नई दिल्ली: संसद हमले के बाद चारों ओर निराशा थी. आतंकियों को माकूल जवाब देने की आवाज हर ओर उठ रही थी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करवाया था. इस बात की जानकारी किसी को नहीं पर हफपोस्ट की न्यूज वेबसाइट ने अपने एक्सक्लूसिव खबर में इस बात का खुलासा किया.

हफपोस्ट के मुताबिक, 31 जुलाई 2002 को 2 बजे सुबह का वक्त था, 29 साल के फाइटर पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजीव मिश्रा को अंबाला एयरफोर्स स्टेशन में स्थित उनके क्वार्टर से उठाया गया. उन्हें फौरन लेजर डेस्टिनेशन यंत्रों के साथ श्रीनगर रवाना होने के आॅर्डर मिले. एयरफोर्स बेस पर उनका विमान तैयार खड़ा था.
उन्हें तब तक नहीं पता था कि क्या करना है. लेकिन ये पता था कि उन्हें भारतीय वायुसेना के बेहद संवेदनशील मिशन पर ले जाया जा रहा था. इसके बारे में बाहरी दुनिया को कुछ भी नहीं बताया गया था.

मिश्रा एयरफोर्स के जगुआर फाइटर जेट विमान को उड़ाया करते थे, लेकिन उस रात उन्हें वो उड़ाने के लिए नहीं जगाया गया था. उस दौरान वायुसेना को इजराइल से लिया गया लेजर गाइडेंस सिस्टम मिला था. इससे पायलट किसी खास निशाने को लेजर तकनीक से नष्ट कर सकता था. मिश्रा वो पहले थे जिन्हें इस तकनीक का इस्तेमाल करने का मौका मिल रहा था.

उड़ने से पहले मिश्रा और उनके दो साथियों को एयरफोर्स स्ट्राइक सेल द्वारा ये बताया गया था कि उन्हें पाकिस्तान में घुसकर एलओसी के पास इस तकनीक का इस्तेमाल करना है. इससे पहले एयरफोर्स ने कभी इस तरह का अभियान नहीं किया था.

ये वो मौका था जब दिसंबर 2001 में आतंकियों ने भारतीय संसद पर सात महीने पहले ही हमला किया था. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल था. उस दौरान सीमा के दोनों ओर से लगातार हमले हो रहे थे. भारत ने इसे आॅपरेशन पराक्रम का नाम दिया था.

उस दौरान अटल बिहार वाजपेई प्रधानमंत्री थे और जॉर्ज फर्नांडीज रक्षा मंत्री थे. 2002 में मई जून के बीच दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था. उस दौरान कारगिल युद्ध जैसे हालात भी बन रहे थे. पहले ये रणनीति बनाई गई कि भारतीय सेना पाकिस्तान के ठिकानों पर हमला करेगी. पर अचानक सेनाध्यक्ष सुंदराजन पद्मनाभन से बातचीत के बाद इसको बदला गया.

उस दौरान के सेनाध्यक्ष सुंदराजन पद्मनाभन ने हफिंगशन पोस्ट से बात करते हुए बताया कि इस बारे में ज्यादा कुछ बताना ठीक नहीं होगा. इसका मकसद पाकिस्तान के आतंकी बेस को नष्ट करना था. लेकिन इस आॅपरेशन के बारे में सिर्फ चंद राजनेता और आॅपरेशन का हिस्सा रहे लोग ही जानते हैं.