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भारत छोड़ो दिवस पर विज्ञानियों का अज्ञान, अशिक्षा को भारत छोड़ने का सन्देश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में लखनऊ के अनेक संस्थानों के वर्तमान तथा अवकाशप्राप्त विज्ञानियों के साथ अनेक संस्थानों के विद्यार्थियों ने विज्ञान के लिए और अधिक समर्थ का आह्वान किया. सम्मानित वरिष्ठ विज्ञानी तथा केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक पद्मश्री डॉ नित्य आनंद, जिन्होंने इस के लिए अपील की थी, ने चर्चा आरम्भ करते हुए कहा कि स्वाधीनता के बाद भारत में विज्ञान प्रौद्योगिकी की प्रगति के कारण ही आज जीवन की अवधि इतनी बड़ी है तथा हमे बहुत से रोगों से मुक्ति मिल पाई है. यदि हम इस बात को समझ लेंगे तो सहज ही विज्ञान को और अधिक समर्थन देना आरम्भ कर देंगे. उन्होने कहा कि विज्ञान घटनाओं को कारण-प्रभाव के ढाँचे में समझा कर हमें प्रकृति पर बेहतर नियंत्रण में सक्षम करता है. तभी हम इस को प्रौद्योगिकी में तब्दील कर पाते हैं. विज्ञान एवं शिक्षा के लिए आवंटित धनराशि नहीं बढ़ाएंगे तो दूरगामी परिणाम होंगे. पर्यावरण हेतु पेरिस समझौते पर भारत की नीति की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने दिखा दिया है कि भारत पर्यावरण के लिए संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने जोड़ा कि समाज को विज्ञान के महत्त्व के प्रति जागरूक करना समाज के ही हित में है. स्वागत सम्बोधन में जे पी मौर्या ने कहा कि यह कार्यक्रम अज्ञान एवं अज्ञानता के विरुद्ध है तथा विज्ञान के समर्थन में है.

राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान सन्सथान के पूर्व विज्ञानी डॉ जे के जौहरी ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों को अपनी प्रयोगशाला की पारी समाप्त हो जाने पर शांत नहीं बैठना चाहिए अपितु समाज में शिक्षा से वंचित लोगों को शिक्षित करने, अंधविश्वास और अफवाहों को के विरुद्ध और स्वच्छता अभियान से जुड़ कर अपना योगदान देना जारी रखना चाहिए. इसी संस्था के पूर्व विज्ञानी डॉ निखिल कुमार ने पान का उदाहरण देते हुए कहा कि यह हमारे परंपरागत भोजन का भाग रहा है. पर केवल परंपरागत होने से यह बुरा नहीं हो जाता। उस समय बाहर भिन्न जलवायु के क्षेत्र से ला कर इसको यहां उगाना भी एक उपलब्धि थी.

केंद्रीय औषध अनुसंधान संस्थान की समाना हबीब ने भारतीय संविधान का सन्दर्भ देते हुए कहा कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है तथा इस ही से हमारा सामजिक ताना-बाना बच पाएगा. उन्होंने सूर्य ग्रहण के सीधे प्रसारण का उदाहरण देते हुए कहा कि इसने १९९५ में बहुत लोगों के मन से इससे होने वाली हानि की आशंका को हटाया. बच्चों को प्रश्न पूछने के लिए उत्साहित करना आवश्यक है क्योंकि बिना प्रश्न के उत्तर नहीं मिल सकते. विज्ञान इसी पर आगे बढ़ता है.

कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए विज्ञानी सी एम नौटियाल ने कहा कि हमारा परंपरागत ज्ञान अपार है और इसमें से बहुत सा ज्ञान आज भी उपयोगी है जिसके अध्ययन की आवश्यकता है परन्तु यह सावधानी से तथा व्यवस्थित रूप से होना चाहिए. इतिहास साक्षी है कि बिना विज्ञान के कोई सभ्यता आगे नहीं बढ़ पाई इस लिए विज्ञान के लिए अधिक समर्थन अनिवार्य है. उन्होंने १९९५ के पूर्ण सूर्यग्रहण के सीधे टेलीविजन प्रसारण तथा कुछ वर्षों बाद मुचनोचवा आतंक को समाप्त करने के अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वैज्ञानिक सोच का महत्त्व विज्ञान से काम नहीं आंका जाना चाहिए.

कार्यक्रम के अंत में डॉ नित्य आनंद ने सभी उपस्थित विज्ञानियों, विद्यार्थियों एवं अन्य लोगों को वैज्ञानिक सोच रखने, सत्यनिष्ठा एवं विज्ञान तथा पर्यावरण के हित में काम करने की शपथ दिलाई. सुप्रतिष्ठित दिवंगत विज्ञानी डॉ. बी एन धवन, प्रो. यू आर राव, प्रो. यश पाल एवं डॉ. पुष्प भार्गव की स्मृति में मौन रखा गया. सांकेतिक मार्च के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ.

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