लखनऊ: नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की विचारधारा पर जितना बहस होना चाहिए, नहीं हो सका। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ-साथ उनकी विचारधारा पर भी नए सिरे से व्यापक विमर्ष की आवष्यकता है। नेता जी उन विभूतियों में से एक हैं, जिन्हांने भारतीय लोकमानस व इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित किया है। सुभाष चन्द्र मनसा-वाचा-कर्मणा समाजवादी थे। उन्होने भारत को स्वतंत्र कराकर यहां षोषण विहीन समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना का मधुर स्वप्न देखा था। उन्होंने 19 फरवरी 1938 को हरिपुरा (गुजरात) अधिवेषन में बतौर अध्यक्ष बोलते हुए स्पष्ट षब्दों में कहा था कि राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान सिर्फ व सिर्फ समाजवाद से ही सम्भव है। नेता जी समाजवादियों विषेषकर डॉ. लोहियां पर काफी विष्वास करते थे। 1927 में अखिल बंग विद्यार्थी परिषद की अध्यक्षता का दायित्व उन्होंने ही लोहियां को दिया था।
यह बातें सुभाष जयंती के उपलक्ष्य में समाजवादी चिन्तन सभा के तत्वावधान में विधायक निवास स्थित सभाकक्ष में सुभाष व समाजवाद विष्यक गोष्ठी में बोलते हुए समाजवादी चिन्तक व समाजवादी चिन्तन सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने कही।

श्री मिश्र ने भारतीय जनता पार्टी व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुभाष के प्रति प्रेम को वाचिक, दिखावा व धोखा बताते हुए कहा कि यदि नेता जी के प्रति मोदी का सम्मान वास्तविक होता तो महामना मदन मोहन मालवीय की तरह उन्हें भी ’’ भारत-रत्न’’ से विभूषित कर चुके होते नेता जी ने आजाद हिन्द सरकार के गठन के समय बंगाली व उड़िया भाषी होते हुए भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया था।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के षिष्य बाबा भारद्वाज ने कहा कि नेता जी वैष्विक समाजवाद के स्वप्नदृष्टा थे उनसे त्याग व सतत संघर्ष की प्रेरणा मिलती है 95वषीय बाबा भारद्वाज ने जोर देकर सुभाषवादियों व समाजवादियों को एक मंच पर आकर साम्प्रदायिक षक्तियों एवं सोच से लड़ने की अपील की।

साम्प्रदायिकता विरोधी अभियान के अध्यक्ष राजेष अग्रवाल ने कहा कि नेता जी गुलामी व साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे। यही कारण है कि वे आरएसएस व मुस्लिम लीग दोनों से समान दूरी बनाएं रखा।
संगोष्ठी में नेता जी म्यामार-उद्बोधन व कैथे सभागार (सिंगापुर) में दिए गए ऐतिहासिक भाषणों का वाचन पुनीत पाण्डेय ने किया। संगोष्ठी के उपरान्त साम्प्रदायिकता से सतत् संघर्ष का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया।