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3000 वर्ष प्राचीन पद्धति से बिना साइड इफ़ेक्ट होगा उपचार: डॉ0 शिव शंकर त्रिपाठी

प्राचीन अग्निकर्म चिकित्सा पद्धति पर केन्द्रित विशेष चिकित्सा शिविर में 103 रोगियों का हुआ इलाज

लखनऊ: आयुर्वेद एवं यूनानी विकास अभियान, क्षेत्र- लखनऊ के अंतर्गत शुक्रवार को जन सामान्य के लाभ हेतु राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, हरचंदपुर-गढ़ी कनौरा में आयुर्वेदीय निदान एवं विशेष चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया I शिविर का शुभारम्भ क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डॉ0 शिव शंकर त्रिपाठी ने आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि का माल्यार्पण करके किया I इस शिविर में कुल 103 रोगियों की चिकित्सा के साथ साथ नि:शुल्क औषधियों का भी वितरण किया गया I चूँकि यह शिविर आयुर्वेद की 3000 वर्ष प्राचीन अग्निकर्म चिकित्सा पद्धति पर केन्द्रित था अत: वातव्याधि (जोड़ो के दर्द, कमर दर्द तथा गर्दन के दर्द) के मरीज की संख्या सबसे अधिक रही I शहर के हर कोने से वातव्याधि मे मरीजों ने इसका लाभ लिया I गढ़ी कनौरा के चिकित्सक व अग्निकर्म विशेषज्ञ डॉ0 सुदीप वर्मा के अलावा डॉ0 राकेश वर्मा तथा वरिष्ठ महिला चिकित्साधिकारी डॉ0 पुष्पा श्रीवास्तव ने मरीजो की चिकित्सा की I

डॉ0 सुदीप वर्मा ने बताया कि सुश्रुत संहिता में वर्णित इस चिकित्सा पद्धति में अग्नि अर्थात ताप या ऊष्मा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोगी के रोगग्रस्त हिस्से जैसे त्वचा, मांसपेशी, अस्थि, संधि, स्नायु पर शलाका यन्त्र के माध्यम से प्रयोग किया जाता है I इस चिकित्सा प्रक्रिया से ना सिर्फ पीड़ा से मुक्ति मिलती है बल्कि जोड़ो व रीढ़ की विकृति भी समाप्त होने की सम्भावना होती है I

लखनऊ के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवम यूनानी अधिकारी डॉ0 शिव शंकर त्रिपाठी ने बताया कि पिछले दो दशको में मांसपेशियों व जोड़ो के दर्द से जुडी बीमारियों में इजाफा हुआ है I इसका प्रमुख कारण तनावपूर्ण जीवनशैली, गलत रहन सहन व खान पान, शारीरिक श्रम में कमी, मोटापा, प्रदूषण, लैपटॉप का अधिक समय तक संचालन है I

डॉ0 त्रिपाठी ने बताया कि अग्निकर्म प्रक्रिया को वात-कफ जनित रोगों पर विशेषरूप से प्रयोग किया जाता है I ये प्रक्रिया वात जनित तीव्र शूल को ऊष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, व्यवायी, विकासी गुणों से समाप्त कर देती है I इस पद्धति का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता तथा अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में अत्यंत सस्ता इलाज है I

अग्निकर्म चिकित्सा क्या है :-

अग्निकर्म आयुर्वेद की विशिष्ट प्रकार की चिकित्सा पद्धति है I जिसका वर्णन आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथो जैसे कि सुश्रुत संहिता और अष्टांगह्रदय में किया गया है I अग्निकर्म जोड़ो के दर्द जैसे कि घुटना, कमर, गर्दन के दर्द, मांसपेशियों के दर्द, संधिवात, सियाटिका, फ्रोजेन शोल्डर, टेनिस एल्बो, एड़ी के दर्द जैसे रोगों में अत्यंत जल्द असर करने वाली चिकित्सा पद्धति है I

अनुभवी डॉक्टर (वैद्य) के द्वारा रोगी के रोग, उसकी प्रकृति, रोग के स्थान, उसके प्रकार इत्यादि की वैज्ञानिक पद्धति से जाँच एवम निदान करके निर्धारित बिंदु पर विशिष्ट प्रकार के साधन जिसको अग्निकर्म शलाका कहा जाता है, उसको योग्य गर्मी से गर्म करके वहाँ पर स्पर्श किया जाता है I उसके बाद उस बिंदु पर विशेष मलहम लगाया जाता है I जिससे वहाँ तुरंत ही ठंडक का एहसास होता है और जलन बंद हो जाती है I इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती I रोगी को चिकित्सालय में भर्ती होने की भी जरूरत नहीं पड़ती I अग्निकर्म चिकित्सा के पश्चात रोगी तुरंत घर जा सकता है I

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