नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के घर चैन्नई में छापेमारी के एक दिन बाद ही फॉरेन इनवेस्टमेंट पर्सनल बोर्ड (एफआईपीबी) को भंग करने का प्रस्ताव पीएम मोदी की कैबिनेट में पहुंच गया है। यह छापेमारी इसलिए की गई थी कि क्या उनके वित्त मंत्री रहते हुए विदेशी निवेश प्रस्ताव को अवैध रूप से मंजूरी दी गई? एफआईपीबी का गठन दो दशक पहले किया गया था। इसमें अलग अलग मंत्रालयों के पांच ब्यूरोक्रेट्स होते हैं। यह भारत में 600 करोड़ रुपये तक के विदेशी निवेश को मंजूरी दे सकते हैं। इससे बड़े निवेश का फैसला कैबिनेट कमिटी करती है। फरवरी में आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि भारत में बिजनेस करने को सरल बनाना है। इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सुधार करने में एफआईपीबी को खत्म करना शामिल है। यह वित्त मंत्रालय का ही एक हिस्सा है।

वित्त मंत्री ने कहा था कि अगले कुछ महीनों में विदेशी निवेश के आवेदन के लिए रोडमैप की घोषणा की जाएगी। कैबिनेट की मंजूरी के एक महीने के अंदर ही एफआईपीबी के भंग होने की संभावना है। खबरों के मुताबिक प्रासंगिक मंत्रालयों और नियामकों को निवेश के प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए अधिकृत किया जाएगा। स्वीकृति मांगने वाली कंपनियों को एक नई वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन आवेदन करने के लिए कहा जा सकता है, जो संबंधित मंत्रालयों को सीधे आवेदन पहुंचा देगी। 2015 की शुरूआत में एफआईपीबी ने अपने फैसलों में तेजी लाने के लिए बोर्ड ने एक महीने में दो बार मीटिंग करना शुरू कर दिया था।

रक्षा और खनन जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर सरकारी अप्रूवल की जरूरत नहीं है। यह 49 फीसदी तक की इक्विटी विदेशी खरीदार को दे सकते हैं। भारत में 90 फीसदी से ज्यादा एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) का प्रवाह इस स्वचालित मार्ग से होता है। वित्त वर्ष 2016 के पहले 6 महीने में ही लगभग 1,45,000 करोड़ रुपये का विदेश प्रत्यक्ष निवेश आ गया था। वित्त मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष 2015 के पहले 6 महीने की तुलना में यह 36 फीसदी ज्यादा था।