नैदानिक प्रयोगशालाओं के लिए नैदानिक स्थापन अधिनियम के दिशा निर्देश ने चिकित्सीय एम.एससी. स्नातकोत्तरों के लिए समस्त भूमिकाओं से वंचित कर दिया है। नैदानिक स्थापन नियमों में अनिवार्य कर दिया है कि इस कार्य को करने के लिए सभी नैदानिक प्रयोगशालाओं में चिकित्सक (एमसीआई या राज्य चिकित्सा परिषद से पंजीकृत) होने चाहिए। हाल ही में इन नियमों का कार्यान्वयन दो राज्यों राजस्थान और झारखण्ड में हुआ जो देश भर के स्नातकोत्तरों को आशंकित कर रहा है।

वर्तमान में देश में कई काॅर्पोरेट अस्पताल और निजि नैदानिक प्रयोगशालों में चिकित्सीय एम.एससी. स्नातकोत्तर हैं जो प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट की व्याख्या करते हैं और उन पर हस्ताक्षर करते हैं। इन नियमों से चिकित्सीय एम.एससी. स्नातकोत्तरों के बीच व्यापक असंतोष है क्योंकि यदि यह नया नियम सभी राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित होता है तो उनमें से सैकड़ों या तो नौकरी खो देंगे या प्रयोगशाला तकनीशियनों की भूमिका के लिए पदावनत हो जायेंगे । हालांकि, केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय अपने रूख पर दृढ़ है। समस्त नैदानिक स्थापनों को पंजीकृत और नियंत्रित करने के लिए केन्द्र सरकार ने नैदानिक स्थापन (पंजीकरण एवं विनियम) अधिनियम 2010, कानून बनाया है।

राष्ट्रीय एम.एससी. चिकित्सा शिक्षक संघ (एनएमएमटीए) ने इन नियमो का विरोध किया है और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा सहित समस्त संबंधित प्राधिकारियों को इन नियमों पर पुर्नविचार करने के लिए आग्रह किया है। एनएमएमटीए अध्यक्ष, डॉ श्रीधर राव ने सरकार से विसंगति को सही करने का आग्रह किया है।

अर्जुन मैत्रा , सचिव, राष्ट्रीय एम.एससी. चिकित्सा शिक्षक संघ (एनएमएमटीए) ने कहा कि एम.एससी. (चिकित्सा बायोकैमिस्ट्री , चिकित्सा माइक्रोबायोलॉजी) स्वतंत्र रूप से या पूरी तरह से चिकित्सीय प्रयोगशाला में मेडीकल बायोकैमिस्ट्री और मेडीकल माइक्रोबायोलॉजी रिपोर्ट पर हस्ताक्षकर करने के हकदार हैं।

यदि ये दिशा निर्देश राज्यों द्वारा अपनाए जाते हैं और लागू किए जाते हैं तो चिकित्सा उपाधि के साथ सैंकड़ों योग्य माइक्रोबायोलाॅजिस्ट और बायोकैमिस्ट या तो अपनी नौकरी खो देंगे या अपमानजनक रूप से नैदानिक प्रयोगशालाओं से दूर रहेंगे। इन गलत नीतियों के कारण चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रतिभा पलायन एक सतत प्रक्रिया है।