सय्यद आलमगीर अशरफ किछोछवी

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के बीते चुनावी चरणों ने अपना रुख प्रदर्शित कर दिया है। आने वाले चरण ही निर्णायक होंगे। आने वाले चरण ही मंजिल तक ले जाएंगे। इन पर जिनकी मजबूत पकड़ होगी मैदान उसी का होगा। बीते चुनावी चरणों ने एक बात तो स्पष्ट कर दिया कि मौजूदा सरकार अपनी असफल सत्ता को दोहराने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस के साथ किए गए गठबंधन का भी कोई खास असर नहीं पड़ा। दूसरी बात यह भी साफ हो गयी कि यूपी को इस बार सांप्रदायिकता और धार्मिक घृणा की हवा नहीं लगी और न ही धर्म के नाम पर राजनीति अधिक सफल हुई। न तो इस्लाम के नाम पर वोट दिया गया है और न ही उसके खिलाफ वोट डाले गए हैं। इसलिए धर्म के नाम पर चुनाव में कूदने वाली छोटी पार्टियों और शुद्ध धार्मिक आधार पर अपना अस्तित्व रंग चुके बड़े दलों को भी कोई खास फायदा होता नज़र आ रहा है। न तो भाजपा को मोदी ब्रांड का कोई खास फायदा मिलता नजर आ रहा है। इन दो खुलासों के बाद तीसरा जो महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला भी है वह यह है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों और अनुमान विक्रेताओं को यह लगता था कि इस बार यूपी में भाजपा सरकार तय है। भाजपा के पास पहले ही से 73 संसद सदस्यों की मौजूदगी ने दावा काफी मजबूत कर दिया था। इसके अलावा चुनाव के शुरुआती दिनों में हल्की फुल्की सांप्रदायिकता की झड़पों ने संकेत दे दिया था कि शायद इस बार फिर मानव रक्त में रंगी राजनीति की कुर्सी पर यूपी की सत्ता का ताज रखा जाएगा लेकिन समय रहते इन सभी ही चीज़ों पर काबू पा लिया गया शायद समाजवादी और कांग्रेस के गठबंधन के कारणों में से एक यह भी है कि अगर अब गठबंधन न हुआ तो भाजपा सरकार बना ले जाएगी। इसलिए जल्दबाजी में गठबंधन का यह नया खेल खेला गया। दूसरी ओर इस गठबंधन से एक बार लोगों को लगा कि इतना बड़ा गठबंधन हुआ है अब तो कोई भी राजनीतिक दल इसके आगे नहीं टिक पायेगा। एक तेज लहर दौड़ गई। एक बार तो वाकई ऐसा लगा शायद यह लहर मूल धाराओं को बहा न ले जाए। लेकिन समय गुजरने के साथ ही यह सपना टूट गया। लोग नींद से जाग गए। बीते चरणों में जनता ने बताया कि यूपी को क्या पसंद है। दोनों ही शो फ्लॉप हो गए। सभी राजनीतिक दलों ने एक बुनियादी बात से लापरवाही बरती थी कि यूपी में बहुजन समाज पार्टी बड़ी कमजोर हो चुकी है। इन दो युवकों के सामने अब सब कुछ बेमानी है। लेकिन राजनीतिक इतिहासकार इस बात से परिचित हैं कि यूपी में बसपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके पास लगभग 22 प्रतिशत सुरक्षित वोट हैं जो न तो किसी उम्मीदवार को देखते हैं और न ही किसी निजी हित में बहते हैं। बस अपना राजनीतिक दल देखते हैं। दूसरी बात यह भी लोग भूल गए या जानबूझकर लोगों को लापरवाही में डाल दिया गया कि सुश्री मायावती जी इस बार सत्ता की दोड़ में नहीं हैं क्योंकि भाजपा की तुलना में एक ही रास्ता है कि लोग सपा और कांग्रेस के गठबंधन को वोट दें। लेकिन तथ्य यह है कि बसपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने भाजपा को दो बार पूरी तरह से मात दिया है और सत्ता से बाहर किया है। बीते चरणों में इस बात का खुलासा हो गया कि गुण्डाराज और बदहाली से परेशान लोगों ने इस बार फिर से ऐसी सरकार बनाने का मन बना लिया है जिसमे कम से कम कानून नाम की कोई चीज अमलन नजर तो आए और कानूनी वर्चस्व देखने को मिले। नेताओं के तत्वावधान में लुटती इज्ज़तों की रक्षा हो सके। एक आम आदमी और गरीब, मजदूर किसान की आवाज भी सत्ता की ऊंची मीनारों तक पहुंच सके। फरियादी को जवाब में अभिशाप व मलामत की बजाय न्याय और अधिकार देने का आश्वासन मिल सके। जब लोगों का रुझान ऐसी सरकार बनाने का हो चुका था बीते चुनाव चरणों ने उसे अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया है। इन खुलासों के बाद चुनावी रणनीति में आये असाधारण परिवर्तन ने भी इस अनुमान को और मजबूत कर दिया है जिसे सबसे कमजोर माना गया था वही सबसे मजबूत साबित होता जा रहा है। अब आने वाले चरणों में विश्वाश और दृढ़ता के साथ अपने इरादे और फैसले पर कायम रहते हुए निर्णायक मोर्चे पर अत्याचार, बलात्कार और बेईमानी के खिलाफ लड़ाई लड़नी है।

बसपा की बढती इस लोकप्रियता में निस्संदेह उसकी नई नीति और स्पष्ट बयान हैं जिनमें सबको लेकर चलने की बात कही गई है। इसके अलावा लोगों के साथ को स्वीकारा भी गया और उसे सराहा भी गया है। इससे पहले ऐसा नहीं था। यही कारण है कि उन्हें जिस तरह का समर्थन इस बार मिला है इससे पहले कभी नहीं मिला था। इस समर्थन में वास्तव में आल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड का अहम रोल रहा है। हालांकि इस बात को खुद मायावती जी ने भी स्वीकार किया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से इस बात को स्वीकार किया और घोषणा की कि उन्हें कई राजनीतिक और गैर राजनीतिक दलों से समर्थन मिला है और वह उनका सिर कभी भी नीचे नहीं होने देंगी। ऑल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड के घोषित समर्थन ने विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय में उम्मीद और विश्वास की एक लहर दौड़ गई कि अगर सैयद मोहम्मद अशरफ और ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड उनके समर्थन में है तो हमें भी उनका समर्थन स्वीकार है। क्योंकि पिछले दस वर्षों से इस संगठन ने राष्ट्र, देश और समाज और मानवता की सेवा सिवा कुछ नहीं किया है। इसका असर भी देखने को मिला है। ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड के मैदान में आते ही मुसलमानों ने खुलकर समर्थन करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते जिसे सब लोग सबसे पीछे और कमजोर मान रहे थे वह दौड़ में सबसे आगे दिख रही है।

ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड यूपी विधानसभा चुनाव के अपने अंतिम चरण के लिए प्रतिबद्ध है, आशावादी भी है। पूरी टीम इस निर्णायक चरण जीत के लिए तैयार है। उसे उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि जैसे-जैसे रुझान स्पष्ट होते जा रहे हैं लोगों की प्राथमिकताएं भी बदलती जा रही हैं। अब अक्सर लोगों को यूपी की आल इंडिया उलेमा व मशाईख बोर्ड समर्थित कानून व व्यवस्था वाली सरकार की ज़रुरत है। आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड की हमेशा से एक ही अपील रही है कि बदमाशी, अन्याय, अधिकारों का हनन और बलात्कार की बढ़ते मामलों के विरुद्ध कानून व्यवस्था को लागू करने वाली सरकार के लिए कोशिश होनी चाहिए। अस्थायी तौर पर निजी हित में बहने के बजाय राष्ट्रीय हित के बारे में चिंता करनी चाहिए।