**तारकेश्वर मिश्र

टेलीकाॅम कंपिनयों में छिड़ी प्राइस वार से ग्राहकों की बल्ले बल्ले हो रही है। इस सुखद खबर का जो दूसरा पक्ष है वो इतना सुखद नहीं है। लगभग सभी टेलीकाम कंपनियां ग्राहकों को तमाम सुविधाएं और सेवाएं देने में लचर साबित हो रही है। सबसे बड़ी शिकायत काॅल ड्राप और इंटरनेट स्पीड को लेकर है। काॅल ड्राप की समस्या तो देश में मोबाइल सेवाओं की शुरूआती दिनों की है। तकनीक में परिवर्तन और विकास के साथ काॅल ड्राप की समस्या कम तो हुई है बावजूद इसके समस्या पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में काॅल ड्राप की समस्या जस की तस बनी हुई है। समय बदलने के साथ पूर्णतया नई तकनीक व तंत्र अपनाने के बजाय पुरानी तकनीक को ही जोड़-जुगाड़ के जरिये अपग्रेड करने की टेलीकॉम कंपनियों की कोशिशों के कारण ही भारतीय ग्राहकों को कॉल ड्रॉप ही नहीं बल्कि कॉल फेल जैसी नेटवर्क और कनेक्टिविटी से जुड़ी अन्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है।

वर्तमान में देश की तमाम टेलीकॉम कंपनियों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है। यह है 4जी की रेस में खुद को सबसे बेहतर साबित करने की जंग। देश की लगभग सभी टेलीकॉम कंपनियों के दावे और प्रचार को देखें तो ऐसा लगता है कि ये सबसे तेज हैं। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। असल में स्पीड कम होती जाती है और कई बार तो 4जी की स्पीड 3जी से भी मात खाने लगती है। भारत में 4जी की स्थिति कैसी है, इस हकीकत को सामने लाने का काम किया है ओपन सिग्नल की रिपोर्ट ने। इसके मुताबिक भारत 4जी स्पीड के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है। खासकर डाउनलोडिंग स्पीड के लिहाज से जो सबसे ज्यादा जरूरी होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 4जी की एवरेज डाउनलोडिंग स्पीड सिर्फ 5.1 एमबीपीएस है। 3जी स्पीड की बात करें तो यहां की डाउनलोडिंग स्पीड 1 एमबीपीएस से भी कम है।

सबसे चिंताजनक स्थिति तो यह है कि कुछ 3जी यूजर्स के लिए डाउनलोडिंग स्पीड 10 केबीपीएस तक होती है। एवरेज डाउनलोड स्पीड 5.1 एमबीपीएस का मतलब यह भी है कि भारत की 4जी स्पीड दुनिया की एवरेज स्पीड से काफी कम है। वजह यह है कि ग्लोबल एवरेज 4जी डाउनलोड स्पीड 16.2 एमबीपीएस है। ग्लोबल रैंकिंग में भारत 74वें नंबर पर है जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका इससे ऊपर हैं।

4जी स्पीड में पहले नंबर पर सिंगापुर है जबकि 4जी उपलब्धता में साउथ कोरिया पहले नंबर पर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 75 देशों की सूची में भारत 74वें नंबर पर है और यह सिर्फ कोस्टारिका से ऊपर है। ओपन सिग्नल की रिपोर्ट के मुतबाकि, पिछले छह महीनों में भारत की डाउनलोडिंग स्पीड 1 एमबीपीएस से ज्यादा घटी है। ऐसा इसलिए क्योंकि रिलायंस जियो की फ्री सर्विस की वजह से यूजर्स की तादाद बढ़ी है। जियो की वजह से दूसरी टेलीकॉम कंपनियों ने भी प्लान सस्ते किये हैं। ऐसे में 4जी यूजर्स बढ़ गये और डिमांड ज्यादा होने पर स्पीड कम हो गयी।

जहां अभी भारत में 4जी नेटवर्क पूरी तरह से पैर भी नहीं पसार पाया है वहीं चीन ने अपने करीब 100 शहरों में 5ळ टेलीकम्युनिकेशंस इक्विपमेंट का ट्रायल शुरू कर दिया है। 5जी नेटवर्क 4जी से 20 गुना ज्यादा तेज होने वाला है। इस तरह अब चीन नेक्स्ट जेनरेशन के सेल्युलर फोन सिस्टम्स के मामले में बाकी देशों से आगे निकल सकता हैं। एक न्यूज एजेंसी के मुताबिक चीन मल्टीपल-एंटिना सिस्टम के साथ-साथ 5-जी टेक्नोलॉजी को यूजर फ्रेंडली बनाने के लिए काम कर रहा है। चीन की कोशिश है कि मोबाइल डाटा यूज करने की क्षमता को बढ़ाया जा सके। सब्सक्राइबर्स के मामले में चीन पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा टेलीकॉम मार्केट है। 5 जी नेटवर्क पर आपको 1 सेकेंड में 2 जीबी तक की स्पीड मिल सकेगी। इतना ही नहीं इस से मोबाइल ऐप्स के रिस्पॉन्स टाइम में भी कमी आएगी। अभी 4 जी नेटवर्क पर रिस्पॉन्स टाइम करीब करीब 10 सेकंड का होता है जो कि 5 जी पर 1 मिली सेकेंड या उससे भी कम का रह जाएगा। आसान शब्दों में 5जी नेटवर्क पर एक जीबी की फाइल को आप 1 सेकंड में डाउनलोड कर सकेंगे। चीन घोषणा कर चुका है कि 2020 तक वह देश में 5ळ नेटवर्क सर्विस लॉन्च कर देगा।

हाल ही में टेलिकॉम सेक्रेटरी जेएस दीपक ने कहा था कि दुनिया में 5ळ टेक्नोलॉजी आने के साथ ही भारत में भी यह तकनीक आ जाएगी। इसमें 3जी और 4जी जैसी देरी नहीं होने की बात कही गयी है। बताते चले कि दुनिया में 2जी टेक्नोलॉजी आने के 25 साल बाद यह तकनीक भारत में आई थी। इसी तरह 3जी 10 साल बाद और 4जी 5 साल की देरी से भारत में आया। फिलहाल दुनिया में सबसे तेज इंटरनेट कोरिया में देखने को मिलता है। चीन के अलावा यहां 5जी की सबसे पहले शुरुआत होने की उम्मीद है। इसके अलावा अमेरिका का वेरिजोन वायरलेस भी 5जी नेटवर्क की टेस्टिंग अगले साल से शुरू करने वाली है।

एक अध्ययन के मुताबिक 60 फीसद मोबाइल ग्राहक नेटवर्क व कनेक्टिविटी की किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें कॉल ड्रॉप के अलावा खराब वॉइस क्वालिटी, आवाज फटना या कट-कट कर आना, घरों या इमारतों के भीतर धीमी आवाज तथा रोमिंग के वक्त इंटरनेट कनेक्ट न होना शामिल है। यदि आप ट्रेन में चल रहे हैं अथवा आपकी फ्लाइट ने तुरंत लैंड किया है तो काल कनेक्ट नहीं होती या इसमें वक्त लगता है। ऊंची इमारतों, घनी बस्तियों या सुदूर इलाकों में रहने वाले लोग इन समस्याओं से सर्वाधिक त्रस्त हैं। गुड़गांव के कई कांप्लेक्सों में आज भी मोबाइल सिग्नल गायब रहते हैं।

टेलीकॉम कंपनियां इसका सबसे बड़ा कारण स्पेक्ट्रम की कमी बताते हैं। भारतीय टेलीकॉम आपरेटरों के पास उतना स्पेक्ट्रम नहीं है, जितना दूसरे देशों की कंपनियों के पास है। उदाहरण के लिए सिंगापुर और दिल्ली में सबसे प्रमुख टेलीकाम ऑपरेटर के पास लगभग एक समान मोबाइल ग्राहक होने के बावजूद दिल्ली की कंपनी के पास सिंगापुर की कंपनी के मुकाबले केवल 20 प्रतिशत स्पेक्ट्रम है। अत्यधिक कीमत के चलते मोबाइल कंपनियां उपलब्ध स्पेक्ट्रम की भी पर्याप्त खरीद नहीं करती हैं। आज तक यहां किसी भी आपरेटर के पास 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम नहीं है। जबकि कनेक्टिविटी के लिहाज से इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

दूसरी समस्या टावरों की है। शुरू में मोबाइल कंपनियों ने तेजी से टावर लगाए थे। लेकिन बाद में जब स्वास्थ्य संगठनों ने रेडिएशन का शोर मचाया, अनेक जगहों से टावर हटवा दिए गए। इससे एक समय तो कॉल ड्रॉप और कनेक्टविटी का स्तर एकदम रसातल पर चला गया था। फिर जब कॉल ड्रॉप को लेकर हल्ला शुरू हुआ और सरकार के दबाव में कंपनियों ने नई जगहों पर टावर लगाए तो पहले जैसी बात नहीं बनी क्योंकि तब तक ग्राहकों, इमारतों के विस्तार के साथ-साथ मोबाइल तकनीक बदल चुकी थी। फिर जिन नए स्थानों पर टावर लगाए गए, उनसे पुरानी स्थान ठीक से कनेक्ट नहीं हो पाये हैं।

टेलीकाम कंपनियों का कहना है कि वे इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाने को तैयार हैं। मगर उनकी आमदनी में वांछित बढ़ोतरी नहीं हो रही है। हालत यह है कि एक अरब से यादा मोबाइल ग्राहकों के बावजूद यादातर ग्राहक सौ-डेढ़ सौ रुपये जैसी छोटी राशि हर महीने खर्च करते हैं। यह विश्व में सबसे कम हैं जो इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध है, उसका भी ग्राहक ठीक से इस्तेमाल नहीं करते। नेटवर्क व्यस्त होने के बावजूद इंतजार करने के बजाय लगातार डायल करते रहते हैं। इससे नेटवर्क पर दबाव पड़ता है।

भारतीय टेलीकॉम ऑपरेटर 850 से लेकर 900, 1800, 2100 और 2300 मेगाहट्र्ज के स्पेक्ट्रम से काम चला रहे हैं। इनमें भी बहुत कम स्पेक्ट्रम का उपयोग जीएसएम तकनीक के लिए हो रहा हैं। बाकी यादातर सीडीएमए, सीडीएमए-वन, सीडीएमए 2000, यूएमटीएस, एचएसपीए, एलटीई, एलटीए-ए, टीडी-एलटीए, ईवीडीओ, वाइमैक्स तथा एचएसडीपीए या इन सबकी सम्मिलित तकनीक पर निर्भर हैं जो 2जी व 3जी तथा कुछ हद तक 4जी को सपोर्ट करती हैं। जिन ऑपरेटरों ने 2जी से शुरुआत की थी उन्होंने बाद में 3जी और फिर 4जी के लिए नया तंत्र स्थापित करने के बजाय सस्ती जुगाड़ तकनीकों को पुरानी तकनीक के साथ जोड़ा है। कई ऑपरेटर एलटीए तकनीक को 4जी कहकर बेच रहे हैं। मोबाइल ग्राहकों को सस्ते में काॅल और डेटा के तोहफे तो सही हैं लेकिन टेलीकाम कंपनियों को काॅल ड्राप, इंटरनेट स्पीड और तमाम दूसरी सेवाओं में सुधार करना होगा।

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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