अमानक पदासीनता से दरिद्र कल्याण, नौकरियों एवं सार्वजनिक धन-सम्पत्ति के निजीकरण से प्रभावित समाज का विवेचन

जैसा कि सर्व विदित है कि भारतीय समाज के संचालन एवं नियन्त्रण में नैसर्गिक सिद्धान्तों का समावेश है। जिसकी उपेक्षा देश-समाज हेतु घातक है। स्वतन्त्र भारत में जन-सामान्य के हितों की सुरक्षार्थ भारतीय संविधान लागू है तथा अधिकारों एवं दायित्वों के संरक्षण हेतु अनेक नियम-सहिताएं लागू हैं जिनका समय-समय पर सुधार भी होता रहता है। विकास के लिए पंच-वर्षीय योजनाएं संचालित हैं। जिनके क्रियान्वयन एवं नियमित निगरानी हेतु स्तरीय अधिकारियों-कर्मचारियों के पद-उत्तरदायित्व निर्धारित है। कल्याणकारी योजनाओं के लाभ की पात्रता एवं आवेदन की स्वीकृत एवं धन आबंटन की औपचारिक प्रक्रिया निर्धारित है। जिसमें शासन-प्रशासन के प्रशासक-अधिकारी एवं कर्मचारियों की नियमित निगरानी एवं जबाबदेह उत्तरदायित्त्व निर्धारित है। इसके बावजूद वास्तविक दरिद्रों के कल्याण की उपेक्षा, रहीसों को दरिद्र योजनाओं के लाभ आबंटन में समर्थन एवं रहीस-लुटेरों का फर्जीबाड़ा समाज विरोधी एवं संगठित संगीन अपराध है।
केंद्र एवं प्रदेश सरकारों द्वारा दरिद्रों एवं असहाय व्यक्ति-परिवारों के लिए अनेक जन-कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। यथा दरिद्रों के लिए नगर-गांवों में मुफ्त सरकारी आवास, शौचालय, विद्युत-गैस कनेक्शन, सौरलाइट, छात्रवृत्तियां, जीवन सुरक्षा बीमा, निःशुल्क इलाज, निःशुल्क शिक्षा, बिना ब्याज ऋण, कृषि अनुदान, पशु अनुदान, असहाय-वृद्धा-विधवा पेंशन, समाजवादी पेंशन, विकलांग पेंशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी तथा खाद्य सुरक्षा गारंटी-2013 के अन्तर्गत कंगालों को प्रति राशन कार्ड पर पूर्व की भांति 90 रूपए मात्र में 35 किलो अनाज, चीनी, किरोसिन और गरीब बी.पी.एल. राशन कार्ड धारियों को पूर्व की भांति राशन न देकर पात्र गृहस्थी में परिवर्तित कर ए.पी.एल.राशन कार्ड की भांति 5 किलो मात्र प्रति राशन कार्ड के स्थान पर प्रति व्यक्ति राशन दिया जाना जनवरी 2016 से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया है जबकि कुछ राज्यों में पूर्व से यह राशन व्यवस्था लागू है। खाद्य सुरक्षा प्रत्येक तीन वर्ष बाद विचारोरान्त की पुनरावृत्ति का नियम है। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा सरकारी एवं अनुदानित विद्यालयों में 1 से 8 तक के विद्यार्थियों को निःशुल्क पुस्तकें, पोशाकें, मध्याह्न भोजन, दूध, फल, वेतनिक शिक्षक-कर्मचारी, किशोर-प्रौढ़ निरक्षरों को सारक्षरता तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को पौष्टिक भोजन, दूध, खिलौने, स्वास्थ्य जांच, विद्यालय पूर्व की शिक्षा, तथा नारियों के मातृत्व धारण करने के उपरान्त पैष्टिक भोजन, दूध, फल, चिकित्सा, किश्तों में 6000 रूपए मुहैया करा रही है।

केंद्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित दरिद्रों के कल्याण के लिए योजनाओं के अध्ययन उपरान्त मैंने उत्तर प्रदेश के जनपद फर्रूखाबाद के दरिद्र व्यक्तियों की समस्याओं के निरीक्षण हेतु 6 नगर क्षेत्रों एवं 7 ब्लाकों के 186 ग्राम सभाओं का भ्रमण कर अन्त्योदय-बी.पी.एल. धारकों, समाजवादी-विधवा-वृद्ध-बिकलांग पेंशन धारकों, आवास-शौचालय पाने वाले, मनरेगा कार्ड धारकों, वास्तविक दरिद्रों के घर-घर जाकर उनकी वास्तविक स्थिति का अवलोकन कर उनसे एवं उनके परिवारी जनों से सामूहिक वार्ता की तथा गांव-नगरों की स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं शिक्षा व्यवस्था का मूल्यांकन किया। जिसके परिणामस्वरूप समस्त अन्तोदय कार्ड एवं 75ः से 95ः तक बी.पी.एल. राशनकार्ड ऐसे व्यक्ति-परिवारों के पास हैं जो लेंटर-दो मंजिल मकान, बडे प्लाट-खेत, मोटर साइकिल, ट्रेक्टर, कार, व्यापार, आयुध लाइसेंस, नौकरी, पेंशन, रहीस परिवार, अनेक नगरों में बडी-बडी़ हवेलियां, कारखाने, उद्योगों एवं अकूत पैतिक धन-सम्पत्ति के स्वामी हैं। यही स्थिति अधिकाशं समाजवादी, वृद्धा, असहाय, विधवा एवं विकलांग पेंशन, इंद्रा-लोहिया आवास-शौचालय पाने वालों की है जिनमें अधिकांश एक ही परिवार के अनेक व्यक्ति पति, पत्नी, पुत्र, बहू, बेटी, नाती, आदि मृतकों सहित अनेक पेंशन धारक हैं। इन रजिस्टर्ड-फर्जी दरिद्रों ने सामूहिक रूप से कथन, ‘धन देकर योजनाओं का लाभ लिया गया है। इन पंजीकृत एवं फर्जी दरिद्रों द्वारा बड़ी मात्रा में दरिद्रों का गेंहू, चावल, तेल, चीनी, सरकारी आवास, पट्टा, उद्योग, बीमा, समाजवादी-वृद्धा-असहाय- विधवा-विकलांग पेंशन, दान-अनुदान एवं राष्ट्रीय सम्मान आदि फर्जीबाड़ा कर हड़पा जा रहा है। सांसद एवं विधायक निधियों का धन सार्वजनिक स्कूलों की जगह निजी स्कूलों में लगाया गया है। गांव के सचिवालयों एवं सरकारी-सहकारी भवनों में दबंग-रहीसों ने लकड़ी-भूसा भर अवैध कब्जा कर लिया है। स्वाथ्य विभाग के केंद्रो पर अधिकांश सफाई कर्मी रोगियों का इलाज कर रहे हैं जबकि मोटा वेतन लेने वाले चिकित्सक एवं कर्मचारी केंद्रों पर यदाकदा जाकर कागजी खानापूर्ति करते हैं। प्राइमरी एवं जूनियर विद्यालयों में पढ़ाई न होने से छात्रों का अभाव है। इन स्कूलों में कोई भी जागरूक व्यक्ति अपने प्रतिपाल्यों को पढ़ाने को तैयार नहीं है तथा सरकारी स्कूलों से निकलने वाले छात्रों को अज्ञानता के कारण बड़ी आयु में निजी स्कूल की के.जी.कक्षाओं से पढ़ना पढ़ रहा है। प्राइमरी स्कूलों में पंजीकृत अधिकांश छात्र पब्लिक स्कूलों के विद्यार्थी हैं। अधिकांश सरकारी स्कूलों की वास्तविक छात्र संख्या कम एवं पंजीकृत फर्जी छात्र संख्या-उपस्थित अत्याधिक है। इन विद्यालयों की प्रबंध समितियों के अधिकांश अध्यक्ष रहीसों-प्रधानों के नौकर या कार्यकत्रियों-रसोइयों के पति-पत्नी हैं जिनके प्रतिपाल्य छात्र न होने से अध्यक्षों एवं रसोइयों की पदासीनता अमानक एवं अवैध है। अनेक शिक्षक घर बैठे वेतन भुगतान ले रहे हैं। अधिकांश स्कूलों में मिड-डे-मील मील, दूध, फल शिक्षकों-रसोइयों तक सीमिति है तथा छात्र संख्या दिखाने के उद्देश्य से अधिकांश स्कूलों में उबला रंगीन चावल-आलू या रंगीन पानी है जो मानव-प्रतिपाल्य तो क्या पशुओं के लिए भी हानिकारक है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अत्यन्त निम्न एवं फर्जीबाड़ा से सार्वजनिक धन-सम्पत्ति का घोटाला अत्यन्त उच्च है। इस प्रकार फर्जी दरिद्र सुख में तथा वास्तविक दरिद्र ए.पी.एल.धारक या कार्ड विहीन होने से बुरी तरह दरिद्रता ग्रसित मिले। ग्रामों में कार्यरत सफाईकर्मी अधिकांश उच्च जाति-वर्ण एवं रहीस परिवारों के व्यक्ति के हैं जो स्वयं तो सफाई काम नहीं करते और अपनी जगह पर गांवों के दरिद्र बाल्मीक व्यक्तियों को रू.100-200 प्रतिदिन दिहाड़ी मजदूरी देकर यदा-कदा गांवों की सफाई कार्य की खानापूर्ति करते हैं और वेतन निकालने के लिए ग्राम प्रधानों को वेतन से हजारों रूपयों का हिस्सा देकर अपनी फर्जी ड्यूटी का उपस्थिति प्रमाण-पत्र बनवाकर सरकारी धन हड़प रहे और बाल्मीक काम कर बंचित हो रहे हैं। ग्राम प्रधानों एवं कोटेदारों में अधिकांश पदासीन संबंधित गावों के वर्तमान निवासी न होकर नगर निवासी हैं और नगरों में परिवार सहित निवास कर नगर निवासी की समस्त गतिविधियां में भागीदार होने के बावजूद फर्जी प्रमाण-पत्रों के माध्यम एवं अपराधिक गतिविधियों के प्रभाव से पदासीन होकर सरकारी योजनाओं के लाभ को हड़पकर अवैध वसूली में जुटे हैं। इनके द्वारा न तो खुली बैठकें करायी जातीं हैं और न ही खुली बैठक-प्रस्ताव होते हैं। सरकारी कर्मी जुड़ाव दलाली तक सीमित है।

चूंकि भारत कृषि प्रधान विकाशशील देश है जहाँ बड़ी संख्या में दरिद्र और निरक्षर मौजूद है तथा सांमतवाद एवं परिवारवाद के जबरदस्त प्रभावों से वास्तविक परिश्रमी-कृषक-मजदूर कंगाली और फकीरी में भूखें पेट सपरिवार सोकर दरिद्रता में जीवन यापन को मजबूर है। जिसकी कमजोरी का लाभ उठाकर रहीस-लूटेरे जन सेवा का ढ़ोंग कर मनमाने ढंग से शासन-प्रशासन के उच्च पदों पर पदासीन होकर जन-कल्याणकारी सरकारी योजनाओं का लाभ हड़पकर साधारण जनता को भेंड़ों की तरह हांक रहे हैं। भारतीय जनता का बड़ा भाग भोजन-पानी के लिए गुहार लगाते हुए दर-दर भटक रहा है। भूखे दरिद्रों के बच्चे बूँद-बूँद दूध के लिए तरस रहे हैं। दरिद्रों की लहशें कफन बिना मुर्दा खानों में जा रहीं हैं। जबकि रहीस मंत्री-अधिकारी और नेता देश की धन-सम्पत्ति एवं सरकारी नौकरियों पर मनमाना कब्जाकर फर्जीबाड़ा से अमानक लाभ कमा कर चौरस-सट्टा व्यापार में लगे दिख रहे हैं। यह लोग रहीस-व्यापारी-सौदागरों के साथ रंगमंचों पर जाकर एक-दूसरे को पदक-पुरस्कार देकर एवं गले लगा प्रेम-लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं। इनके द्वारा आयोजित समारोहों में सरकारी-सार्वजनिक धन-सम्पत्ति पानी की तरह बहा रहीस-लुटेरों को महिमा मंडित किया जा रहा है। ताकि जिम्मेदार इनके कृकृत्यों के प्रति कार्यवाही की हिम्मत न कर सकें। जिसके कारण भारतीय जन-समाज की स्थिति दिनों-दिन बद् से बद्त्तर होती जा रही है।

उद्योगपति, राजनेता, नौकरशाह और उनके गुर्गे देश समाज के नवीन उत्पादन के साधनों (मशीन, मिल, कारखाना, व्यवसायों और सरकारी पदों आदि) के उद्भव के साथ-साथ के दो विराट वर्गों में बंटे हुए हैं। प्रथम वर्ग अल्पसंख्यक उन लोगों का है जिनका इन उत्पादन के साधनों पर अधिकार होता है, अर्थात् उद्योगपति, राजनेता, नौकरशाह। दूसरा वर्ग समाज के बहुसंख्यक श्रमिकों, बेरोजगार आदि व्यक्तियों का है जिनके पास पूजीं या जीविका-पालन के अन्य साधन नहीं हैं उनके लिए जीवित रहने का एक ही मार्ग खुला हुआ है और वह है कि वे अपने आपको धनी वर्ग के पास जाकर बेंच दें, अर्थात् अपने श्रम से उत्पादन कार्य में सक्रिय भाग लें और उसके बदले में कोरे कागजों पर नाम लिखकर तथा वेतन के नाम पर खैरात कितना हेगा इसका निर्धारण श्रमिक नहीं, अपितु घनी व्यक्ति करता है। धनीवर्ग गरीबों की कमजोरियों को खूब जानता है और उसी के बल पर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। धनी वर्ग जानता है कि गरीब अपने श्रम और परिवार को भविष्य के लिए सुरक्षित करके नहीं रह सकता और न वह रातों-रात अपने को इतना संगठित या शक्तिशाली कर सकता है कि धनी लोगों से अपने श्रम का उचित वेतन का सौदा कर सके। फलस्वरूप धनी श्रमिक, बेरोगार, गरीब व्यक्तियों से अत्यधिक मेहनत करवा तो लेता है और उसके बदले में नाम मात्र का वेतन खैरात के रूप में देता है, अर्थात् श्रमिक अपने श्रम से जितना मूल्य उत्पन्न करता है, उसका उचित हिस्सा श्रमिक को वेतन के रूप में नहीं देता है, वरन् उसका एक बहुत छोटा भाग श्रमिक को देकर अधिकांश भाग धनी-पूँजीपति स्वयं हड़प जाता है। इस प्रकार मनुष्य द्वारा ही मनुष्य का शोषण होता है।

उपरोक्त परिस्थिति का परिणाम यह हो रहा है कि अधिकाधिक पूँजी दबंग-रहीसों की तिजोरियों में इकट्ठी हो रही है अर्थात् धनवान अधिक धनी बन रहे हैं और जो लोग अपना खून-पसीना एक करके उस धन को उत्पन्न कर रहे हैं और जिनका कि वास्तव में धन पर अधिकार होना चाहिए वे क्रमशः दरिद्रता के निम्नतम स्तर पर पहुँच रहे हैं। श्रमिक और बेरोजगार व्यक्तिगत रूप में क्योंकि स्वतंत्र होते हैं, इसलिए धनी वर्ग उसको इस रूप में बेंच या मार तो नहीं सकते हैं जैसा कि दासत्व के युग में दास के मालिक दासों के साथ करते थे परन्तु इस व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भारी मूल्य भी उन्हें चुकाना पड़ता है और पूँजीपतियों द्वारा शोषण के फलस्वरूप उनकी दशा दिन-प्रतिदिन अधिक दयनीय होती जा रही है।

डॉ.नीतू सिंह तोमर, पोस्ट डाक्टोरल फेलो, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बहादुरशाह जफर मार्ग,नई दिल्ली-11000