उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद फर्रूखाबाद की जनसंख्या में 85ः ग्रामीण एवं 15ः नगरीय जनसंख्या है जिसमेें व्यापक दरिद्रता है। दरिद्र व्यक्ति एवं उनके आश्रित जीवन की मूलभूत आवश्यक वस्तुओं के अभाव में जीवन-यापन कर रहे हैं। दरिद्र व्यक्तियों के परिवारों की कुल संख्या 100600 जिनमें 90475 ग्रामीण एवं 8500 नगरीय हैं। इन दरिद्र व्यक्तियों के परिवारों की संख्या वर्ष 2001 के बी.पी.एल. संख्या के आधार पर है जो वर्तमान में भी जारी है। बी.पी.एल.सूची में फर्जी दरिद्रों की संख्या अत्यधिक एवं वास्तविक दरिद्रों की संख्या नाम मात्र है। बी.पी.एल. सूची पर आधारित सरकारी योजनाओं का लाभ दशकों से फर्जी दरिद्रों को मिल रहा है और वास्तविक दरिद्र लाभ से वंचित दरिद्रता की मार झेलने को मजबूर हैं।

फर्रूखाबाद जनपद तीन तहसीलों में विभाजित है। इन तहसीलों के अन्तर्गत सात विकास खण्ड (513 ग्रामसभा) एवं 6 नगर (117 वार्ड) हैं। 2001 में जिले की जनसंख्या 1385277 थी जो 2011 में बढ़कर 1885204 हो गई है। यदि वृद्धि दर यही 20ः बनी रही तो 2040 तक जिले की जनसंख्या लगभग 37 लाख हो जाएगी। जनगणना-2011 के अनुसार, जनपद का कुल क्षेत्रफल 2181 वर्ग कि.मी., जनसंख्या घनत्व 865 व्यक्ति/कि.मी., लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 874 स्त्रियाँ तथा कुल जनसंख्या 1887577 (1007479 पुरुष, 880098 स्त्रियाँ) एवं जनसंख्या वृद्धि 2ः वार्षिक है। कुल साक्षर जनसंख्या 1125457 (70.57ः) में पुरुष 676067 (79.34ः) एवं स्त्रियाँ 449390 (60.51ः) हंै। फर्रूखाबाद तहसील के विकास खण्ड-बढ़पुर की कुल जनसंख्या 164730 (88654 पुरुष, 76076 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 7702 है, कमालगंज की कुल जनसंख्या 777306 (145816 पुरुष, 131490 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 20068 है, विकास खण्ड मोहम्मदाबाद की जनसंख्या 259396 (138745 पुरुष, 120651 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 17594 है। कायमगंज तहसील के विकास खण्ड कायमगंज की कुल जनसंख्या 225078 (120607 पुरुष, 104471 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 15219 है, शमशाबाद की कुल जनसंख्या 202229 (108229 पुरुष, 94070 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 15700 है, नबाबगंज की कुल जनसंख्या 165555 (88970 पुरुष, 76585 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 12523 है। अमृतपुर तहसील के विकास खण्ड राजेपुर की जनसंख्या 186183 (100390 पुरुष, 85793 स्त्रियाँ) में दरिद्रों की संख्या 7687 है। तथा नगर क्षेत्र- फर्रूखाबाद की कुल जनसंख्या 291374 (154776 पुरुष, 136598 स्त्रियाँ), कमालगंज की जनसंख्या 15471 (8248 पुरुष, 7229 स्त्रियाँ), मोहम्मदाबाद की जनसंख्या 24687 (13241 पुरूष, 11444 स्त्रियाँ), कायमगंज की कुल जनसंख्या 34484 (18135 पुरुष, 16249 स्त्रियाँ), शमशाबाद की जनसंख्या 28454 (14950 पुरुष, 13504 स्त्रियाँ), कम्पिल की कुल जनसंख्या 10271 (5477 पुरुष, 4804 स्त्रियाँ) है। जनपद में 98287 अन्त्योदय-बी.पी.एल. राशन धारक (90472 ग्रामीण, 7811 शहरी) व 107967 असहाय पेंशनर्स (90740 ग्रामीण, 17234 शहरी) हैं।

जनपद के नगर क्षेत्र-फर्रूखाबाद के भडगड्डा, लकूला के कंजड, घोड़ा-नखास एवं तिर्वाकोटी के नट, मोहम्मदाबाद नगर के भडगड्डा, तकीपुर के कंजड एवं हबूडा, रोहिला के बंजारा, कायमगंज नगर के कुंजडा, कम्पिल नगर के मदारी तथा ब्लाक बढ़पुर के ग्राम कुबेराघाट एवं रामपुर के निवासी, ब्लाक शमशाबाद के ग्राम कासिमपुर-तराई के निवासी, रायपुर के नट, ब्लाक राजेपुर के ग्राम आसमपुर के निवासी, भावन के निवासी, कायमगंज ब्लाक के ग्राम शिवरई के काछी, ब्राहिमपुर के हरिजन, ब्लाक नबाबगंज के ग्राम बबना के हरिजन, मोहम्मदाबाद ब्लाक के ग्राम मुडगांव के बेगा, खिमशेपुर के बेगा, बहेलिया,सिरौली के बेगा, ब्लाक कमालगंज के ग्राम महरूपुर के कंजड, जहानगंज के मुस्लिम, भडगड्डा आदि जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यक वस्तुओं से वंचित हैं। ये दरिद्र और उनके आश्रित रोटी के लिए रोज अपना जीवन दांव पर लगाते हैं। यह कूडे़-कचडे़ के ढ़ेरों में कबाड़ बीनते हैं, तालाब-गड्डों से मेड़क-मछली ढँूढ़ते है, खेत-वन में पक्षी-खरगोश पकड़ते हैं, बिलों में सांप निकालते हैं, कोल्ड में सड़े आलू बीनते हैं, भीख माँगते हैं और रूखी-सूखी रोटी से अपना तथा आश्रितों के पेट की भूख की आग मिटाते हैं। इनके आवास गन्दगी के ढेरों, गन्दे नालों, तालाबों, गन्दगी क्षेत्र में कीडे- मकोड़ों के बीच टूटी-फूटी झोपड़ियों में हैं जहाँ जहरीले कीड़-मकोड़ों का प्रकोप है। कुत्ते, बिल्ली, बकरी, बन्दर, नांग, बिच्छू, गधे, खच्चर आदि परिवार के सदस्य के रूप इनके साथ रहकर इनकी आजीविका व सुरक्षा में साथ निभाते हैं। यह दरिद्र व उनके आश्रित शिक्षा एवं रोजगार सहित दरिद्र कल्याण योजनाओं तथा आरक्षण लाभ से जबरदस्त वंचित हैं। इनको मिलने वाले भूमि-पट्टे, आवास, राशन, नौकरी, सब्सिडी, लोन, आरक्षण सभी कुछ सक्षम एवं कर्मचारी हड़प रहे हैं। इन पर अपराधी का ठप्पा लगाकर दबंग इन्हें उत्पीडित कर बेगार कराते हैं और मादक द्रव्य, शराब आदि फर्जी मामलों फंसाकर जेल में डलवा देते हैं और स्त्रियों से शराब बिकवाते हैं। नौकरी मंे आरक्षण व्यवस्था होने के बावजूद इनकी बेरोजगारी देश-समाज के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।

जनपद की तहसील अमृतपुर का विकासखण्ड राजेपुर एवं तहसील कायमगंज का विकास खण्ड कायमगंज एवं शमशाबाद तथा तहसील फर्रूखाबाद का विकासखण्ड बढ़पुर का तराई क्षेत्र बाढ़ प्रभावित हैं। यहाँ का जन-जीवन गंगा एवं रामगंगा नदियों की भयानक बाढ़ की चपेट में रहने के कारण अस्त-व्यस्त और व्यक्ति दरिद्रताग्रसित जीवन-यापन करने को मजबूर हैं। यह कैसी विडम्बना है कि, केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा संचालित योजनाएँ-दरिद्रता उन्मूलन एवं दरिद्रों के कल्याणकारी लाभ पर राष्ट्रीय बजट का बड़ा हिस्सा व्यय होने के बावजूद दरिद्रता व भुखमरी में लगातार वृद्धि होती जा रही है। अधिकांश व्यक्तियों के रहन-सहन का स्तर निरन्तर गिरता चला जा रहा है। इससे भी अधिक दुःख की बात यह है कि धनाभाव ने न कितने ही व्यक्तियों को चिन्ता का शिकार बना दिया है, जिसका कुफल वे अपने स्वास्थ्य को खोकर या मानसिक एवं संक्रामक रोगों में ग्रस्त होकर भोग रहे हैं। इसके अतिरिक्त, उन लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनको धनाभाव के कारण न तो पेट भरने के लिए भोजन मिलता है, न तन ढ़कने के लिए कपड़ा और न रहने के लिए मकान। इन बदनसीब व्यक्तियों को हजारों की संख्या में फुटपाथों एवं गन्दे नालों के किनारे अपनी जिन्दगी के दिन गिनते हुए देखा जा सकता है।

जनपद के दरिद्रों की आजीविका के साधन खेतिहर मजदूरी, मजदूरी तथा जंगल, नदी, तालाब, खेतों, कूडे-कचरे से वस्तुएँ एकत्र कर श्रम बेंचते हैं। अधिकांश अपने आश्रितों सहित भट्टों, कोल्ड स्टोरेज, बीड़ी-जरदोजी-तम्बाकू कारखानों, होटलों, स्कूलों, आवासों, ढाबों, दूकानों में बन्धुआ श्रमिक के रूप में लगे हुए हैं और इनको मजदूरी कम दी जाती है।

फर्रूखाबाद जनपद के दरिद्र व्यक्तियों की आय बहुत कम है। इतनी कम आय में औसत सदस्य संख्या 6 परिवार वाला व्यक्ति सन्तोषजनक जीवन-स्तर नहीं अपना सकता। यही कारण है उपभोग का स्तर इनमें अत्यन्त निम्न है। इनके भोजन में कभी रोटी और सब्जी तो कभी नमक रोटी, कभी सूखी रोटी और दूषित जल होता है और अधिकांश को भूखे पेट ही सोना पड़ता है। दरिद्रता के कारण बड़ी संख्या में दरिद्र और उनके आश्रित जरूरी वस्त्रों के अभाव में जीवन-यापन कर हंै। ये एक ही वस्त्र को महीनों पहनते हैं जिससे उनका शरीर गन्दी बीमारियों से ग्रसित रहता है। दीन-हीन या अत्यन्त दरिद्र एवं उनके आश्रितों के तन पर वस्त्र नहीं होते हैं, पहने गए वस्त्र जगह-जगह कटे-फटे और गन्दे होते हैं। दरिद्र व्यक्ति फटे-पुराने गन्दे वस्त्रों में जिनके बच्चे निःवस्त्र रहकर और टूटी खाट या भूमि पर गुदड़ी विछौने पर सोकर गुजर-बसर कर रहे हैं। लू-लपट एवं भीषण सर्दी से शरीर को सुरक्षित रखने के लिए उनके पास जरूरी वस्त्र नहीं होते और सर, उदर, पैर खुले रहते हैं। भीषण गर्मी, सर्दी व लू-लपट में उनका तन सिकुड़ कर त्वचा झुर्रीदार और चेहरा काला पड़ जाता है। शरीर पर जगह-जगह दाग-धब्बे हो जाते हैं और पैरों में विमाई और छालों के बड़े-बडे घाव हो जाते जाते हैं। कचड़ा-कबाड़ बीनने एवं सड़कों पर घूमने वाले दरिद्र बच्चे नंगे पैर और फटेहाल स्थिति में दिखते हैं। मकानों के नाम पर अधिकांश दरिद्र व्यक्तियों के पास झोपड़ियाँ हैं अथवा एक-एक कमरे में कई-कई व्यक्ति-परिवार रहते हैं। अब तो मकानों की समस्या यहाँ तक जटिल हो गई है कि अनेकों परिवार फुटपाथ पर अथवा सड़क के आस-पास प्लास्टिक तानकर गुजारा करते हैं। न्यून एवं अपौष्टिक भोजन, तन ढकने को अपर्याप्त कपड़ा तथा रहने के लिए मकानों का अभाव इनकी दरिद्रता का द्योतक है। दरिद्रों के आहार में फल, दूध और सब्जियों का अभाव रहता है और व्यक्ति इन अपौष्टिक आहार के कारण स्वस्थ नहीं रह सकते। व्यक्तियों की स्वास्थ्यहीनता एवं उनकी दरिद्रता दोनों ने मिलकर एक चक्रव्यूह बना लिया है। चूँकि व्यक्ति दरिद्र हैं, अतः वे अस्वथ्य रहते हैं तो और अधिक दरिद्र हो जाते हैं।

फर्रूखाबाद जिले के दरिद्रों एवं उनके आश्रितों का जीवन बुरी तरह संकट ग्रसित है। भरपेट भोजन, पहनने के लिए स्वच्छ वस्त्र और रहने के लिए घर उनके सपने से भी परे है। उनके मन मस्तिष्क पर मौत का साया मडराता दिखाई देता है। उनकी भूख की तड़फ और दर्द का विलाप रहीसों को नाटक लगता है। उनका रक्त एवं काया व्यापारियों की आय के स्रोत हैं। लाचार का शिकार किया जाता है। शिकार अवसर पर ढ़ोल बजाकर उत्सव मनाए जाते हैं। अभिजन-व्यापारी दरिद्रों को ठीक उसी तरह शिकार बनाते हैं। जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है या सांप अपने अण्डों को स्वयं निगल जाता है।
फर्रूखाबाद जनपद के दरिद्र व्यक्तियों में आमतौर पर दो- दुर्गुण शराब पीना और जुआ खेलना हैं। इन दुर्गुणों अनुचित लाभ उठाने से व्यापारी, धनी एवं नेता कभी नहीं चूकते हैं। यह लोग दरिद्रों को कार्य में जुटाकर अधिक लाभ कमाने के लिए शराब बाँटते हैं, शराब की दावते करते हैं, शराब के लिए पैसे और कर्जा बाँटते हैं और किसी भी घटना को अंजाम देने के लिए शराब के नशे में चूर व्यक्ति से तरह-तरह के अपराध कराते हैं। यह लोग दरिद्रों से कोरे कागज पर अंगूठा लगवाकर उसके घर, मकान और जमीन हड़प लेते हैं। अधिकांश श्रमिक शराब पीकर घर आते हैं। अनेकों की सुबह शराब से ही शुरू होती है। अधिकांश शराबी अपनी कमाई शराब में उड़ाते हैं। पत्नी से शराब के लिए पैसे माँगते हैं। पत्नी बेचारी कहाँ से दे? पत्नी घर चलाने के लिए जीवन-संघर्ष करती है। पैसे न मिलने पर शराबी पत्नी से मारपीट कर उसकेे जेबर और बर्तन बेंचकर शराब में उड़ा देते हैं। बेचारी पत्नी तंग आकर या तो घर छोड़कर चली जाती है या आत्महत्या कर लेती है। माँ के अभाव में बच्चे अनाथ जीवन जीने को मजबूर होकर दर-दर भटकते हैं। शराबियों की वृद्धि में जिले के 44 वीयर, 185 देशी, 56 विदेशी ठेके का विशेष योगदान कर रहे हैं।

जनपद के व्यापारी, उद्योगपति, राजनेता, नौकरशाह और उनके गुर्गे उत्पादन के साधनों (मशीन, मिल, कारखाना, व्यवसायों व सरकारी नौकरी वाले) के उद्भव के साथ-साथ के दो विराट वर्गों में बंटे हुए हैं। प्रथम वर्ग अल्पसंख्यक उन लोगों का है जिनका इन उत्पादन के साधनों पर अधिकार है, अर्थात् व्यापारी, उद्योगपति, नौकरशाह, नेता। दूसरा वर्ग समाज के बहुसंख्यक श्रमिकों, बेरोजगार का है जिनके पास पूँजीं या जीविका के अन्य साधन नहीं हैं उनके लिए जीवित रहने का एक ही मार्ग खुला हुआ है और वह है कि वे अपने आपको रहीस के पास जाकर बेंच दें, अर्थात् अपने श्रम से उत्पादन कार्य में सक्रिय भाग लें और उसके बदले में कागजों पर नाम लिखें तथा वेतन के नाम पर खैरात कितना हेागा इसका निर्धारण श्रमिक नहीं, अपितु धनीवर्ग करता है। धनीवर्ग दरिद्रों की कमजोरियों को खूब जानता है और उसी के बल पर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। धनीवर्ग जानता है कि दरिद्र अपने श्रम और परिवार को भविष्य के लिए सुरक्षित करके नहीं रह सकता और न वह रातों-रात अपने को इतना संगठित या शक्तिशाली कर सकता है कि धनी लोगों से अपने श्रम का उचित वेतन का सौदा कर सके। फलस्वरूप धनी श्रमिक, बेरोजगार, दरिद्र व्यक्तियों से अत्यधिक मेहनत करवा तो लेता है और उसके बदले में नाम मात्र का वेतन खैरात के रूप में देता है, अर्थात् श्रमिक अपने श्रम से जितना मूल्य उत्पन्न्ा करता है, उसका उचित हिस्सा श्रमिक को वेतन के रूप में नहीं देता है, वरन् उसका एक बहुत छोटा भाग श्रमिक को देकर अधिकांश भाग धनी-पूँजीपति स्वयं हड़प जाता है।

जनपद के 90-95ःकृषक-मजदूर निरक्षर हैं। ग्रामीण क्षेत्र की लगभग 85-95ः स्त्रियाँ, 80-90ः पुरूष, शहरी क्षेत्र में लगभग 80-90ः स्त्रियाँ, 70-80ः पुरूष अशिक्षित और निरक्षर मिले। दरिद्र बस्तियों में यह स्थिति और भी भयावह है जहाँ की अशिक्षा और निरक्षता 95-100ः बनी हुई है। छात्र-छात्राओं, किशोरों, प्रशिक्षुओं एवं शिक्षा डिग्री-डिप्लोमा धारकों की शैक्षिक स्थिति में बड़ी अज्ञानता एवं निरक्षरता है। निम्न से उच्च शिक्षित बच्चों, किशोरों, छात्रों युवाओ को सूर्योदय-सूर्यास्त की दिशाओं एवं अक्षरों का ज्ञान नहीं है। अधिकांश नहीं जानते हैं कि वे किस जनपद-प्रदेश के निवासी हैं। लिखना-पढ़ना उनके वश की बात नहीं है। निरक्षरता और अज्ञानता उनके पतन की नियत बन चुकी है।

दरिद्र आलसी, अकुशल और समाज पर बोझ माने जाते हैं। इनको हर स्तर पर सताया जाता है, अपमानित किया जाता है एवं इनसे भेद-भाव बरता जाता है। इनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं करता और वे शक्तिहीन होते हैं। इस कारण ये सदैव शक्तिशाली व्यक्तियों के आक्रमण और विद्वेष के निशाने बनाए जाते हैं। इन्हें निरक्षरता और सामाजिक पूर्वाग्रह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें सामूहिक शक्ति का अभाव होता है और जब कभी ये स्थानीय या लघु स्तर पर समाज के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिक शक्तिशाली समूहों के विरूद्ध एक होने का प्रयत्न करते हैं तो उन लोगों को लगता है, कि उनके आधपत्य को खतरा है, इस कारण दरिद्रों को कुचल दिया जाता है। इन्हें ऋण पर ऊँची दर पर ब्याज देना पड़ता है। इन पर दोषारोपण किया जाता है। जिन कार्यालयों में ये जाते हैं, वहाँ इनकी ओर बहुत कम या बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है। पुलिस तो सबसे पहले उन क्षेत्रों में जाती है जहाँ दरिद्र रहते हैं जैसे कि मात्र दरिद्र ही अपराध करते हैं। ये बिरले ही विश्वसनीय, भरोसे के और ईमानदार माने जाते हैं। इस प्रकार समाज के प्रत्येक स्तर पर प्रतिकूल रवैया इनकी आत्मछवि को गिराता है, इनमें हीन-भावना को जन्म देता है और अपनी सहायता के लिए साधन जुटने के प्रयत्नों पर रोक लगाता है।

जनपद में 2059 प्राथमिक विद्यालय, 961 उच्च प्राथमिक विद्यालय, 1 केन्द्रीय, 1 नवोदय, 6 कस्तूरबा, 1 आश्रम पद्धति, 513 आँगवाड़ी-प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र सहित एडिड एवं स्ववित्त पोषित आदि विद्यालय संचालित हो रहे हंै। इनमें बड़ी संख्या में शिक्षक, शिक्षामित्र, प्रेरक, कार्यकत्री, सहायिका, अनुदेशक, कोआर्डिनेटर, शिक्षाधिकारी, रसोइया, सेवक, स्वीपर, लिपिक कार्यरत हैं। जिनके वेतन-भत्तों तथा छात्रों के लिए मिड-डे-मील, दूध, फल, बस्तों, डेªसों आदि पर राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा हिस्सा व्यय हो रहा है। इसके बावजूद स्कूलों में पढ़ाई न होने से कोई भी अपने प्रतिपाल्यों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने को तैयार नहीं है। प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का पूर्णतया अभाव है। इन स्कूलों में जो छात्र पंजीकृत हैं उनमें अधिकांश या तो प्राइवेट स्कूलों के छात्र हैं या पूर्णतया निरक्षर हैं। इनमें कार्यरत लगभग सभी रसोइयों एवं पंजीकृत छात्रों के अभिभावकों में अधिकांश की निरक्षरता और अशिक्षा फर्रूखाबाद की साक्षरता की वास्तविकता उजागर करती है।

जनपद के लगभग सभी मजरों-वार्डाें में बने बड़े-बड़े स्कूल भवन व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं। इन भवनों में पढ़ाई के अतिरिक्त सब कुछ देखने को मिल रहा है। यथा दावत के भण्डारे, पौणालिक स्थलों एवं पार्कों की भाँति बच्चों की उछल-कूद, शिक्षकों-रसोइयों के गुट-गपशप, फेरी व्यापारियों से खरीदारी, मोबाइल पर गेम्स एवं लम्बी वार्ता के नजारे दिखते हैं। कार्यरत अधिकांश शिक्षक ड््यूटी साइन करने के लिए यदा-कदा स्कूल आते हैं और बच्चों को पढ़ाए बिना चले जाते हैं। अनेक शिक्षक घर बैठे बिना शिक्षण कार्य वेतन लेकर राजनीति-व्यापार में सक्रिय हैं। अनेक शिक्षक अपनी जगह बेरोजगारों को अपने वेतन से कुछ पैसा देकर पढ़वा रहे हैं। मिड-डे-मील का बचा राशन बन्दर-बाँट कर घर ले जाया जाता है। जिससे सिद्ध होता है कि मिड-डे-मील व्यवस्था समाप्त होने पर छात्र जनता पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा परन्तु प्रधान-शिक्षक व उनके परिजन भूखे रह जाएँगे।

आँगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन परिषदीय विद्यालयों में हो रहा है। इन केन्दों पर कार्यरत अधिकांश कार्यकत्रियाँ, पर्वेक्षक कोटेदारों, अधिकारियों, कर्मचारियों एवं रहीस परिवारों से हैं जिनका निवास सम्बन्धित गाँवों में न होकर अन्य गाँव-नगर में हैं और वे ड्यूटी पर नहीं जातीं हैं। उनकी जगह सहायिकाएँ उपस्थित खाना पूर्ति करती हैं। फर्जी छात्रों का पंजीकरण, बच्चों-स्त्रियों को आहार-पुष्टाहार वितरण पूर्णतया फर्जी हो रहा है।

सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत पौढ़ शिक्षा के सभी केन्द्र परिषदीय स्कूलों में चल रहे हैं। इन सभी केंद्रों पर दो प्रेरक कार्यरत हैं। जिनमें अनेक रहीस व्यक्ति हंै जो निरक्षरों को न तो पढ़ाते हैं और न ही निरक्षरों को साक्षर बनाते हैं। साक्षरता परीक्षा फर्जी कराते हैं।

आश्रम पद्धति विद्यालय अनुसूचित एवं जनजाति के दरिद्र बच्चों के लिए है एवं कुछ सीटों पर दरिद्रों के बच्चों को भी प्रवेश दिए जाने का प्रावधान है। इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों को आवासीय सुविधा सहित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। जिसका लाभ पात्र दरिद्रो के स्थान पर फर्जी दरिद्रों-अपात्रों का दिया जा रहा है। वास्तविक दरिद्र निरक्षर वंचित हैं। इसी प्रकार जिले के सभी ब्लाकों में कस्तूरबा विद्यालय निरक्षर किशोरियों के लिए संचालित हो रहे हैं। इन विद्यालयों में आवासीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक विद्यालय में 100 छात्राओं को पंजीकृत कर शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान है। छात्रों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा, मानकीय शिक्षा एवं पंजीकरण की संदिग्धता इस आधार पर अति प्रबल है क्योंकि अधिकांश शिक्षक गायब या अपने घर से आते-जाते हैं।
मूक-बधिर केन्द्र पर कार्यरत अधिकांश स्थानीय शिक्षक शिक्षण कार्य में रूचि न लेकर अन्य व्यवसायों में सक्रिय बने हैं तथा अपंग छात्रों की शिक्षा व व्यवस्था रामभरोसे है।

जनपद में गैर पंजीकृत ईश्वरीय विश्वविद्यालयों का संचालन अवैध हैं। नरक, भूत-प्रेतों का भय एवं आत्मा-जीवन उद्धार का लालच देकर किशोर-किशोरियों-प्रौढ़ों को फंसाकर लाया जाता है। पूजा-पाठ के कर्मकाण्डों से जन-समर्थन प्राप्त किया जाता है एवं फंसे लोगों को रात्रि के अन्धेरे में इधर-उधर करके न जाने कहाँ ले जाया जाता है। यहाँ किशोरियों को चिड़ियाघर की भाँति रखा है तथा अपराध जगत में सक्रिय व्यक्ति को ईश्वर बताकर उनसे युवतियों का शोषण-संसर्ग उपरान्त विधवा जीवन व्यतीत करने हेतु बाद्ध किया जाता है। इनकी गतिविधियाँ व्यक्ति-समाज के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध हो रही हैं।

धार्मिक स्थलों एवं अल्पसंख्यकों के नाम पर संचालित स्कूलांे में धर्म एवं शिक्षा का दुरूपयोग होकर छात्र-छात्राओं को अंधविश्वासों का अन्धानुकरण करने हेतु बाद्ध किया जाता है। दान-अनुदान एवं छात्रवृत्तियों को हड़पकर मठाधीश निजी लाभ कमाने में जुटे हैं। फर्जीबाड़े पर आधारित अधिकांश मदरसों की शिक्षा अति संदिग्ध एवं समाज विरोधी है।

पब्लिक स्कूलों में अध्ययनरत अधिकांश छात्र परिषदीय स्कूलों में पंजीकृत हैं और उनके माता-पिता सरकारी योजना का लाभ जैस समाजवादी, विधवा, बिकलांग पेंशन सहित दरिद्र कल्याण हेतु बनी योजनाओं का लाभ लेकर सरकारी स्कूलों में नौकरी-अध्यक्षता कर रहे हैं। निजी स्कूलों के छात्र सम्बन्धित विचारणीय तथ्य यह है कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा पूर्ण होने के बावजूद जब छात्रों को निरक्षर होना पड़ रहा है तो उन्हें पुनः पब्लिक स्कूलों में पढ़ना पड़ रहा है और बड़ी उम्र में भी वह निम्न शिक्षा पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

छत्रपति शाहूजी महाराज वि. वि. कानपुर से सम्बद्ध तथा मान्यता प्राप्त फर्रूखाबाद जनपद के एडिड एवं स्ववित्तपोषी कालेजों की अधिकांश प्र्रबन्ध समितियों के पदाधिकारी एवं सदस्य स्थानीय समुदायों के सामान्यजन, शिक्षाविद्, समाजसेवी, अभिभावक नहीं हैं और न ही विश्वविद्यालय एक्ट के अनुरूप हैं। शैक्षिक मानक प्रतिकूल प्रबन्धतन्त्रों के अध्यक्ष एवं सचिव सगे-सम्बन्धी यथा भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, पिता-माता, पति-पत्नी, सास-ससुर, बहू, भतीजे, साले-बहनोई, नौकर, मित्र, किराएदार, साझेदार, गैर-जनपदीय आपसी हितबद्व हैं। इन कालेजों के लोग शिक्षा को अपने निजी लाभ के लिए व्यापार की भाँति दूषित कर रहे हैं। सोसाइटी एक्ट-1856, उ. प्र. विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 एवं शिक्षा अधिनियमों की जबरदस्त उपेक्षा कर एडिड एवं स्ववित्तपोषी कालेजों के प्रबन्धतन्त्र स्वःलाभ हेतु अपने सगे-सम्बन्धी भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, पिता-माता, पति-पत्नी, बहू, भतीजे, साले-बहनोई, नौकर, आपसी हितबद्वों को प्राचार्य, प्राध्यापकों, कर्मचारियों के पदों पर आसीन कर तथा कालेजों में शिक्षण कार्य कराए बिना छात्र-छात्राओं को मनचाही डिग्री का लालच देकर अवैध वसूली व धन उगाही एवं व्यक्तिगत लाभ कमाने में जुटे हैं। स्ववित्तपोषी कालेज ‘नकल-ठेकों’ एवं डिग्री बिक्री के आधार पर संचालित हो रहे हैं। इनकी शिक्षा व्यवस्था एवं प्राचार्य, शिक्षक, शिक्षण, कर्मचारी, लैब, लाइब्रेरी सभी अमानक हैं तथा छात्र-छात्राओं एवं बेरोजगारों से मनमाना धन वसूलने के बावजूद शिक्षण नहीं होता है। स्ववित्तपोषी कालेजों की मान्यता सम्बन्धी पत्रावलियों में औपचारिकतावश जो प्राचार्य, शिक्षक अनुमोदित होते हैं वह कभी भी कालेज नहीं आते हैं। इनमें अधिकांश अन्य कहीं वेतनभोगी व अन्य दूर-दराज क्षेत्र-प्रदेशों में नौकरी करते हैं या सेवानिवृत्ति हैं, जिन्हें वि. वि. द्वारा अनुमोदित किया गया है। यह लोग प्रमाणपत्रों का वार्षिक किराया 50000-100000 अनेक कालेजों से वसूल करने के बावजूद किसी कालेज में पढ़ाने नहीं जाते है। इनके वेतन बैंक खातों में फर्जीबाड़ा है।

जनपद का डायट केन्द्र रजलामई में संचालित हो रहा है। केन्द्र के प्राचार्य एवं शिक्षकों तथा प्रशिक्षणार्थी यदाकदा विद्यालय आते हैं। प्राचार्य के विद्यालय आने की सूचना मोबाइल पर सर्कुलेट होती है तभी स्टाफ-शिक्षक विद्यालय आते हैं।
शिक्षा बोर्ड, उच्चशिक्षा, टेक्नीकल, चिकित्सीय, विधि कालेज एवं शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा-माफियाओं द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों को नष्ट कर प्रबन्धन एवं शिक्षण में फर्जीबाड़ा कर स्वलाभ कमाया जा रहा है। मानक विहीन समितियाँ धन के प्रभाव में विद्यालय संचालन की मान्यता लेकर भावी पीढी का भविष्य बर्वाद कर रहीं है। एडिड एवं स्ववित्तपोषी शिक्षण संस्थानों के प्रबन्धक कालेज सम्बद्धता-मान्यता पत्रावलियों में फर्जी, भ्रामक, अमानक तथ्यों-प्रपत्रों तथा शपथ-पत्रों में जोड-तोड कर और स्वयं मनमाने ढंग से सत्यापित कर फर्जीबाडा कर रहे हैं तथा बोर्ड-शिक्षा कर्मचारियों से सांठ-गांठ एवं धन प्रभाव से मनचाही जाँच, साक्षात्कार, नियुक्ति के फर्जी प्रपत्र बनाकर पत्रावलियों में शामिल करा रहे हैं। जिसके माध्यम से शिक्षा विकास की योजनाओं की निधियों के घन को हड़प कर कालेज भूमि, भवन, चरागाहों पर जबरदस्त कब्जा कर प्रबन्धतन्त्रों के लोगों एवं उनके परिवारीजनों द्वारा शिक्षा-छात्र-बेरोजगार-समाज का हित बुरी तरह से प्रभावित किया जा रहा है।

जनपद के ग्राम प्रधानों-कोटेदारों में लगभग 60ः प्रधान और इतने ही कोटेदार सम्बन्धित ग्रामों के निवासी नहीं हैं। यह जन्म से आज तक नगर निवासी हैं। इनके आश्रितों सहित इनकी रोटी-चैका घरेलू सभी गतिविधियाँ नगर तक सीमित होने के बावजूद गाँव के फर्जी वोटर बने हैं जिसके आधार पर फर्जी प्रमाण-पत्र व धन एवं संगठित अपराधियों के प्रभाव से ग्राम प्रधान पद हथियाकर ग्राम विकास की योजनाओं का धन हड़प रहे हैं। इनके द्वारा न तो खुली बैठकें करायी जाती हैं और न ही खुली बैठक-प्रस्ताव होते हैं। कोटे का राशन ब्लैक कर दिया जाता है तथा कोटेदार और सरकारी कर्मी इनसे जुड़कर दलाली हिस्सा तक सीमित हैं। इस प्रकार फर्जी दरिद्र सुख में एवं वास्तविक दरिद कल्याण लाभ विहीनता या मानक उपेक्षा के कारण बुरी तरह दरिद्रता ग्रसित हैं।
केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा असहाय-दरिद्रों के कल्याण हेतु संचालित योजनाओं के अन्तर्गत दरिद्रों के लिए राशन, आवास, शौचालय, छात्रवृत्तियाँ, बीमा, अनुदान, निःशुल्क शिक्षा-इलाज, ब्याज छूट ऋण, कृषि अनुदान, निःशुल्क बोरिंग, हैण्डपम्प, पशु-चारा अनुदान, वृद्धा-विधवा-समाजवादी-विकलांग पेंशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गाण्रटी, प्राथमिक छात्रों को निःशुल्क पुस्तकें, ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, दूध, फल, शिक्षक, 0 से 6 वर्ष के बच्चों को पौष्टिक भोजन, दूध, खिलौने, स्वास्थ्य जाँच, स्कूल पूर्व की शिक्षा एवं महिलाओं के मातृत्व धारण करने के उपरान्त पैष्टिक भोजन, दूध, फल, स्वास्थ्य जाँच-चिकित्सा व गर्भवती को किश्तों में 6000 रूपए मुहैया करा रही है। जिसका दुर्पयोग और बंदर-बाँट हो रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जनपद फर्रूखाबाद के नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के दरिद्रों को पंजीकृत कर जिनको इन्दिरा-लोहिया-कांशीराम आवास, शौचालय, समाजवादी-विधवा वृद्धावस्था, बिकलांग पेंशन एवं अन्त्योदय-बी.पी.एल.राशन लाभ दिया जा रहा है। यह सभी अन्त्योदय कार्ड धारी एवं अधिकांश बी.पी.एल.पात्रता वाले तथा अधिकांश समाजवादी पेंशन धारक (लगभग 80-95ः) अपात्र हैं जिनमंे अधिकांश व्यक्ति-परिवारों के पास बड़े लेण्टर मकान, शहरों में हवेलियाँ, मोटरसाइकिल, कार, ट्रेक्टर, थ्रेसर, ट्यूबबेल, फ्रिज, कूलर, रंगीन डिस टी.वी., कम्प्यूटर्स, गैस कनेक्शन, ट्रक, दूकान, धन्धे, उद्योग, व्यापार, नौकरी, भूमि, प्लाट्स, मिल, प्रतिष्ठान, पैतिृक धन-सम्पत्ति आदि का स्वामित्त्व एवं सक्षम व्यक्ति-परिवार वाले हैं। अधिकांश असहाय विधवा-वृद्धा- समाजवादी पेंशनर्स के लड़के-लड़की शादी-शुदा एवं स्वयं सम्पन्न्ा व्यक्ति-परिवार हैं। अनेक बिकलांग पेंशनर्स ऐसे हैं जो शारीरिक रूप से पूर्ण सक्षम या चोट लगने से शारीरिक अंगों में मामूली कमी (40ः से कम) एवं पर्याप्त आय के बावजूद पेंशन धारक हैं और अनेक व्यक्ति अनेक पेंशनर्स बने हैं। इस प्रकार दरिद्रों के लिए बनीं कल्याण योजनाओं का लाभ दरिद्रों के स्थान पर फर्जी दरिद्र (रहीस) ले रहे हैं।

फर्जी दरिद्रों द्वारा बड़ी मात्रा में दरिद्रों का गेंहू, चावल, तेल, चीनी, इन्दिरा-लोहिया कांशीराम आवास, जमीन-प्लाट पट्टा, उद्योग, बीमा, दान-अनुदान एवं राष्ट्रीय सम्मान हड़पकर गम्भीर वित्तीय अनियमितताएँ की जा रही हैं। नेताओं के परिजन सगे-सम्बन्धी और वेतन-भोगी अपनी पहुँच और विज्ञापन के प्रभाव में राष्ट्रीय एवं राजकीय पदक पाने में फर्जीबाड़ा कर सफल हो रहे हैं। सांसद-विधायक विकास निधियाँ एवं हैंडपम्प सार्वजनिक स्थलों के स्थान रहीसों के प्राइवेट स्कूलो, आवासों, प्लाटों, प्रतिष्ठानों में लगाए जा रहे हैं। सरकारी आवास, मार्ग, शौचालय निर्माण में घटिया ईंट लगाई जा रही है। सरकारी राशन की दूकानें दबंग रहीसों के पास विरासत रूप में संचालित होकर एक-दो दिन मासिक खुलकर कुछ लोगों को राशन देकर खानापूर्ति कर रही है तथा राशन-तेल बाजार में खुले आम ब्लैक में बिक रहा है। ग्राम सचिवालय, सहकारी संघ एवं स्वास्थ्य भवनों पर रहीसों ने ताले डालकर अवैध कब्जे कर लिए हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकांश केन्द्र-उपकेन्द्रों पर चिकित्सक की जगह फार्मासिस्ट, चपरासी, सफाईकर्मी मरीजों का इलाज कर दवाएँ बाँट रहे हैं और चिकित्सक यदाकदा स्वास्थ्य केन्द्र पर जाकर फर्जीबाड़ा कर रहे हैं। अधिकांश ग्रामों के सफाई कर्मी उच्च जाति-वर्ग के हैं जो बाल्मीक जाति के दरिद्रों को 100-200 रुपए दिहाड़ी मजदूरी देकर यदा-कदा सफाई करा देते हैं तथा वेतन का कुछ हिस्सा प्रधानों एवं ए.डी.ओ. लेकर इनकी फर्जी हाजिरी प्रमाणित कर बिना काम वेतन भुगतान करा रहे हैं।
जनपद के चिकित्सालयों एवं नर्सिग होम्स की ट्रस्ट-समितियों के सदस्य- पदाधिकारी स्थानीय समुदायों के सामान्य जन, समाजसेवी, शिक्षाविद् नहीं हैं। चिकित्सा प्रबन्धतन्त्रों के पदाधिकारी-सदस्य चिकित्सकों के परिजन, सगे सम्बन्धी, आपसी हितबद्व तथा मानक प्रतिकूल हैं। निजी चिकित्सालयों के लोग व्यापारिक वस्तुओं की भाँति चिकित्सा को प्रदूषित कर चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा एक्ट की जबरदस्त उपेक्षा कर रहे हैं। चिकित्सक स्वलाभ हेतु अपने परिजनों को प्रबन्धतन्त्र का सदस्य-पदाधिकारी, चिकित्सक, नर्स, कर्मचारी पद पर दिखाकर जनता से धन उगाही कर रहे हैं। सरकारी चिकित्सकों के निजी चिकित्सालय दलाली, भ्रष्टाचार एवं अवैध वसूली करने में जुटे हैं। इनकी सुविधाएँ, शुल्क चिकित्सा, चिकित्सक, नर्सिंग, कर्मचारी, आॅपरेशन, व्यवस्था एवं दवाइयाँ मानकहीन है। ये रोगियों से मनमाना धन तथा सरकारी कोषों से मोटी रकम वसूलने के बावजूद रोगियों को सही चिकित्सा नहीं देते हैं। निजी चिकित्सालयों एवं नर्सिगहोम अर्ह चिकित्सक-कर्मचारियांे को मानकीय वेतन-भत्ते न देकर फर्जी कागजी खानापूर्ति करते है। सरकारी चिकित्सक सरकारी ड्यूटी से अनुपस्थित रहकर ‘प्राईवेट चिकित्सा’ में संलिप्त हैं। स्वास्थ्य केन्द्रों पर सुविधाओं का अभाव एवं दवा वितरण अमानक है। कर्मचारी नेतागीरी करते हैं। परिवार एवं मातृ शिशु कल्याण केन्द्र एव उपकेन्द्रों पर कार्यरत कर्मचारी धन उगाही तक सीमित रहते हैं। डाॅ.राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय 300 शैय्याओं का अस्पताल है एवं पुरूष, महिला, बाह्य, आन्तरिक विभाग, इमर्जेन्सी सामान्य एवं प्राइवेट पुरूष-महिला वार्ड हैं। इसमें चिकित्सकों के अनेक पद रिक्त हैं और कार्यरत अनेक चिकित्सक-कर्मचारी स्थानीय निवासी हैं और अधिकांश चिकित्सक व कर्मचारी निजी क्लीनिक-नर्सिंगहोम-दवाखानों में प्रक्टिस कर रहे हैं। सरकारी चिकित्सा उपेक्षा रोगियों की मृत्यु का कारण बनकर प्राइवेट चिकित्सा प्रोत्साहित कर रही है। कै.कौशलेन्द्र चिकित्सालय अव्यवस्थित होकर मरीजों का दवा वितरण कार्य चैकीदार के हवाले है। टी.बी.अस्पताल की सेवाएँ संतोष जनक नहीं हैं। ज्यादातर कर्मचारी स्थानीय एवं मशीनें पुरानी और खराब हैं। दवा-एक्सरे हेतु रोगी परेशान होते हैं। आयुर्वेदिक और मेडिकल कालेज शिक्षक एव शिक्षण हीन तथा अमानक प्रबन्धतन्त्र व्यक्ति विशेष के परिजनों की निजी आय तक सीमित है। निजी-चिकित्सालय अध्ययन से विमुक्त रहे लोगों द्वारा संचालित हो रहे हैं। इनकी अमान्य डिग्रियाँ से संचालित चिकित्सा की जाँच इनको स्वयं मरीज बनाती है। इनका इलाज आयुर्वेद के स्थान पर एलोपैथी एवं दवायें एम. आर. के प्रचार-प्रसार पर आधारित रहती है और मर्ज बढ़ाकर रोगियों को बाहर भेज दलाली लेते हैं। नर्सिग-होम चिकित्सकों के आवास या प्लाट पर बनाए हुए हैं। इनके कर्मचारी अप्रशिक्षित, अयोग्य, दलाल घरेलू नौकर हैं तथा इनके कर्मचारियों का वेतन कमीशन पर आधारित होता है। यह रेट-लिस्ट छुपाकर रोगियों से मनमानी धन उगाही कर रहे है। दवाखाना अस्पताल और नर्सिग होम स्वयं के व फार्मासिस्ट विहीन हैं। इनके कर्मचारी अनर्ह, अयोग्य एवं लाइसेंस किराए के हैं।

जनपद के रेलवे स्टेशन, प्राइमरी स्कूलों, कालेजों, चिकित्सालयों, बस-अड्डों, बैंकों, गल्ले की दूकानों, डाकघरों, पंचायतघरों यहाँ तक की जिला मुख्यालयों के प्रमुख कार्यालयों में जहाँ पर बड़ी की संख्या में जनता की भीड प्रतिदिन एकत्रित होती है, शुद्ध पेय जल का पूर्णतया अभाव है। यहाँ पर सार्वजनिक जलापूर्ति के नल एवं टैंक खराब एवं कीटाणुयुक्त हैं। सार्वजनिक हैण्डपम्पों के पास गंदगी से प्रदूषित जल का सेवन दरिद्रों की मजबूरी हो गई है। अधिकांश सरकारी हैण्डपम्पस में रहीसों ने समरसेबिल लगाए हैं। अनेक हैण्ड पम्प रिबार के नाम पर उखाड़ कर बेंच लिए गए हैं। जिससे सामान्यजनों के लिए जलाभाव है। गंगाजल को प्रदूषित करने में नगर के गन्दे-सीवर नालों का जल, औद्योगिक कारखानों का गन्दगी, सामूहिक स्नान, मल विसर्जन आदि प्रमूख भूमिका निभा रहे हैं जिसके कारण गंगाजल की गुणवŸाा नष्ट होकर जन-जीवन के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध हो रहा है।

व्यक्ति धार्मिक पाखण्डों के मकड़जाल में फंसे हुए है। देव-स्थलों पर रखे पत्थर (प्रतिमाएँ) इनकेे लिए पूज्यनीय हैं। धार्मिक प्रवचन से वशीभूत मानव कुर्बान होते हैं। जेहाद के नाम पर नरसंहार होता है। कर्मकाण्डों में जीव बलि दी जाती है। पाखण्डी स्वयंभू ईश्वर के रूप में प्रतिष्ठित होकर भोग विलास में लिप्त हो रहे हैं। इनके तांडव नृत्य से साम्प्रदायिक स्वरूप देकर देश, समाज, व्यक्ति एवं व्यवस्थाओं को हिंसात्मक चिता में झोंका जाता है।

जब व्यक्ति के पास शक्ति या सम्पत्ति होती है तब समाज के राजनीतिज्ञ चालबाज व्यक्ति को वसीभूत करने के लिए लुभावने शब्दों के ढ़ोंग रचते है। उसे महिमा मंडित कर उसका गुणगान करते हैं। प्रवचन करते हैं। पैरों पर अपना सिर रख एवं पैर पकड़ कर मत की भीख माँगते हैं। लोक लुभावने नाटक- लीलाएँ कर मतदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। शंका होने पर डाकू-गुर्गों से चोरी, लूट, डकैती, अपहरण एवं नरसंहार की घटनाओं को अंजाम देने से नहीं चूकते हैं। फर्जी-अमानक एन.जी.ओ बनाकर सरकारी और असहाय जनता की भूमि, भवन, सम्पत्ति, चरागाह, स्कूल, कालेजों पर जबरदस्त कब्जा कर लेते हैं।
लोग नेतृत्त्व के लिए तरह-तरह का दिखावा करते हैं। कोई अपने को समाजसेवी कहता है, कोई पर्चा-बैनर छपवाता है, कोई रैलियों के मंच पर चढ़कर दहाड़ता है, कोई जनता के चरणों पर अपना सिर रखकर समर्थन की भीख माँगता है, कोई गरीब जनों के घर में घुसकर नमक-रोटी माँग कर खाता है और दरिद्र बच्चों को गोद में लेकर दुलारने लगता है। परन्तु ऐसा करने वाले लोग वास्तव में वास्तव सामाजिक कार्यों में रूचि नहीं रखने वाले लोग होते हैं और न ही अपने से अधिक किसी अन्य का आदर बर्दास्त कर सकते हैं, बल्कि जनसेवा की दुहाई देकर एवं अपनी नेम-प्लेट्स में जनसेवक शब्द लिखकर एवं पार्टी झंडा-बैनर लगाकर लग्जरी गाड़ियों में बैठ पुलिस-अधिकारियों पर जबरदस्त दबाव बनाकर सरकारी जन कल्याणकारी योजनाओं का धन हड़प बंदर-बांट एवं तस्करी व्यापार संचालित करते हैं। इनकी वास्तविक आय के स्रोत अति दयनीय होने के बावजूद इनके पास अकूत धन-सम्पदा पाई जाती है। चुनाव काल में अपनी काली कमाई का कालाधन चुनाव में वोट खरीदनें के लिए प्रयोग करते हैं। चुनाव एजेण्ट एवं जाति विशेष के लोगों को शराब, खाना, उपहार, धन बाँटते हैं, तरह-तरह के प्रलोभन, वादे एवं घोषणाएँ करते हैं। खूंखार डकैतों और गिरोहबन्द माफियाओं को धन देकर विवादित लोगों के बीच संगीन घटनाओं को अंजाम देकर, विवादित लोगों को फंसाते हैं। बिरादरी को भड़काकर जलूस निकालकर दबाव बनाते हैं और संप्रदायिकता की समस्या उत्पन्न करके आपसी भाईचारा समाप्त कर देते हैं। चुनाव में खाना पैकट, धन, दहशत के प्रभाव से तथा रिश्तेदार एवं भाड़े के अपराधियों को एकत्रित कर फर्जी मतदान कराते हैं।
चुनाव परिणाम के उपरान्त असफल प्रत्याशी अगले चुनाव तक क्षेत्र से पलायन कर जाते हैं। चुनाव में सफल व्यक्ति राजधानी व नगरों में मकान खरीदते हैं और जब सरकारी योजनाओं का धन क्षेत्र को आवंटित होता है तो उस धन का बन्दरबाँट करने, कागजी खानापूर्ति एवं अपने लोगों में प्रभाव बनाए रखने के उद्देश्य से यदा-कदा क्षेत्र में घूमा-फिरी करते है। इन प्रवासों में अपने विरोधियों को लड़वाने एवं लुटवाने का षड़यन्त्र रचते हैं तथा पुलिस दलाली कर जबरदस्त अवैध धन उगाही करते हैं। सदन कार्यवाही में दबाव बनाकर अपना मोलभाव कर पद एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करते हैं। व्यापारियों एवं पेशेवर अपराधियों को सुरक्षा गारण्टी का अश्वासन देकर उनसे मोटी रकम एवं सुविधाएँ वसूलते है।

जिले की आपराधिक घटनाओं का अवलोकन करने पर पता चलता है कि अधिकांश घटनाएँ क्षेत्रों की राजनीति से जुड़े दबंगों और संगठित अपराधियों द्वारा घटित की जाती हैं। यह संगठित अपराधी पुलिस और प्रशासन से सांठ-गांठ कर योजनाबद्ध ढंग से घटनाओं को अंजाम देते रहते है। इन आपराधिक घटनाओं में उन्हीं लोगों को शिकार बनाया जाता है जो सीधे और सरल स्वभाव के बाल, वृद्ध, गृहस्थ नर-नारी होते हैं। इन व्यक्तियों पर डाकू, लुटेरे, ठग और उनके गुर्गे तरह-तरह के प्रपंचों से अपना प्रभाव जमाते हैं। समाज के हितैषी बनने का ढ़ोंग करते हैं। व्यक्तियों की निकटता पाकर उनके परिवार की जासूसी करते हैं। परिजनों को नगरों की सैर और तीर्थ-भ्रमण कराते हैं। परिवार में विवाद कराकर उनके आपसी सम्बन्ध विच्छेद कराते हैं। उनकी सम्पत्ति को विवादित कराकर अपने संरक्षण में लेने की कानूनी प्रक्रिया सम्पन्न्ा कराते हैं। राजनेताओं, अधिकारियों तथा कुख्यात लोगों के संपर्क से भय और दहशत उत्पन्न्ा कर लोगों के मन-मस्तिष्क पर अपना जबरदस्त प्रभाव बनाते हैं। इस प्रकार लोगों की अपने ऊपर पूर्ण निर्भरता और मानसिक दासता पाकर उनकी सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति का हरण कर लेते हैं। घटनाओं की चर्चा या विरोध या मुकदमा करने वाले व्यक्तियों का दबंग-अपराधियों द्वारा अपहरण कर लिया जाता है। उनकी माँ, बहिन, बेटी और पत्नी को अपनी हवस का शिकार बनाकर धन-सम्पत्ति लूट ली जाती है। वादी के सहयोगी और गवाहों की हत्या कर दी जाती है। घटित हो रही घटना की सूचना मिलने पर पुलिस मौका बारदात जाने से बचती है। डाकू-लुटेरे घटना को अंजाम देने के बाद गाँव-नगर के बाहर जाकर ‘इधर गए, उधर गए’ कहकर शोर मचाते हैं। जिससे लोग एकत्रित होते हैं और बदमाशों की खोज का नाटक होता हैं। पुलिस के समक्ष पीड़ित पक्ष के आक्रोश पर पुलिस के लोग ऊल-जलूल तर्क देकर निर्धारित पुलिस कार्यवाही की उपेक्षा कर अपराधियों को बचाने का प्रयास करते हैं। अधिकारियों और न्यायालय के आदेशों पर कानूनी कार्यवाही उपरान्त मामलों में ’एफ.आर.’ लगाकर कार्यवाही समाप्त कर दी जाती है। यदि पीड़ित की ओर से कोई मुकदमा पैरवी की जाती है तो संगठित दबंग अपराधी और पुलिस के लोग बौखलाकर वादी को धमकाकर-मारपीट तथा अमानुषिक उत्पीडन कर फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में डलवा देते हैं। न्यायालय सुनवाई के दौरान अपराध स्वीकार कराने हेतु दबाव डाला जाता है तथा अपराध स्वीकार न करने पर झूठी गवाही देकर सजा करवा दी जाती है।

जब पीडित पक्ष अपनी बात न्यायालय में प्रस्तुत करता है तो न्यायालय में जिस प्रकार की न्यायिक कार्यवाही होती है वह किसी भी प्रकार ‘नैसर्गिक न्याय सिद्धांत’ के अनुरूप नहीं होती है। न्यायालय में बैठे पेशकार और पैरोकार पक्षकारों से न्यायालय में ही धन लेकर तारीख पर तारीख लगाते रहते हैं। यदि पक्षकार पैसा देने से बचता है तो पूरे दिन न्यायालय के बाहर बैठाकर देर शाम बिना उचित कारण मामले में ‘स्थगन’ देकर तारीख लगा दी जाती है या पक्षकार को अनुपस्थिति दिखाकर बारण्ट जारी करवा दिया जाता है और अभियुक्त बनाकर जेल में डाल दिया जाता है।

जनपद में जिला पंचायत के अध्यक्ष का पद हरिजन महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया। इससे प्रभावशाली सामाजिक वर्ग के अंह को ठेस लगी तो उन्होंने रास्ता खोज ही लिया। एक गैरजनपदीय निवासी जो फर्जी निवास पते के बल पर बी.डी.सी. चुनाव जीतकर भय एवं दहशत के बल पर ब्लाक प्रमुख भी बना है, ने अपने घर की नौकर की पत्नी दलित महिला को अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़वा दिया। चुनाव जीत जाने के बाद अध्यक्ष की मुहर, दस्तावेज, वाहन से लेकर अध्यक्ष के आसन तक सब कुछ दबंग- यादव के नियन्त्रण में है। इस प्रकार जनपद की ग्राम सभाओं की प्रधान बनी महिलाओं के प्रधान की मुहर, दस्तावेज, बैंक खातों का संचालन उनके पति के नियन्त्रण में है। ग्राम प्रधान बने अधिकांश व्यक्ति नगर निवासी होने के बावजूद फर्जी ढंग से निवास-बोट बनवाकर धन-दबंगई के प्रभाव में चुनाव जीते हैं और ग्राम विकास योजनाओं का धन हड़प रहे हैं। जनपद के ब्लाक प्रमुख एवं नगर अध्यक्ष पदों पर आसीन व्यक्तियों की वास्तविक स्थिति का आकलन सामान्य व्यक्ति की क्षमता से परे है, जो कि सी. बी. आई. द्वारा सम्भव है। यह लोग सरकारी विकास निधियाँ अपने व्यक्तिगत कार्यों में व्यय कर रहे हैं।

सार्वजनिक एवं संवैधानिक पदों पर वी.आई.पी.के सगे-सम्बन्धियों व आपसी हितबद्ध लोगों को पदासीन किया जा रहा हैं। जिससे ऐसा लगता है कि राजनीतिक दलों के प्रमुखों और नौकरशाहों को सार्वजनिक एवं संवैधानिक पदों पर कार्य करने के लिए अपने परिजनों, सगे-सम्बन्धियों और गुगों के अतिरिक्त सभी भारतीय सामान्यजन पूर्णतया अयोग्य हैं। राजनीतिज्ञों की स्वार्थता-धृतराष्ट्रता के कारण अनेक पदों पर उनके सगे-सम्बन्धी मात्र ही पात्र बनकर पदासीन हो रहे हैं। ऐसी पदासीनता का प्रस्ताव व समर्थन ठीक उसी तरह दिख रहा है जैसे किसी किन्न्ार नरेश के बन्दीजनों के द्वारा किया जाने वाला गुणगान।
विकास के लिए पंच-वर्षीय योजनाएँ संचालित हैं। जिनके क्रियान्वयन एवं नियमित निगरानी हेतु स्तरीय अधिकारियों-कर्मचारियों के पद-उत्तरदायित्व निर्धारित हैे। कल्याणकारी योजनाओं के लाभ की पात्रता एवं आवेदन की स्वीकृत एवं धन आवंटन की औपचारिक प्रक्रिया निर्धारित है। इसके बावजूद दरिद्रों की उपेक्षा एवं रहीसों को दरिद्र योजनाओं के लाभ का आबंटन-समर्थन व रहीस-लुटेरों का फर्जीबाड़ा संगठित संगीन अपराध हो रहा है।

‘जनसामान्य’ के लिए बनी राष्ट्रीय विकास की योजनाओं एवं उनके क्रियान्वयन के अवलोकन के परिणामस्वरूप कहा जा सकता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत साधारण के लिए बनी विकास योजनाओं का धन स्वार्थी, विध्ववंशक, नाशक, ठगों, रहीसों और संगठित अपराधियों की सुख-सुविधाओं तथा काली कमाई बन गए हैं। इस सम्बन्ध में निरीक्षण तथ्य यह बताते हैं कि दरिद्र, असहाय, निरीह, पीड़ित, दुःखी, वृद्ध, बीमारी ग्रसित लोगों की पुकार सुनने वाला कोई नहीं हैं और यदि कोई दरिद्रों की मद्द करने की चेष्टा भी करता है तो संगठित अपराधी उसे समूल नष्ट करने में कोई कसर बांकी नहीं रखते हैं।
सुझावः-दरिद्रों के लिए शासन द्वारा संचालित योजनाओं के आबंटनों में व्याप्त अनियमितताओं पर अंकुश लगना चाहिए। रहीसों की फर्जीबाडे़ तथा योजनाओं के लाभ की खरीद-फरोख्त पर तत्काल अंकुश लगना चाहिए। ग्रामों एवं नगरों के अध्यक्षों, सचिवों, लेखपालों, सम्बन्धित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कागजी खानापूर्ति के फर्जीबाड़ों से सरकारी योजनाओं के धन के बंदर-बांट पर तत्काल अंकुश लगना चाहिए। दरिद्र कल्याण हेतु बनी योजनाओं का लाभ वास्तविक दरिद्रों को और फर्जी दरिद्रों का दंडित किया जाना चाहिए।

डाॅ.नीतू सिंह तोमर,

एम.ए.,पी-एच.डी.(समाजशास्त्र),

पोस्ट डाॅक्टोरल फेलो,

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002