लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे को ‘पालिटिकल स्टंट’ और ‘इमोशनल ड्रामा’ बताया। श्री त्रिपाठी ने कहा कि मायावती जी हर बात में दलित एंगल तलाश कर जातीय राजनीति के अवसर तलाशती रही हैं लेकिन जनता ने 2014 के आम चुनावों में और 2017 के विधानसभा चुनावों में पूरी तरह से खारिज कर दिया, मायावती जी अब तक इस हार को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। चुनाव परिणामों की हताशा ईवीएम पर थोपने के बाद चुनाव आयोग की चुनौती को स्वीकारने का साहस नहीं जुटा पायीं। बेहतर होगा कि या तो मायावती जी अब जातीय राजनीति से तौबा करें या सन्यास की घोषणा करें।

श्री त्रिपाठी ने कहा दलित की बेटी का दावा करने वाली मायावती जी को दो बार भाजपा ने मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया लेकिन दौलत की चाह ने उनकी छवि दौलत की बेटी बना दी। बसपा छोड़कर आए कई नेताओं ने टिकट बेचने के गंभीर आरोप लगाए। मायावती जी सहारनपुर के जिस मसले को सदन में उठाना चाहती थीं वहां उनके जाने के बाद ही हिंसा और भड़क गयी थी।

मायावती जी ने सदन की पीठ का अपमान किया और लोक तांत्रिक मर्यादाओं का भी उल्लंघन किया। मायावती जी के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न की गंभीर घटनाएं हुई। पूर्ववर्ती सपा शासन में पूरे देश में उ0प्र0 में सर्वाधिक दलित उत्पीड़न के अपराध हुए। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2014 में पूरे देश में 17 फीसदी दलित उत्पीड़न की घटनाएं उ0प्र0 में हुई। 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 18.6 फीसदी हुआ। दलित महिला उत्पीड़न की सर्वाधिक घटनाएं भी अखिलेश राज में हुई लेकिन तब मायावती जी अखिलेश यादव से राजनीतिक रिश्ते निभाती रहीं। उन्हें सदन या सड़क पर इन मुद्दों को उठाने की याद नहीं आई। यह इस्तीफा राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होता देख व दुबारा चुने जाने की क्षीण संभावानाओं के चलते सहानभूति बटोरने के लिए उठाया गया असफल कदम मात्र है।