लखनऊ: शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन ने देशभर के 11 शहरों में कराए पब्लिक सर्वे के नतीजों का खुलासा किया है जिनसे वायु की गुणवत्ता को लेकर आम जनता की जागरूकता, उनकी समझ और उनके नज़रिए की जानकारी मिली है। ’ए हे ज़ीव्यू‘ शीर्षक से कराए गए इस सर्वे में हवा की गुणवत्ता के बारे में आम जनता की जागरूकता, समझ और रवैये को समझने का मौका मिलता है तथा शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन की ओर से एडलमैन इंडिया द्वारा यह सर्वे कराया गया।

इस सर्वे से खुलासा हुआ कि सर्वे में भाग लेने वाले ज्यादातर लोगों को वायु प्रदूषण की जानकारी तो थी लेकिन इस विषय की उनकी वास्तविक समझ कम ही थी।इसी प्रकार, वायु प्रदूषण से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी सरोकारों की जागरूकता और समझ के स्तर पर भी ऐसा ही अंतर देखने को मिला।

लखनऊ में, केवल 43ःप्रतिभागियों ने शहर की हवा को खराब से बेहद खराब बताया। इस विषय पर लखनऊ के प्रतिभागियों की जागरूकता भी अधिक पायी गई-78 फीसदी ने कहा कि वे वायुप्रदूषण को लेकर जागरूक अथवा बेहद जागरूक हैं और 65 फीसदी ने एयर क्वालिटी इंडैक्स (एक्यूआई) के बारे में जागरूक होने का दावा किया। लखनऊ के प्रतिभागियों ने माना कि वे वायु प्रदूषण के विषय में जानकारी प्राप्त करने को लेकर भी काफी सक्रिय हैं, और 64 फीसदी ने कहा कि वे इस मसले पर अक्सर सूचनाएं जुटाते हैं।

अलबत्ता, लखनऊ के 46 फीसदी प्रतिभागियों द्वारा पार्टिकुलेट मैटर(PM) 2.5 की जानकारी होने का दावा करने के बावजूद, सर्वे में शामिल केवल 14 फीसदी ने पीएम को स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा माना। लखनऊ के 89 फीसदी प्रतिभागियों ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को चिंता का मुख्य सबब बताया और 63फीसदी ने कचरा जलाने को सबसे गंभीर माना। उल्लेखनीय है कि लखनऊ के 61फीसदी प्रतिभागियों ने शहर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों के प्रति असंतुष्टि जाहिर की है। शहर के 73फीसदी ने वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने तथा 67फीसदी ने खुले में कचरा जलाने पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की है, 66 फीसदी लोगों ने कार पूलिंग को सराहा है और निजी वाहनों को कम करने पर सहमति जतायी है।

राष्ट्रीय स्तर पर कराए गए सर्वे से यह खुलसा हुआ है कि जहां अधिकांश प्रतिभागी वायु प्रदूषण (81 फीसदी ने इस बारे में खुद को अत्यधिक जागरूक बताया) और एयर क्वालिटी इंडैक्स (66 फीसदी ने कहा कि वे एक्यूआई को समझते हैं और उन्हें इसके बारे में जानकारी है) को लेकर जागरूक होने का दावा करते हैं, वहीं ज्यादातर प्रतिभागियों (57 फीसदी) ने हवा की गुणवत्ता को स्वीकार्य या बेहतर बताया। 49 फीसदी प्रतिभागियों ने पीएम 2.5 के बारे में जागरूक होने का दावा किया लेकिन सिर्फ 14 फीसदी ने ही पीएम को वायु प्रदूषकों में सर्वाधिक चिंता का विषय माना है।इसके अलावा, 31 फीसदी ने वायु प्रदूषण को अस्थमा जैसे श्वसन रोगों से जोड़ा है।

वायु प्रदूषण से निपटने में सरकारी उपायों को लेकर आमतौर पर असंतुष्टि का भाव दिखायी दिया, करीब 54 फीसदी प्रतिभागियों ने इस बारे में असंतोष जताया है। लेकिन प्रतिभागी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए समय सीमा को लेकर काफी आशावान दिखे, 71 फीसदी ने माना कि यदि सरकार उन तमाम उपायों को जारी रखे जो वह फिलहाल अमल में ला रही है तो अगले 10 वर्षों के भीतर इस समस्या से निपटा जा सकता है।प्रतिभागियों ने प्रदूषण फैलाने वाले उत्पादों तथा वस्तुओं पर प्रतिबंध, प्रदूषक उद्योगों पर दंड, कचरा जलाने पर प्रतिबंध तथा कार पूलिंग को प्रोत्साहन देने जैसे तरह-तरह के उपायों को सही बताया।

कुणाल शर्मा, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, क्लाइमेट पाॅलिसी, शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन ने कहा, ’’हवा की गुणवत्ता में सुधार के मकसद से किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को सफलता पूर्वक लागू करने के लिए सार्वजनिक प्रतिभागिता बेहद महत्वपूर्ण है। इसके लिए, प्राथमिकताओं और जागरूकता के मौजूदा स्तरों का पता लगाना जरूरी होता है ताकि जनता के साथ जुड़ाव को बेहतर तरीके से निर्धारित कर उचित क्रियान्वयन किया जा सके। इस सर्वे ने आरंभिक मूल्यांकन उपलब्ध कराया है जो कि सार्वजनिक दृष्टिकोण और व्यवहार विषय पर आगे अध्ययनों का आधार बन सकता है।‘‘