नई दिल्ली: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को इस साल का अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। रघुराम राजन का नाम क्लैरीवेट एनालायटिक्स नाम की संस्था ने नोबेले विजेता के संभावित लोगों की सूची में रघुराम राजन का नाम रखा है। नोबेल पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा सोमवार (9 अक्टूबर) को स्टॉकहोम में की जाएगी। क्लैरीवेट एनालायटिक्स पहले थॉमसन रायटर से जुड़ी एक संस्था थी। ये संस्था ऐकैडेमिक और साइंटिफिक रिसर्च करती है। नोबेल पुरस्कार की औपचारिक घोषणा से पहले संभावितों के नाम का ऐलान करती है। इसके लिए क्लैरीवेट रिसर्च उद्धरणों की सहायता लेती है। अर्थशास्त्र के 6 संभावित नोबेल विजेताओं के नाम की घोषणा करते हुए क्लैरीवेट एनालायटिक्स ने कहा कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में इन लोगों के रिसर्च महत्व और उपयोगिता की दृष्टि से नोबेल की श्रेणी के हैं। लगभग एक साल पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर की नौकरी छोड़ने वाले रघुराम राजन इस वक्त यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बूथ बिजनेस स्कूल में फाइनेंस के प्रोफसर हैं।

रघुराम राजन ने नरेन्द्र मोदी के बहुचर्चित फैसले नोटबंदी का विरोध किया था। आरबीआई गवर्नर का पद छोड़ने के ठीक एक साल बाद रघुराम राजन ने अपनी किताब ‘आई डू व्हाट आई डू’ में नोटबंदी पर खुलकर लिखा। रघुराम राजन ने लिखा कि, ‘काले धन के खात्मे के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाया गया नोटबंदी के फैसले का लंबे समय में फायदा तो हो सकता है लेकिन इससे तुरंत होने वाला नुकसान इस फायदे को खत्म कर देगा।’ राजन ने लिखा, ‘मुझसे नोटबंदी पर मौखिक रूप से फरवरी 2016 में मेरे विचार पूछे गये, मैंने मौखिक जवाब ही दिया, यद्यपि लंबे समय में सरकार को इससे कुछ फायदे हो सकते हैं, मुझे लगा कि इससे छोटे वक्त में होने वाले आर्थिक नुकसान इन फायदों से ज्यादा गंभीर होंगे, मुझे ये भी लगा कि नोटबंदी के मुख्य उद्देश्य को हासिल करने के लिए कुछ भी बेहतर विकल्प उपलब्ध थे।’

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को एक हजार और पांच सौ रुपये के नोट को बंद कर दिया था। सरकार के इस फैसला का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक असर पड़ा है। रघुराम राजन दुनिया के वो अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2008 की मंदी का पहले से ही अंदाजा लगा लिया था। हाउसिंग सेक्टर में लोन भुगतान को शुरू हुए इस आर्थिक संकट की वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था मंदी के गहरे दौर में चली गई थी। इसके बाद दुनिया भर में आर्थिक सुस्ती का दौर शुरू हो गया था।