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विवादित प्रावधानों से भरा है मोदी सरकार का वित्त विधेयक 2017

नरेंद्र मोदी सरकार के वित्त विधेयक 2017 के विवादित प्रावधान, इनकम टैक्स कभी भी मार सकता है छापा, फ्रीज कर सकता है आपके बैंक अकाउंट भीरविवार 26 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी और लोक सभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन तमिल नववर्ष के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में।

पिछले हफ्ते 22 मार्च को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लोक सभा में पारित कराए गए वित्त विधेयक 2017 पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस विधेयक से जुड़े प्रावधानों विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया है और राज्य सभा में इसमें संशोधन पेश करने की बात कही है। आइए हम आपको बताते हैं कि इस विधेयक में किन प्रावधानों पर विवाद है और विपक्ष को किन चीजों पर आपत्ति है।

वित्त विधेयक के विवादित प्रावधान-

  1. वित्त विधेयक 2017 से केंद्र सरकार को कई प्राधिकरणों (ट्राइब्यूनलों) के चेयरपर्सन और सदस्यों को हटाने, स्थानांतरित करने और नियुक्त करने का अधिकार मिल गया है।

2- वित्त विधेयक के अनुसार कोई भी कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को गुप्त दान दे सकती है। सरकार का तर्क है कि गुप्त दान से कंपनियों को राजनीतिक बदले की कार्रवाई से सुरक्षा मिलेगी। विधेयक द्वारा कंपनियों द्वारा पार्टियों को चंदा दिए जाने की ऊपरी सीमा भी खत्म कर दी गई है।

3- विधेयक के अनुसार पैन कार्ड बनवाने और इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए आधार संख्या को आवश्यक बना दिया गया है।

4- नए विधेयक के अनुसार इनकम टैक्स के अधिकारी किसी भी व्यक्ति के घर बगैर कोई कारण बताए छापा मार सकते हैं

5- नए विधेयक के अनुसार इनकम टैक्स के अधिकारी किसी भी व्यक्ति की कोई भी संपत्ति जब्त कर सकते हैं। पुराने कानून के अनुसार इनकम टैक्स वाले केवल मामले से संबंधित संपत्ति ही जब्त कर सकते थे। नए कानुन के तहत आयकर अधिकारी किसी के बैंक खातों को भी फ्रीज कर सकते हैं। यानी आप मामले के निपटारे तक अपने बैंक खातों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।

6- नए विधेयक के अनुसार अधिकतम कैश लेनदेन की सीमा तीन लाख रुपये से घटाकर दो लाख रुपये कर दी गयी है।

विधेयक पर विपक्ष की आपत्तियां-

1- इस विधेयक पर सबसे बड़ी आपत्ति इसे वित्त विधेयक के रूप में पारित कराने को लेकर है। वित्त विधेयक आम तौर पर केंद्र सरकार अस्थायी लेकिन जरूरी कानून निर्माण का साधन माना जाता है। वित्त विधेयक को राज्य सभा से नहीं पारित कराना होता है। राज्य सभा इसमें केवल संशोधन का सुझाव दे सकती है जिन्हें स्वीकार करने के लिए लोक सभा बाध्य नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार के पास राज्य सभा में बहुमत नहीं है। आम तौर पर वित्त विधेयक वित्तीय मामलों से जुड़े प्रावधानों के लिए प्रयोग किए जाते हैं लेकिन विवादित विधायक में कई गैर-वित्तीय मामलों को भी शामिल किया गया है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार राज्य सभा की अनदेखी करने के लिए वित्त विधेयक का विकल्प चुना है।

2- विभिन्न प्राधिकरणों के प्रमुख और सदस्य उनसे जुड़े कानूनी प्रावधानों के तहत चुने जाते हैं। केंद्र सरकार के पास सभी प्राधिकरणों में नियुक्ति के आधार आ जाने से सत्ता के केंद्रीकरण और दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाएगी। नए विधेयक में कई अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले प्राधिकरणों को मिलाने की बात कह गयी है लेकिन इससे उनकी स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है।

3- राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता पहले से विवादित मुद्दा रहा है। नए कानून के अनुसार ये स्थिति और गंभीर हो जाएगी। पुराने कानून के अनुसार कोई भी कंपनी एक तय राशि ही किसी राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर दे सकती थी और उसे इस चंदे को अपने सालाना बहीखाते में दर्शाना होता था। नए कानून के अनुसार कार्पोरेट कंपनियां किसी राजनीतिक दल को चाहे जितना भी चंदा दें सकती हैं और ये जानकारी आम जनता को कभी नहीं मिल पाएगी कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा कब दिया।

4- पैन कार्ड और इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए आधार कार्ड जरूरी बनाने पर भी विवाद है। विपक्ष का कहना है कि नया कानून सुप्रीम कोर्ट के आधार कार्ड पर दिए गए फैसले की मूल भावना के खिलाफ है।

5- नए कानून में इनकम टैक्स अधिकारियों को बिना कारण बताए छापा मारने का अधिकार की कड़ी आलोचना हो रही है। नए कानून के अनुसार इनकम टैक्स अन्य सामान सीज करने के साथ ही टैक्स चोरी के आरोपी का बैंक खाता भी फ्रीज कर सकता है। पूर्व कानून मंत्री ने इस पर आपत्ति जताते हुए एक टीवी चैनल से कहा कि “पुराने कानून के आर्टिकल 132 के तहत दस्तावेज, सोना, अन्य संपत्तियां जैसे कारपेट, शॉल इत्यादि जब्त करने का अधिकार इनकम टैक्स अधिकारियों के पास पहले से था। लेकिन वो बैंक अकाउंट नहीं फ्रीज कर सकते थे। इससे कारोबार बंद हो जाएगा। ये गलत है।”

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