उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ सालों में जो नया नाम तेजी से उभरा है उनमें से एक हैं सपा नेता, अखिलेश सरकार में मंत्री और गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाली अमेठी विधान सभा से विधायक गायत्री प्रसाद प्रजापति। अखिलेश सरकार में मंत्री प्रजापति पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव से साथ पार्टी के अंदरूनी सत्तासंघर्ष में अखिलेश ने प्रजापति को मंत्रिमंडल से पहले बर्खास्त किया फिर वापस ले लिया। जब चुनाव आयोग ने सपा की कमान और चुनाव चिह्न अखिलेश को सौंपा और उन्होंने विधान सभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की लिस्ट नए सिरे से जारी की तो उसमें भी प्रजापति का नाम था। इतना ही नहीं 24 जनवरी को जब सीएम अखिलेश ने सुल्तानपुर से आधिकारिक तौर पर चुनाव प्रचार शुरू किया तो उन्होंने गायत्री प्रसाद प्रजापति को जिताने की अपील की। भ्रष्टाचारियों और माफियाओं के विरोधी की छवि बनाने वाले अखिलेश के साथ प्रजापति मंच पर नजर आए।
गायत्री प्रजापति का यूपी की सियासत में उभार बहुतों को इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि साल 2002 तक प्रजापति बीपीएल कार्ड धारक (गरीबी रेखा से नीचे) थे। जब उन्होंने 2012 में सपा के टिकट पर पर्चा भरा तो अपनी चल-अचल संपत्ति 1.83 करोड़ बतायी थी। साल 2009-10 में भरे उनके इनकम टैक्स रिटर्न के अनुसार संबंधित वित्त वर्ष में उनकी वार्षिक आय 3.71 लाख रुपये थी। साल 2011 में प्रजापति तब पहली बार मीडिया की सुर्खियों में आए जब आगरा में हुए पार्टी अधिवेशन में रामगोपाल यादव ने सार्वजनिक रूप से ऐलान किया कि अमेठी के गायत्री प्रसाद प्रजापति ने पार्टी को 25 लाख रुपये का चंदा दिया है। उस समारोह में प्रजापति तत्कालीन सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के पैरों छूते नजर आए। उसके बाद से ही प्रजापति राजनीति में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे हैं।

प्रजापति ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अमेठी विधान सभा सीट से 1993 में बहुजन क्रांति दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर की थी। उस चुनाव में वो मात्र 1526 वोट पा सके थे। अमेठी विधान सभा से प्रजापति ने 1996 और 2002 का विधान सभा चुनाव सपा के टिकट पर लडा। दोनों ही मौकों पर वो तीसरे स्थान पर रहे थे। 2007 में सपा ने उन्हें विधान सभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। जिस प्रजापति को 2007 के विधान सभा चुनाव में सपा ने टिकट नहीं दिया था वही प्रजापति 2012 में न केवल पार्टी का टिकट पाने में कामयाब रहे बल्कि अमेठी विधान सभा से तीन बार विधायक रह चुकी चुकी राजपरिवार से संबंध रखने वाली अमीता सिंह को आठ हजार से अधिक वोटों से हरा दिया।

पहली बार विधायक बनने के करीब एक साल बाद प्रजापति को फरवरी 2013 में अखिलेश सरकार में कृषि राज्य मंत्री बनाया गया। जुलाई 2013 में उन्हें प्रमोशन देते हुए स्वतंत्र प्रभार वाला राज्य मंत्री बनाया गया। जनवरी 2014 में एक और प्रमोशन के साथ वो अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। मात्र 11 महीनों में प्रजापति को तीन प्रमोशन मिलने से यूपी के सियासी हलक़ों में सब हैरत में थे। पिछले साल मुलायम-शिवपाल से तकरार के बाद अखिलेश ने खनन मंत्री प्रजापति को कैबिनेट से निकाल दिया। इसकी एक वजह उनका मुलायम सिंह यादव के दूसरे बेटे प्रतीक यादव का करीबी होना भी बताया गया। लेकिन जल्द ही सपा के दोनों धड़ों में समझौते के बाद और प्रजापति की परिवहन मंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल में वापसी हो गई और शपथ ग्रहण समारोह में वो सीएम अखिलेश का सार्वजनिक तौर पर पैर छूते नजर आए।

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विपक्षी दल प्रजापति पर लाखों करोड़ के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाते हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ता भी उनके खिलाप अदालत जा चुके हैं। हालांकि प्रजापति पर चल रहे भ्रष्टाचार के पांच में से तीन मामलों में शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस ले चुके हैं। फैजाबाद के राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से स्नातक प्रजापति ने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में अपना व्यवसाय प्रापर्टी डीलिंग बताया था। गरीबी रेखा से नीचे से लेकर करोड़पति बनने के बाद प्रजापति का ये पहला चुनाव है। देखना ये है कि इस बार चुनाव आयोग को दिए जाने वाले हलफनामे में वो कितनी संपत्ति बताते हैं?