मृत्युंजय दीक्षित

8 नवंबर 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में व्याप्त कालेधन व जाली नोटों के प्रवाह को थामने के लिए 500 व एक हजार के नोट बंद करने का ऐलान कर दिया तो हर कोई नागरिक हैरान व आश्चर्यचकित हो गया था। पीएम मोदी का आजादी के 70 साल बाद किसी भी सरकार के द्वारा लिया गया यह एक ऐतिहासिक निर्णय था। इस निर्णय को जब जनता ने समझा तो वह पूरी मुसतैदी व जिम्मेदारियों के साथ सरकार के साथ खड़ी दिखायी दी और अपनी अनगिनत समस्याओं के बावजूद जनता ने धैर्यपूर्वक लाइन में खड़ेे होकर सरकार का साथ निभाया था। लेकिन देश के एक बहुत बड़े वर्ग को यह बात समझ में नहीं आयी तथा उसने सरकार के फैसले को अपने हिसाब से चलाने का प्रयास भी किया था।

देश की जनता जहां सरकार के साथ खड़ी थी वहीं अभी तक जिन लोगों की तिजोरियों में यह धन छिपाकर रखा गया था वह एकाएक बाहर आने लग गया था तथा उनके चेहरे से हवाईयां उड़ने लग गयी थीं । देश के सभी विरोधी दल हैरान व हतप्रभ थे उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। यही कारण है कि आज पूरा विपक्ष नोटबंदी को अभी तक संगठित लूट करार दे रहा है। नोटबंदी के ऐतिहासिक फैसले के बाद ही यह अनुमान लगा लिया गया था कि आरम्भ के दिनों में देश के विकास की गति कुछ धीमी पड़ सकती है और वह हुआ भी है तथा अर्थव्यवस्था पर रेटिंग देने वाली संस्थओं ने देश में जीडीपी की दरों में गिरावट को भी बता दिया। बस उसके बाद विपक्ष के स्वर और बुलंद हो गये हैं तथा गुजरात में खासकर पटेलों की नाराजगी को भुनाते हुए इस मुददे को और भी अधिक जोरदार ढंग से उठाया जा रहा है।

अभी 8 निवंबर 2017 को नोटबंदी के एक साल पूरे हो गये जिसमें विपक्ष ने पूरी ताकत के साथ नोटबंदी को काले दिवस के रूप में मनाने की कोशिश की। विपक्ष के सभी नेताओं ने एकस्वर से नांेटबदी व जीएसटी के खिलाफ नये- नये शब्दों की रचना करते हुए पीएम मोदी व सरकार पर तीखे हमले बोले लेकिन सर्वेक्षणों में कुुछ अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , लालू प्रसाद यादव , उत्तर प्रदेश से समाजवादी दल और बसपा नेत्री मायावती बहुत अधिक बैचेन होती जा रही है। यह लोग जितना तीखा विरोध पीएम मोदी व उनकी नीतियों का रकर रहे हैं यह लोग उतना ही अधिक जनता से दूर होते जा रहे हंैे। जनमानस को यह बात धीरे- धीरे अच्छी तरह से समढ में आने लग गयी है कि जो लोग अभी तक टैक्स चोरी करते थे तथा उन नोटों के माध्यम से भारी भ्रष्टाचार करते थे अब उसका असाान सा रास्ता बंद कर दिया है। नोटबंदी पर राहुल गांधी कहना है कि जनता का एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है लेकिन यह खतरातो वास्तव में उल्टा उन पर ही असर दिखला रहा है। आज की वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में फिलहाल कांग्रेस के हाथ से एक के बाद एक राज्य निकलते जा रहे हंैे। अभी हिमांचल में चुनाव संपन्न हो चुके है। वहां से जो चुनाव पूर्व पोल आ रहे हैं वहां पर कांग्रेस की वापसी की संभावना बहुत कम है लेकिन गुजरात में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिगनेश का साथ लेकर पीएम मोदी के गृहनगर में ही उनको घेरने की अच्छी रणनीति तैयार कर ली है। कांग्रेस ने जीएसटी के कारण नाराज कपड़ा व्यापारियों के मुददे को भी अपना हथियार बनाने का प्रयास किया र्है। लेकिन इन सबके बावजूद गुजरात से जो सर्वे आ रहे हैं उनमें वोट प्रतिशत में गिरावट तो दर्ज की जा रही है लेकिन उसके बावजूद भी अभी फिलहाल भाजपा की ही सरकार बनती दिखलायी पड़ रही है।

एक आर्थिक समाचार पत्र इकानामिक टाइम्स के सर्वे के पता चल रहा है कि 38 फीसदी जनता ने इस कदम को सही ठहराया है जबकि 30 फीसदी लोगांे ने परिणाम पर मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है लेकिन फैसले की सराहना करते हुए लोगों का यह भी कहना रहा है कि इ योजना और भी अधिक कारगर ढंग से यदि लागू किया गया होता तो और अच्छे परिणाम समाने आते। यह बात सही है कि नोटबंदी के ऐलान के बाद देश की बैंकों के अधिकारियांें व कर्मचारियों ने बड़े लोगों की मिलीीागत से खूब कमाई भी कर डाली जो लोग अब कानून के शिकंजंे में धीरे- धीरे। नोटबंदी व जीएसटी का विरोध करने वाले अधिकांश लोग जांच एजेंसियों के रडार पर आ चुके हैें।

नोटबंदी के ऐलान के बाद पीएम मोदी अपने आप को गरीबोें व पिछड़ों का मसीहा साबित करने में काफी हद तक सफल रहे तथा विरोधियों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में बाधक साबित कर दिखाया। नोटबंदी के बाद पीएम मोदी की जनसभाओं में जबर्दसत भीड़ उमड़ने लगी तथा जनता करतल ध्वनि से उनका स्वागत करने लग गयी थी। कालेधन के खिलाफ अभियान के चलते जिन लोगों ने अपना पैसा छुपाकर रख लिया था वह एकाएक बाहर आने लग गया। विपक्ष ने तो संसद ही ठप कर दी थी। लेकिन उकसे बाद उत्तर प्रदेश,उतराखंड, मणिपुर, गोवा व पंजाब में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। उप्र व उत्तराखंड मंे अभूतपूर्व लहर चल पड़ी तथा मणिपुर व गोवा में चाहकर भी कांग्रेस अपने लिए उचित समथ्रन नहीं जुटा सकी और भाजपा सरकार बना ले गयी। वहीं बिहार मेें तो महागठबंधन ही टूट गया और जो नीतिश कुमार संघ मुक्त भरत का सपना देख रहे थे वह भी अब संघयुक्त हो गये हैं। अब इन्हीं लोगों ने गुजरात व हिमांचल में एक बार फिर मोदी व बीजेपी को घेरने के लिए अहम रणनीति तैयार की है। इसका लाभ विपक्ष को कितना मिलेगा यह तो 18 दिसंबर को ही पता चलेकगा। लेकिन फिलहाल जनता के बीच नोटबंदी , जीएसटी का विरोध व काला दिवस पूरी तरह से फ्लाप शो रहा है। नोटबंदी व जीएसटी अकसर लम्बे समय के बाद दिखलायी पड़ेगा।
अभी मोदी ऐप पर जो सर्वे किया जा रहा है उसके परिणाम भी सामने आने लग गये हैं। सर्वेक्षण में 93 फीसदी लोगों ने माना है कि इससे कालेधन के खिलाफ लड़ाई को मजबूती मिली है। अधिकांश लोगों का मत है कि भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ उठाया गया कदम सही था लेकिन अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है।

नोटबंदी के कई सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हंै। नोटबंदी के बाद सरकार 3700 से अधिक लोगों की जांच कर रहा है। आयकर विभाग व जांच एजेसियों ने पूरी लिस्ट तैयार की है। जिसमें नेता, नौकरशाह, बैंक अधिकारी व चार्टड एकाउंटेंट शामिल हैं। माना जा रहा है कि इसलिस्ट में उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी है। तमिलनाडु में शशिकला के ठिकानों पर बम्पर छापामारी भी हुई है। नोटबंदी के बाद 9हजार 935 करोड़ की संपति जब्त की जा चुकी है।

नोटबंदी के बाद कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में बेतहाशा कमी आयी हे अभी हाल ही एजेेसियोें ने 36.34 करोड़ के पुराने नोटों के साथ नौ लोगोें को पकड़ने में सफलता हासिल की थी। माओवादियों व नक्सलवादियों पर लगाम लगी है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने सरकार के दावे की पुष्टि करते हुए कहा है कि मानव तस्करी व अवैध देह व्यापार का ध्ंाधा करने वाले लोगों पर लगाम लगाने में नोटबंदी कारगर साबित हुई है। प्रथम चैरिटी का कहना है कि अवैध तरीके से बच्चों को बालश्रम के लिए खरीदने और बेचने का धंधा पूरी तरह से मंदा पड़ गया है। बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली संस्था का कहना है कि उप्र, बिहार , झारखंड, राजस्थान जैसे राज्यों से बच्चो को लाकर जूते सिलने के काम में लगाया जाता था जिसमें काफी कमी आ गयी है। नोटबंदी का यह प्रयास वास्तव में देश को साफ सुथरा करने का काम कर रहा है।
आज विपक्ष को यही सब रास नहीं आ रहा है । इन नेताओं की कमाई के काले रास्ते बंद हो चुके हैं। अभी तक जीडीपी में जो गिरावट आई है उसके पीछे एक सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों का नोट निकल गया है लेकिन सुगमता कारोबार को लेकर जो आंकडे़ं आये हैं उसमें भारत की रंैकिंग में जबर्दसत सुधार आया है। लेकिन अहं में डूबा विपक्ष इस रिपोर्ट को भी नकार रहा है। यही कारण है कि आज देश की जनता विपक्ष को ही नकारती जा रही है। अब यही विपक्ष येन केन प्रकारेण मोदी व बीजेपी को बदनाम करने के नये – नये रास्ते खोज रहा है। चाहे वह कोई भी तरीका हो । विपक्ष बीजेपी को हराने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। लेकिन देश की अधिकांश गरीब जनता व पिछड़ा वर्ग अभी भी पीएम मोदी के साथ खड़ा दिखलायी पड़ रहा है बस आलोचकों के स्वर वोटबैंक के चलते कुछ अधिक तीखे होते जा रहे हैं यह रानीति की विकृति नही ंतो और क्या है ।