक नही कि जानबूझकर राजपूत समाज की भावनायें भड़काने के लिये विवादित फिल्म का निर्माण किया गया है या फिर दुष्प्रचारित किया गया है। हम भारतीय लोग भले ही अपने पुरखों और पूर्वजों के बलिदानों और उनके सोने की चिड़िया सरीखे स्वप्नों को याद न रखते हों किन्तु इतने जज़्बात तो हमें इस मिट्टी से मिले ही हैं कि हम निश्चित रूप से अपने पुरखों और बुज़ुर्गों का अपमान सहन नही करते।

जब तक यें जज़्बात किसी दल या सरकार के पक्ष में रहते हैं या भड़काकर पक्ष में किये जाते हैं, तब तक इन पर कोई कार्यवाही नही होती जैसा कि पद्मावती फिल्म की अज्ञात कहानी के बाद समीकरण सिद्ध करने की नीयत से वर्तमान में हो रहा है फिलहाल विरोध करने वाले समुदाय को इस बात का भ्रम दिया जा रहा है कि वें पूर्णतः सुरक्षित वातावरण में अपना विरोध जारी रखें और दल विशेष को इसका राजनीतिक लाभ मिल सके।
किन्तु इन्ही सीधे सादे जज़्बाती लोगों पर यही सरकार सीधी गोली चलवाती है और जबरन इनके आन्दोलन को कुचल दिया जाता है। जब ठीक इसी समुदाय के लोग ठीक इसी सरकार से एक जायज़ मांग गैंगेस्टर आनन्दपाल के पुलिस एनकाउन्टर की सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे।

समझने वाली बात यह है कि ऐसे मुद्दों पर भाजपा सरकार की मित्र कम्पनी फिल्म क्यों बनाती है क्या जानबूझकर आम आदमी के जज़्बात भड़काये जाते हैं? मांग अब भी जायज़ है और निश्चित रूप से यदि ऐसी फिल्म बनती है जिससे किसी वर्ग विशेष अथवा समुदाय का अपमान होता हो तो फिल्म को रिलीज़ होने की अनुमति नही दी जानी चाहिये। भारतीय संविधान इसकी इजाज़त नही देता है। सरकार यह कर सकती है केवल एक ही दिन में फिल्म देखकर यदि आपत्तिजनक हो, उसके प्रसारण पर रोक लगा सकती है लेकिन ऐसा करने से वोट साधने का जो प्रयास है वह भटक जायेगा। इस फिल्म की आपत्तिजनक एवं वैमनस्य फैलाने वाली गढ़ी गयी कहानी एक नफरत को सींचने का काम कर रही है और डर यह है कि अगर फिलहाल इसे रोका गया तो राजपूत समाज कहीं दोबारा आनन्दपाल का मुद्दा न उछाल दे और अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर वोट बैंक साधने की रणनीति न केवल फेल हो जायेगी बल्कि इसके उलट परिणाम आने की प्रबल संभावना है।

यहां सर्वाधिक विवाद गहराया जा रहा है अलाउद्दीन खिलजी(मुसलमान) और क्षत्रिय समाज के बीच और विवाद फैलाने वाले यानी फिल्म बनाने वाले अम्बानी और संजय भंसाली दोनो वैश्य समाज से हैं! अब आप इसे क्या कहियेगा कि पद्मावत नामक पद्य ग्रन्थ लिखने वाला मुस्लिम कवि मलिक मुहम्मद जायसी था जिसने अपनी किताब में ऐसे किसी भी अपमानित दृश्य की परिकल्पना तक नही दर्शायी थी या फिर हिन्दू वैश्य समाज के उक्त निर्माताओं की क्षत्रिय समाज की महिलाओं के प्रति ग्लैमर की कल्पना है या फिर इस पूरे परिदृश्य को आप राजनीतिक स्टंट मानेगें। दरअसल फिल्म बनाने वालों का धर्म या समाज से कोई लेना देना नही किसी की आस्थाएं, मान्यताएं या भावनाएं आहत होती हों तो हों उनका मक़सद सिर्फ मुनाफा कमाना होता है अब अगर उन निर्माताओं के कृत्य का दोषी पूरे वैश्य समाज को कहा जाये तो क्या यह बेवकूफी नही होगी।

बहरहाल जो भी हो देश का कोई भी संवेदनशील व्यक्ति जो अपने समाज और इतिहास से रत्तीभर भी लगाव रखता हो वह इस प्रकार भावनाओं से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा। कानून चलाने वाले जब अपना काम पूरा नही करते हैं तब लोग कानून अपने हाथ मे लेते हैं तब ऐसे में विरोध करने वाले लोगों पर आप पूरा ज़िम्मा नही डाल सकते। सरकार को इस फिल्म को पूर्णतया प्रतिबन्धित कर देना चाहिये और अगर वह ऐसा नही कर रही है तो निश्चित रूप से इस विवाद को हवा देकर राजनीतिक लाभ उठाने की उसकी मंशा से इनकार नही किया जा सकता।