खुल सकता है “नफरत फैलाने वाला भाषण देने” का मामला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ “नफरत फैलाने वाला भाषण देने” के मामले में जांच का आदेश न देने के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ताओं को अदालत ने दूसरी याचिका डालने की इजाजत दे दी है। सीएम आदित्यनाथ पर साल 2007 में गोरखपुर में “नफरत फैलाने वाला भाषण देने” का आरोप था लेकिन राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने सरकारी वकील का ये तर्क खारिज कर दिया कि मुख्य आरोपी राज्य का सीएम बन चुका है इसलिए अब उस पर केस नहीं चलाया जा सकता। अदालत ने यूपी सरकार के एडवोकेट जनरल को “महत्वपूर्ण और गंभीर मामले” में अदालत में न हाजिर रहने पर भी फटकार लगाई। पिछले हफ्ते हाई कोर्ट की पीठ ने कहा था कि “जनता को कोई राहत नहीं है वाली स्थिति” में नहीं छोड़ा जा सकता।

अदालत ने यूपी सरकार से पूछा था कि जब सरकार ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है तो याचिककर्ता के पास और क्या विकल्प रह जाता है। अप्रैल में राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल नियुक्ति किए गए वकील राघवेंद्र सिंह ने सोमवार को कहा कि मजिस्ट्रेट के पास इस बात का अधिकार नहीं है कि वो केंद्र या राज्य सरकार के मना करने के बावजूद मुकदमा चला सके। जबकि पिछले हफ्ते यूपी सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल और एकके मिश्रा ने हाई कोर्ट में जिरह में कहा था कि याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट में अपील करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जांच से संतुष्ट न होने पर मजिस्ट्रेट के सामने “प्रतिरोध याचिका” दायर कर सकते हैं। हाई कोर्ट ने सिंह और गोयल के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि “याचिकाकर्ताओं के पास कोई भी रास्ता नहीं है आप दोनों पहले फैसले कर लें कि आप लोग क्या कहना चाहते है आप लोग खुद ही एक राय नहीं हैं।”